वर्ष 2011 में अरब के तीन तानाशाहों ने समस्त जीवन के लिये सत्ता खो दी है। ट्यूनीशिया के बेन अली ने 14 जनवरी को, मिस्र के मुबारक ने 11 फरवरी को और लीबिया के कद्दाफी ने 20 अक्टूबर को। अब ऐसा प्रतीत होता है कि वर्ष 2012 का पहला अरब तानाशाह गिरा यमन के अली अब्दुल्लाह सालेह के रूप में ।
प्रतीत होता है इसलिये कहा जा रहा है क्योंकि यह लगातार चलने वाली प्रक्रिया है और इसके अनेक मोड हैं जिसमें कि 23 नवम्बर को सालेह का त्यागपत्र तथा 21 फरवरी को निर्वाचन भी शामिल है साथ ही आज उनके उत्तराधिकारी आबेद राबू मंसूर आदी का धूम धाम से हो रहा शपथ ग्रहण समारोह है। Pipes rule of Arab elections के अनुसार ( विशेष रूप से यदि आप परिणाम को पहले से ही जानते हैं तो आप सत्ता के दलाल को अपना मत दे रहे हैं और यदि आप परिणाम को पहले से नहीं जान रहे हैं तो आप उसे मत दे रहे हैं जिसका शायद ही कोई महत्व हो) और राष्ट्रपति के लिये हादी का एकमात्र प्रत्याशी होना इस बात को सिद्ध करता है कि उनके पास वास्तविक सत्ता है। वैसे भी वे 1994 से देश के उपराष्ट्रपति हैं और यमन की सशस्त्र सेना के फील्ड मार्शल हैं।
परंतु जैसा कि न्यूयार्क टाइम्स की लौरा कासिनोफ ने इसे प्रकार कहा है, " सालेह का अब भी काफी प्रभाव है। उनके रिश्तेदारों का सेना पर काफी नियंत्रण है साथ ही सरकार और सुरक्षा एजेंसियों पर और यह देखना शेष है कि श्रीमान हादी कितना स्वतंत्र रह पाते हैं जो कि लम्बे समय तक सालेह के स्वामिभक्त रहे हैं और आगे भी रहेंगे"। तो हादी को पदारूढ करना सालेह की एक चाल है ताकि सत्ता पर नियंत्रण स्थापित रखा जाये। देखते हैं।
इस क्रम में पाँचवा कौन है ? बसर अल असद । इसके उपरांत यह स्पष्ट नहीं है कि छठा क्रम किसका है परंतु मैं शर्त लगा सकता हूँ कि जार्डन का नया अस्थिर राजा अब्दुल्लाह II और वह भी अपने राजनीतिक आधार बेदोविन में इस्लामवाद के बढते प्रभाव से मुकाबला कर पाने की अपनी अक्षमता के चलते।