इस्लामवाद के सम्बंध में अमेरिकी सरकार, अन्य सरकारों तथा सामान्य रूप से प्रशासन की नीति की नींव 2 जून 1992 को रखी गयी जब निकट एशिया और दक्षिण एशिया के लिये उप राज्य सचिव एडवर्ड पी जेरेजियान ने वाशिंगटन डी सी में मेरीडियन हाउस इंटरनेशनल में एक व्याख्यान दिया The U.S. and the Middle East In a Changing World । सोवियत यूनियन के पतन, कुवैत युद्ध तथा अरब इजरायल संघर्ष की चर्चा के उपरांत जेरेजियान ने " कट्टरपंथी इस्लाम के सम्बंध में अमेरिकी सरकार का पहला प्रमुख बयान दिया" और मात्र 400 शब्दों में ही उस नीति को रेखाँकित किया जो कि पिछले बीस वर्षों से पूरी निरंतरता के साथ चलती चली आयी है।
जेरेजियान ने आरम्भ करते हुए कहा, " मध्य पूर्व में मजहब की भूमिका अधिक मुखर हो गई है और उस रुझान की ओर लोगों का अधिक ध्यान जा रहा है जिसे कि राजनीतिक इस्लाम कहा जा रहा है, या फिर इस्लाम का अभ्युदय या कट्टरपंथी इस्लाम कहा जा रहा है" । उन्होंने " इस्लाम को विश्व का एक महान धर्म बताया"और कहा कि, " इसकी सांस्कृतिक विरासत विज्ञान , कला संस्कृति तथा ईसाइयत और यहूदियत के प्रति सहिष्णुता के सन्दर्भ में अत्यंत समृद्ध रही है" इसके उपरांत जेरेजियान ने इस्लामवादी आंदोलन की व्याख्या की:
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका के देशों में हम पाते हैं कि कुछ समूह और आंदोलन इस्लामी आदर्श के अनुरूप अपने समाज को सुधारने का प्रयास कर रहे हैं। इन आदर्शों की अभिव्यक्ति को लेकर विविधता है। इन आंदोलनों के पीछे हम किसी समान अन्तरराष्ट्रीय प्रयास को नहीं पाते हैं।
यह विविधता अच्छी है जब तक एक ओर सरकार और दूसरी ओर जनता और दलों तथा अन्य संस्थानों के साथ राजनीतिक वार्ता जारी रहती है। जो लोग स्वतन्त्र निर्वाचन , स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना , विधि के शासन को प्रोत्साहन , प्रेस पर नियंत्रण को कम करने , अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करने तथा व्यक्तिगत अधिकारों की गारन्टी देते हैं हम उनके प्रयासों को स्वीकार करेंगे और उनके प्रयासों में सहयोग करेंगे उसी प्रकार कि जो लोग विपरीत दिशा में जायेंगे हम उनसे भी मधुर ढंग से बात करने को तैयार हैं और उसी प्रकार कृत्य भी करने को तैयार हैं..... जो भी मध्य पूर्व में राजनीतिक भागीदारी को विस्तारित करना चाहता है उन्हें हमारा सहयोग प्राप्त होगा जैसा कि विश्व के अन्य भागों में हमारी भूमिका है।
निश्चय ही वाशिंगटन के , " विश्व के सभी मजहबों के देशों और लोगों के साथ अच्छे और परिणामकारक सम्बंध हैं इसमें वे भी शामिल हैं जिनकी सरकार की व्यवस्था पूरी तरह इस्लामी सिद्धांतों के अनुरूप है" ।परंतु अमेरिकी सरकार , " उन लोगों के प्रति संदेह का भाव रखती है जो कि लोकतांत्रिक पद्धति को सत्ता में आने के लिये प्रयोग करते हैं ताकि सत्ता को बनाये रखने और राजनीतिक वर्चस्व के लिये उसी प्रक्रिया को नष्ट कर सकें। हम " एक व्यक्ति , एक मत" के सिद्धांत का समर्थन करते हैं परंतु हम "एक व्यक्ति एक मत एक बार" के सिद्धांत का समर्थन नहीं करते"।
इसके उपरांत जेरेजियान सिद्ध करते हैं कि चिंता राजनीतिक है मजहबी नहीं है। उनके शब्दों में: " दूसरे देशों के साथ हमारे सम्बंधों के स्वरूप में मजहब कहीं भी प्रभावी तत्व नहीं है फिर वह सकारात्मक हो या नकारात्मक । हमारा झगडा अतिवाद और हिंसा से है अधिकारों से वंचित रखने से है , असहिष्णुता से है , भयभीत करने के प्रयास और कुछ अवसरों पर जो आतंक इसके साथ जुडता है" ।
इसके साथ ही व्याख्यान का सबसे महत्वपूर्ण उद्धरण ; "अमेरिकी सरकार इस्लाम को अगले " वाद " के रूप में नहीं देखता जो कि पश्चिम के साथ संघर्ष कर रहा है या विश्व की शान्ति के लिये खतरा है। यह एक जटिल वास्तविकता का अत्यंत सरलीकरण है। शीत युद्ध का स्थान अब इस्लाम और पश्चिम के मध्य स्पर्धा ने नहीं लिया है" ।
टिप्प्णी: जेरेजियान मूलरूप में एक त्रुटिपूर्ण अनुमान लगाते हैं कि इस्लामवादी " व्यापक राजनीतिक भागीदारी" के अभिकर्ता ( एजेंट ) हो सकते हैं । यह भ्रम दो दशक के उपरांत भी विद्यमान है और यह आशा राज्य विभाग और समस्त प्रशासन की अब भी है। सामान्य तौर से कहें तो एक गहराई से लोकतंत्र विरोधी विचारधारा लोकतंत्र नहीं ला सकती । इस्लामवादियों ने इस आशा को अलग अलग स्थानों पर जब तब उठाया है जिसमें कि मिस्र में हो रहे वर्तमान राष्ट्रपति चुनाव हैं जहाँ कि वे स्वयं को लोकतांत्रिक रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। परंतु वे कभी भी नहीं हैं।