ओबामा प्रशासन और बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार के मध्य खुले टकराव से संयुक्त राज्य अमेरिका और इजरायल के मध्य एक तनाव की स्थिति आ गयी है जिसके दर्शन बुश प्रथम के प्रशासन के दिनों के बाद से नहीं हुए थे। इन तनावों के चलते अमेरिकी यहूदी भारी दबाव में आ गये हैं जिन्होंने कि 1 के मुकाबले 4 के औसत से 2008 में बराक ओबामा को इस आश्वासन के बाद समर्थन दिया था कि जब उनके समर्थकों ने यहूदियों से कहा था कि वह घोर इजरायल विरोधी और सेमेटिक विरोधी जेरेमिया राइट के साथ अपने पुराने सम्बन्धों के बाद भी इजरायल के मित्र हैं और उसके सहयोगी हैं।
हमारा तर्क है कि अमेरिकी यहूदियों को अभूतपूर्व राजनीतिक चुनौती का सामना करना पड रहा है और वह भी ऐसे नाजुक समय में जब कि इजरायल के समक्ष उपस्थित अस्तित्व के खतरे को सुलझाने की आवश्यकता है और अधिक विस्तारित स्वरूप में भविष्य़ में परमाणु शक्तिसम्पन्न होने वाले ईरान के चलते समस्त यहूदी लोगों के भविष्य़ को खतरा है । अमेरिका के यहूदी इस चुनौती का सामना कैसे करें? क्या ओबामा के यहूदी समर्थकों को इस प्रकार कार्य करना चाहिये कि वे वर्तमान समय में व्हाइट हाउस से चलने वाली अमेरिकी नीतियों को बदल सकें? क्या अमेरिका के यहूदियों को बराक ओबामा के इन विचारों को स्वीकार कर लेना चाहिये कि मध्य पूर्व में अमेरिका के रक्त और कोष की क्षति के किये इजरायल उत्तरदायी है? क्या उन्हें ओबामा प्रशासन और बराक ओबामा के राजनीतिक दल को समर्थन देते रहना चाहिये?
मेरे उत्तर निम्नलिखित हैं।
ओबामा प्रशासन में उपस्थित बुद्धिमान लोगों के चलते इन लोगों ने बिना कारण नेतन्याहू सरकार को दो बार उकसाया और फिर उसके सामने हार मानी। दुर्भाग्य से इन पराजयों के बाद भी वे अपने अपरिपक्व उद्देश्य से पीछे नहीं हटे हैं। पहला संघर्ष मई 2009 में आरम्भ हुआ जब विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने जेरुसलम और पश्चिमी तट में इजरायल के निर्माण कार्य को रोकने की माँग की। चार माह उपरांत जब इन बुद्धिमान लोगों को लगा कि इससे इजरायल- फिलीस्तीन कूटनीति में अवरोध उत्पन्न हो रहा है और इन लोगों ने अपने पैर पीछे खींच लिये और डेमोक्रेट पार्टी की पुरानी नीति पर लौट आये कि जेरुसलम से अच्छे सम्बन्ध रखने हैं।
मार्च 2010 में उपराष्ट्रपति जोय बिडेन, क्लिंटन और ओबामा ने एक बार फिर इजरायल के साथ वही संघर्ष ठान लिया और इस बार विशेष रूप से जेरुसलम के साथ। इस बार तो प्रशासन को अपनी मूर्खता से कदम वापस खींचने में केवल छह सप्ताह लगे जैसा कि वाशिंगटन इंस्टीट्यूट में जेम्स जोंस के भाषण और व्हाइट हाउस पर एली विसेल के भोजन से संकेत मिला।
इन रणनीतिक पीछे हटने के निर्णयों के अतिरिक्त दोनों देशों के सम्पर्कों का सिद्धांत और यह नीति कि मध्य पूर्व की अच्छी स्थिति मूल रूप में इस बात पर निर्भर करती है इजरायल और फिलीस्तीन के मध्य समझौता हो और यह नीति ओबामा के राष्ट्रपतित्व के शेष बचे ढाई वर्षों में भी जारी रहेगी और इजरायल तथा अमेरिका के सम्बन्धों को प्रभावित करती रहेगी।
ऐसे कठिन समय में तीन तथ्य मुझे संतोष प्रदान करते हैं। प्रथम, इजरायल के लोग शांति के लिये खतरे उठाने को तैयार हैं और पीडादायक छूट् के लिये तैयार हैं जब इजरायल के संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सशक्त और अच्छे सम्बन्ध रहते हैं तो इजरायल ऐसी भूलें करता है जिन्हें बदलना असम्भव होता है। इसके विपरीत जब इजरायल और अमेरिका के सम्बन्ध कटु होते हैं तो इजरायल गलत निर्णय कम करता है। ओबामा के गलत कदमों का एक यह सुखद पक्ष है।
एक और सुखद पक्ष यह यह है कि इन संघर्षों से ओबामा प्रशासन को एक स्थाई क्षति हुई है कि अमेरिका के इजरायलवादियों की दृष्टि में उन्हें सक्षम रूप से इजरायल समर्थक नहीं माना जा रहा है।
तीसरा, ओबामा का इजरायल के साथ संघर्ष उस समय हुआ है कि जब अमेरिका में इजरायल का सशक्त समर्थन है अभी हाल के जनमत सर्वेक्षण में 1 के मुकाबले 10 लोगों ने फिलीस्तीन के मुकाबले इजरायल का समर्थन किया है। इसके अतिरिक्त अमेरिका और इजरायल के मध्य गहरे मजहबी , पारिवारिक , व्यावसायिक और सांस्कृतिक सम्बन्ध जिसके प्रतीक रूप में अभी हाल में open skies agreement हुआ और ऐसा प्रतीत होता है कि जिस राष्ट्रपति को जबर्दस्त बहुमत मिला हो और जो आने वाले मध्यावधि चुनावों को लेकर चिंतित हो वह तो संघर्ष के रास्ते पर इजरायल समर्थक मतदाताओं के बडे वर्ग को नाराज करके ही ऐसा कर सकता है।
फिर भी मैं एक बात से चिंतित हूँ हालाँकि बहुत नहीं।
इस कार्यक्रम का शीर्षक और प्रश्न अमेरिकी यहूदियों पर केन्द्रित है। परंतु अमेरिका में अरब-इजरायल बहस इस स्वरूप में परिवर्तित हो चुकी है कि अब " यहूदी" ही पूरी तरह इजरायल समर्थक शिविर में शामिल नहीं हैं। जैसे इजरायल के यहूदी आलोचक बढ रहे हैं और स्वयं को संगठित कर रहे हैं ( J Street के बारे में सोचिये) इसी प्रकार इजरायल समर्थक गैर यहूदी ( Christians United for Israel) | इसलिये मेरा सुझाव है कि ऐसे बह्स के लिये " यहूदी" के स्थान पर " इजरायलवाद" नाम दिया जाना चाहिये।