ट्यूनीशिया में अभी सम्पन्न हुई सीरिया के मित्रों "Friends of Syria" meeting की बैठक के अवसर पर सीरिया के सम्बन्ध में अमेरिकी नीति पर कुछ विचार:
शीत युद्ध की समाप्ति के पश्चात के बाद से अनेक अमेरिकावासी सोचते हैं कि अमेरिका काफी शक्तिशाली हो गया है इसलिये उसे अपनी सुरक्षा की चिंता नहीं करनी चाहिये और वह अन्य लोगों की मानवीय चिन्ताओं पर तत्काल ध्यान देने की स्थिति में है। इस भावना से अमेरिका की विदेश नीति " युद्ध एक समाज सेवा" की ओर जाती है जिसमें कि उन लोगों के कल्याण के लिये जिनका कि अमेरिका के सहयोगी के रूप में ( अफगान, इराकी,लीबियावासी सीरियावासी) रिकार्ड बुरा रहा है देश के हितों को दरकिनार किया जा सकता है। वास्तव में तो अमेरिका का हित प्रायः मध्य पूर्ववासियों से अलग होता है। जैसा कि छह वर्ष पूर्व मैंने इसे इस प्रकार कहा था, " जब सुन्नी आतंकवादी शिया को निशाना बनाते हैं या इसके विपरीत होता है तो गैर मुस्लिम को इससे कम ही क्षति होती है" ।
यदि इस रुख से सीरिया के संकट को देखा जाये : सुखद समाचार है कि घृणित असद सल्तनत अब समाप्त होने को है। ऐसा शैतान जिसे हम नहीं जानते उससे तो बेहतर नहीं है जो अधिनायकवादी शासन हो " जो कि अपने लोगों पर अत्याचार करे , अपने पडोसियों को धमकी दे तथा तेहरान में मुल्लाओं को महत्वपूर्ण सहयोग प्रदान करे।
इस आधार पर मैं अमेरिकी की किसी कार्रवाई का समर्थक नहीं हूँ और शासन तथा विरोधियों के संघर्ष के चलते चाहता हूँ कि ऐसी चीजें निकल कर आये:
- शासन अपने पडोसियों के लिये कम संकट उत्पन्न कर सके।
- ईरानवासी इससे प्रेरणा लेकर अपने शासन के विरुद्ध विद्रोह कर सकें।
- अधिक सुन्नी अरब तेहरान के विरुद्ध आक्रोश में आयें। जैसा कि सीरिया के विश्लेषक गैरी गैम्बिल ने इसे इस प्रकार रखा है, " इसमें क्या गलत है कि ईरान की यथास्थिति सीरिया के साथ जुडी है? "
- मास्को और पेकिंग के विरुद्ध उनका आक्रोश बढेगा।
इसके आगे असद शासन को उख़ाड फेंकने से देश का गृह युद्ध अपने आप समाप्त नहीं हो जायेगा। इसकी सम्भावना अधिक है कि इसके विपरीत हो जब अलावी और अन्य विद्रोही सुन्नी इस्लामवादी शासन से लड रहे हों।
आप मेरी इस विशिष्ट स्थिति से सहमत हों या न हों परन्तु अमेरिका के लोगों को सीरिया के मामले को रणनीतिक रूप से लेना चाहिये और एक खतरनाक विश्व में अपनी सुरक्षा को पहली प्राथमिकता बनाकर चलना चाहिये। (25 फरवरी, 2012)
ज़ुहदी जासेर ने उत्तर दिया: " क्षेत्र में इस्लामवाद को परास्त करने का एक ही मार्ग है कि शक्तिआधारित मुक्ति अवधारणा का समर्थन केवल शब्द से नहीं कार्य से किया जाये"
प्रिय डा. पाइप्स,
अपने पूर्वाग्रहों से परे सीरिया के साथ अपने विकट पारिवारिक लगाव के चलते आपके हाल के इस बयान से मुझे बडा आश्चर्य हुआ । वैसे इराक और अफगानिस्तान के कटु अनुभवों के बाद आपकी कुछ भावना को मैं समझ सकता हूँ जिससे कि आप चाहते हैं कि हमारा देश अनिश्चित और खतरनाक सीधे शामिल होने के मार्ग के स्थान पर शामिल न होने को चुने। वैसे मैं भी धरती पर पैर जमाने की बात नहीं कर रहा हूँ। सबसे पहले तो अभी कल सीरिया में उभर रहे सीरिया के लोकतांत्रिक गठबंधन का बयान और प्रेस वक्तव्यpress release and recent statement जो कि हम सीरिया में अमेरिका से चाहते हैं। उसका अवलोकन करें इसके उपरांत आपकी स्थिति पर कुछ रचनात्मक आलोचना:
1- अमेरिका की नरम शक्तियाँ अब लगभग लुप्त हो चुकी है और यदि हम कुछ नहीं करेंगे तो सीरिया के लोग लम्बे समय तक याद रखेंगे कि इस्लामवादी देशों ( के एस ए , खाडी देश , तुर्की आदि) ने उनकी सहायता की थी। यदि हम शब्दों से परे उनकी सहायता करेंगे तो इससे हमें सीरिया की सडकों पर विश्वसनीयता प्राप्त होगी और हम उनकी यह धारणा दूर कर सकेंगे कि हम सदैव दो सबसे बुरी शक्तियों को चुनते हैं और उनके उत्पीडकों को सहायता प्रदान करते हैं।
2-आपका तर्क आवश्यक रूप से अकेले रहने का है और कुछ हद तक यह कि हमें सीरिया को उसके आन्तरिक संघर्ष पर छोड देना चाहिये। यह बात तब समझ में आती थी जब सीरिया शून्य की स्थिति में होता परन्तु ऐसा नहीं है। ऐसी स्थिति में अमेरिका के अलग थलग रहने का अर्थ है रूस, ईरान और कुछ अर्थ में चीन के समक्ष नतमस्तक हो जाना। वे अरबों और हथियार के साथ पूरी तरह शामिल हैं। हमारी कार्रवाई नहीं करने का अर्थ है कि सीरिया को उस पक्ष के लिये छोड देना और असद को उनकी जनसंहारक सेना के साथ लोगों को मारने के लिये छोड देना। सीरिया की सभ्यता को इन शक्तियों के हवाले छोड देना और इन हत्याओं को चलने देने से यह हमारे हित में नहीं होगा और इस क्षेत्र में और धरती पर हमारी नैतिक स्थिति को प्रभावित करेगा।
3-लिंकन ने अमेरिका को " पृथ्वी की अंतिम सबसे अच्छी आशा बताया था" । आपके तर्कों से असहमत होते हुए और नौसेना में कार्य करते हुए उसके अधिकारियों से मैं सुनता रहा कि हम स्वतंत्रता के गुण के वाहक हैं और हमें इसका पालन न केवल अमेरिका के हित में वरन अन्य स्थलों पर बुराई के विरुद्ध उठकर करना चाहिये जो कि हमारा नैतिक कर्तव्य है। व्यक्तिगत अधिकार और मुक्ति के लिये हमें उठना चाहिये फिर वह अल कायदा हो या इस्लामवादी हों और इसका आरम्भ तानाशाही और उत्पीडन के प्रति हमारे व्यवहार से होता है। इसी आधार पर इराक में हमारी सेना के नियंत्रण को मैंने न्यायसंगत ठहाराया था। यदि हम इस्लामवाद को वैश्विक आधार पर परास्त करते हैं तो यह विचार के स्तर तक ही सीमित है और आपका शामिल न होने की सलाह के बाद हम इस अवसर को इस्लामवादियों को प्रदान कर रहे हैं। यदि आप चाहते हैं कि उदारवादी मुस्लिम खडे हों तो हमें भी उनके साथ खडा होना होगा। लोकतंत्र के लिये गुट खडा करने के लिये पीढीगत परिवर्तन आवश्यक होगा।जैसा कि फौद आजमी ने भी वर्ल्ड स्ट्रीट में कहा है।
4-हमें सत्ता परिवर्तन और सतत पारदर्शी रुख लेना होगा अन्यथा अमेरिका की नरम शक्ति और क्षीण होगी और हमारे बारे में यही धारणा बनेगी कि हम निष्प्रभावी आडम्बरी और स्वार्थी अमेरिकी हैं। "उन्हें एक दूसरे को मारने दो" जिस वाक्याँश का प्रयोग आपने किया है उसे हमारे परिवार ने झेला है जब हामा, पल्मीरिया सहित अन्य नरसंहारों में पश्चिम शांत बैठा रहा अब 1982 के बचने के तर्क अमेरिका के लिये लागू नहीं होते। अब हम अपनी आंखें खोलकर अवहेलना कर रहे हैं।
5-अंत में मेरे लिये सबसे महत्वपूर्ण तर्क "नैतिक बाध्यता" का है। मेरा मानना है कि हमें ईश्वर ने जो गुण दिया है कि हम विश्व का पुनर्निर्माण करें वह "टिकुम अलुम" के यहूदी परम्परा से भिन्न नहीं है। एक वर्ष से चले आ रहे इस अमानवीय युद्ध को चलते रहने देने और देखते रहने से यह मेरे देश के और मेरे व्यक्तिगत नैतिक दायित्व के विपरीत है।
6-साथ ही मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि आप एड हुसैन जैसे लोगों के तर्क का समर्थन क्यों कर रहे हैं कि जो इस बात की वकालत कर रहे हैं कि असद के बाद अल कायदा , साम्प्रदायिक हिंसा की स्थिति आ जायेगी इसलिये पश्चिम को व्यावहारिक आधार पर बुराई का साथ देना चाहिये दोनों में से जो कम बुरा है। यह आपकी स्थिति क्यों है जबकि आपने हफीज असद के बारे में लिखा है और असद शासन के बारे में जानते हैं लेकिन अब जो आप लिख रहे हैं वह आपको शासन के लिये क्षमाप्रार्थी लोगों की सूची में खडा करता है और यह उसके अनुकूल नहीं है जो कि हमने इराक में किया जो कि बुश का स्वतंत्रता एजेंडा था और न ही यह नवपरम्परावादियों के दर्शन के अनुकूल है।
आपके समय के लिये धन्यवाद
एम ज़ुहदी जासेर
स्थापना सदस्य , सेव सीरिया नाव
( सीरियन डेमोक्रेटिक एलायंस के सदस्य)
26 फरवरी, 2012
Daniel Pipes responds:
डैनियल पाइप्स का उत्तर
प्रिय डा , जासेर
मैं आपके साहस और बुद्धिमत्तापूर्ण स्थिति की सराहना करता हूँ जो कि महत्वपूर्ण विषय पर आपने दिखाया है और आपने अनेक बिंदु उठाये हैं। मेरा उत्तर :
1-आपका पूर्वानुमान है कि सीरिया के लोग उन्हें मुक्त कराने में अमेरिका के प्रयासों की सराहना करेंगे । मुझे स्मरण है कि इराक और अफगानिस्तान में लोगों को कितना याद है कि अमेरिका सरकार ने क्या किया और मुझे यहाँ भी संदेह
2-जनसंहारक सैन्य मशीन समस्त विश्व में है और अमेरिका की सरकार उनसे युद्ध नहीं कर रही है। निश्चित रूप से सीरिया का मामला कांगो के भयावह दृश्य के मुकाबले कम है जहाँ लाखों लोग मारे जा चुके हैं। सिद्धांत रूप में मैं बाहर हस्तक्षेप का समर्थक हूँ लेकिन कुछ विदेशी सेना की टुकडी के साथ परंतु सीरिया में ऐसा करने का समर्थक मैं नहीं हूँ। यहाँ इस बात की सम्भावना अधिक है कि हमारे हस्तक्षेप से इस्लामवादी सरकार सत्ता में आयेगी।
3-मैं अमेरिका के प्रति आपकी प्रशंसा के साथ हूँ और इस भावना के साथ भी कि इस देश को व्यक्तिगत अधिकार और मुक्ति के लिये खडा होना चाहिये। यदि मुझे लगता कि सीरिया में हस्तक्षेप से सकारात्मक परिणाम आयेगा तो मैं इसका समर्थन करता। परंतु इस्लामवादी भविष्य की सम्भावना के चलते मैं इससे अलग हूँ ।
4-यदि आपके तर्क को माना जाये कि (1) अमेरिकी सेना को अमेरिकी हितों के स्थान पर पूर्णकालिक रक्षक बन जाना चाहिये (2) यह सतत होना चाहिये , तो इसके लिये उसे प्रत्येक मानवीय स्थित में तैनात करना होगा और असफल राज्यों की एक सूची के अनुसार कुल 47 देश ऐसे हैं one listing of failed states जो कि सीरिया से भी बुरी स्थिति में हैं जिनमें कि सोमालिया , चाड , सूडान , लोकतान्त्रिक गणराज्य कांगो और हैती शामिल हैं।
5-मेरे दो प्रमुख बिंदु पुनः: मेरा भय है कि सीरिया मे हस्तक्षेप से इस्लामवादी शासन तीव्रता से आयेगा और इसके साथ अन्य भी बुरी स्थिति होगी।
6-आपने सही ही कहा है कि मैं असद परिवार और शासन और उसके कार्यों को जानता हूँ ।यह भी सत्य है कि कुछ अन्य अरुचिकर लोग भी मेरे जैसे विचार के हैं परंतु अन्य लोग आपके विचार जैसे भी हैं उदाहरण के लिये अभी हाल में हमास असद शासन के विरोध में सामने आया । यदि आप मुझे एड हुसैन से नहीं जोडेंगे तो मैं आपको हमास के साथ नहीं जोडूँगा। कितना भी भयावह स्थिति दिखती हो परंतु मेरी आशा है कि हत्या का दौर बंद होगा असद शासन का पतन होगा और एक उत्तरदायित्वपूर्ण , आधुनिक सरकार उसका स्थान लेगी।
शुभाशीष
डैनियल पाइप्स
26 फरवरी, 2012
28 फरवरी, 2012 अपडेट : सीरिया में रिफार्म पार्टी के फ़रीद घाद्री ने इस परस्पर आदान प्रदान पर टिप्प्णी की Let Us Do Our Job । उन्होंने डा. जासेर के विचारों का समर्थन किया और तर्क दिया, " विचारों के युद्ध से इस्लामवाद को पराजित किया जाता है । परंतु आप इस्लामवाद को कैसे परास्त कर सकते हैं जब आप तानाशान के रूप में उसे आक्सीजन प्रदान करा रहे हैं? "
7 जुलाई, 2012 अपडेट : Rasmussen U.S.national survey रासमुसेन अमेरिका राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार सम्भावित 1,000 मतदाता सीरिया में अमेरिका के हस्तक्षेप के लिये अधिक उत्सुक नहीं दिखे। 5 और 6 जून को ( भूल की 3 प्रतिशत अधिक और कम की सम्भावना के साथ 95 प्रतिशत आत्मविश्वास के साथ) को जब यह प्रश्न किया गया कि , " क्या अमेरिका को सीरिया के संकट में अधिक सीधे रूप से शामिल होना चाहिये या स्थिति को अपने हाल पर छोड देना चाहिये?
20 प्रतिशत ने कहा अधिक शामिल होना चाहिये।
50 प्रतिशत ने कहा स्थिति को अपने हाल पर छोड देना चाहिये।
30 प्रतिशत कुछ भी निर्णय नहीं कर पाये।