मई माह के अंत में तुर्की प्रायोजित " गाजा मुक्ति" नौपरिवहन एक बार फिर इजरायल की प्रामाणिकता को नष्ट करने के इस्लामवादी-वामपंथी गठबन्धन की थकाऊ पुनरावृत्ति थी। इस बात की व्याख्या के सन्दर्भ में कि इजरायल के लोग यह नहीं जानते कि वे कैसा युद्ध लड रहे हैं इसका परिणाम पूरी तरह अपेक्षित ही था। परंतु तुर्की की नीतियों के वक्तव्य के रूप में और इस्लामवादी आन्दोलन के भविष्य़ को देखते हुए इस घटना का अपना महत्व है।
कुछ पृष्ठभूमि- लगभग 150 वर्षों तक आधुनिकता के प्रयासों को लेकर हिचक रखने के बाद 1923 में अंततोगत्वा ओटोमन साम्राज्य पतन को प्राप्त हुआ और इसके स्थान पर एक गतिशील, पश्चिम प्रभावित तुर्की की स्थापना हुई जिसे पूर्व ओटोमन जनरल कमाल अतातुर्क ने न केवल स्थापित किया वरन उस पर नियंत्रण भी रखा। अगले 15 वर्षों तक 1938 में अपनी मृत्यु तक अतातुर्क ने पश्चिमीकरण को इतनी कठोरता से लागू किया कि एक बार उसने मस्जिदों में परम्परागत मुस्लिम वस्त्रों के स्थान पर चर्च जैसे वस्त्र लाने का सुझाव भी दिया। यद्यपि तुर्की शत प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या वाला देश है परंतु उसने इसे पूरी तरह सेक्युलर रखा।
अतातुर्क को कभी भी समस्त तुर्क जनसंख्या का समर्थन नहीं मिला था इसी कारण समय के साथ उसके गणतंत्र को पवित्र मुसलमानों को भी धीरे धीरे समायोजित करना पडा। फिर भी 1990 के दशक तक अतातुर्क के आदेश प्रभावी रहे और सेना ने उनकी रक्षा की और यह इसे अपनी प्राथमिकता माना कि उसकी स्मृतियों को जीवित रखा जाये और सेक्युलरिज्म को सुरक्षित रखा जाये।
इस्लामवादियों को पहली बार 1970 के दशक में संसद में प्रतिनिधित्व मिला जब उनके नेता नेकलेट्टिन एरबाकन ने तीन बार देश के उप-प्रधानमंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। जब तुर्की के मुख्य धारा के राजनीतिक दल अहंकार और भ्रष्टाचार का शिकार होकर छिन्न भिन्न हो गये तो 1996-97 में एरबाकन प्रधानमंत्री बने जब तक कि सेना ने फिर अपनी सर्वोच्चता स्थापित करते हुए उन्हें पदच्युत नहीं कर दिया।
इसके बाद एरबाकन के कुछ सक्रिय और महत्वाकाँक्षी सहयोगियों ने रिसेप तईप एरडोगन के नेतृत्व में अगस्त 2001 में एक नये इस्लामवादी राजनीतिक दल का गठन किया अदालेत वे कलकमा पार्तिसी या एकेपी। केवल एक वर्ष के उपरांत इसे 34 प्रतिशत जनता का समर्थन मिला और तुर्की के अजीब चुनावी नियम के अनुसार संसद में 66 प्रतिशत सीटों पर प्रभाव स्थापित किया।
एरडोगन प्रधानमंत्री बने और कुशल प्रशासन के कारण एकेपी को 2007 के चुनावों में पर्याप्त मात्रा में मतों का लाभ हुआ। नवीनतम जनमत और क्रमशः नेपथ्य में जाती सेना के कारण इन्होंने अनेक झूठे षड्यंत्र सिद्धांतों का सहारा लिया, अपने एक राजनीतिक आलोचक पर 2.5 अरब अमेरिकी डालर का जुर्माना कराया, विपक्ष के नेता को यौन क्रिया में आपत्तिजनक अवस्था में वीडियो टेप कराया और अब संविधान के साथ छेडछाड की योजना बना ली है।
विदेश मंत्री अहमत दावतोग्लू के हाथों में विदेश नीति ने तो और भी ऊँची उडान भरी है जो मध्य पूर्व में तुर्की की पूर्व स्थिति के नेतृत्व को प्राप्त करने के आकाँक्षी हैं। अंकारा ने न केवल साइप्रस के विरुद्ध युद्ध जैसी मानसिकता अपनाई वरन बहुत ही लापरवाही से स्वयं को ईरानी परमाणु तैयारी के मामले में भी शामिल कर लिया और साथ ही अरब-इजरायल संघर्ष में भी। सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात तो IHH नामक् घरेलू तुर्की " प्रदाय" संगठन का समर्थन है जो कि अल-कायदा के साथ सम्पर्कों के लिये अभिलेखित है।
यदि अंकारा के व्यवहार के मध्य पूर्व और इस्लाम पर शोचनीय परिणाम ला सकते हैं तो इसका एक शोचनीय आयाम और भी है। जिसे मैं इस्लामवाद का 2.0 कहता हूँ उसे विकसित करने में तुर्क सबसे अग्रणी रहे हैं जो अयातोला खोमैनी और ओसामा बिन लादेन ने इस्लामवाद 1.0 के द्वारा बलपूर्वक प्राप्त करने का प्रयास किया उसे इस्लामवाद 2.0 लोकप्रिय, अहिंसक और प्रामाणिक तरीके से प्राप्त करने का प्रयास करता है। मेरी भविष्य़वाणी है कि एरडोगन का धूर्त इस्लामवाद " सभ्य जीवन को 1.0 की क्रूरता से भी अधिक खतरा उत्पन्न करेगा"।
परंतु एरडोगन ने जिस प्रकार अपना आरम्भिक सलीका और सतर्कता को ताक पर रख दिया है उससे तो यही लगता है कि इस्लामवादी अपने सहायक कभी नहीं हो सकते और इस्लामवाद का ठगी का मूलभूत गुण सामने आ ही जाता है और इस्लामवाद का 2.0 संस्करण आखिर में 1.0 के संस्करण पर लौट ही जायेगा। जैसा कि मार्टिन क्रामर ने कहा है, " जितना अधिक इस्लामवादी सत्ता के पास जायेंगे उतना ही वे संयम को बाध्य होंगे और उसी अनुपात में उलटा होगा" । इसका अर्थ हुआ कि इस्लामवाद कहीं कम गम्भीर खतरा है, और इसके दो कारण हैं-
पहला, तुर्की विश्व में सर्वाधिक संसाधनसम्पन्न इस्लामवादी आन्दोलन का नेतृत्व कर रहा है जिसमें केवल एकेपी ही नहीं है वरन फेतुल्लाह गुलेन जैसा जनान्दोलन भी है अदनान ओक्तार जैसी प्रचार मशीन भी है और भी बहुत कुछ। एकेपी के नये शत्रुवत व्यवहार ने असहमति उत्पन्न की है उदाहरण के लिये, गुलेन ने गाजा मुक्ति वाले अभियान की सार्वजनिक निन्दा की है जिससे प्रतीत होता है कि रणनीति को लेकर गम्भीर संघर्ष छिड सकता है।
दूसरा, यदि अभी तक केवल कुछ विश्लेषकों ने एरडोगन के इस्लामवादी स्वरूप को मान्य किया था तो अब यह स्वयं ही समस्त विश्व को प्रकट हो रहा है। एरडोगन ने अत्यंत चतुराई से बनाई गयी अपनी पश्चिम समर्थक उदारवादी लोकतांत्रिक मुस्लिम की छवि को अस्वीकार कर दिया है जिससे यह आसान हो गया है कि उन्हें तेहरान-दमिश्क का सहयोगी मान लिया जाये जो कि वह हैं।
जैसा कि दावतोग्लू चाहते हैं कि तुर्की मध्य पूर्व में और उम्मा में केन्द्रीय भूमिका में आ गया। लेकिन साथ ही यह नाटो की पूर्ण सदस्यता के योग्य नहीं रहा और इसके विपक्षी दल पूरे सहयोग के योग्य हैं।