पश्चिमी राजनयिक और पत्रकार स्टालिन की बात भले ही कितनी करें परंतु सोवियत संघ से इन्होंने वास्तव में कुछ नहीं सीखा है। सोवियत संघ में अंत में दिनों में यदि किसी विदेशी दूतावास पर आक्रमण होता तो यह माना जाता कि इसके पीछे राज्य की सहमति है।
अन्य अधिनायकवादी भी इसी प्रकार की योजना और भ्रम का उपयोग करते हैं। वास्तव में तो हमें अधिनायकवाद को ध्यान में रखने के लिये सोवियत संघ को समझने का प्रयास करना चाहिये। यही कुछ मामला 9 सितम्बर को काइरो में इजरायल के दूतावास लोगों के आक्रमण का भी है।
जो दिखता है: आक्रमणकर्ताओं ने तहरीर चौक पर सेक्युलर उदारवादी प्रदर्शन में भाग लिया तो क्या उदारवादी आक्रमण के पीछे थे। या फिर इस्लामवादी । कुछ भी हो लेकिन कुछ समय पश्चात मोहम्मद तंतावी के शासन ने बिना किसी क्षति के दूतावाद के लोगों को बचा लिया हालाँकि दूतावास को क्षति हुई। निष्कर्ष क्या निकला: जिस प्रकार पश्चिम को मुबारक की आवश्यकता थी उसी प्रकार इस्लामवादियों से बचने के लिये इसे तंतावी की आवश्यकता है।
वास्तविकता: यदि पृष्ठभूमि पर नजर डालें, जब एक युवा मिस्री ने इजरायल के दूतावास पर चढकर वहाँ से इजरायल का ध्वज हटाकर मिस्र का ध्वज लगा दिया था तो शासन ने इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की और उसे मुफ्त में एक अपार्टमेंट दिया था।
9 सितम्बर को उदारवादी तहरीर चौक पर एकत्र हुए और उन्हें लगा कि सुरक्षा सेवा के वाहन से हथियार के साथ कुछ लोग उतर रहे हैं और उन्हें भय लगा कि ये लोग उन पर आक्रमण कर सकते हैं। बाद मे उदारवादियों के साथ ये लोग इजरायल के दूतावास तक गये और उस पर आक्रमण कर दिया । दूतावास के पास घन्टों सुरक्षा की व्यवस्था नहीं थी और अनुमान लगाया जा सकता है कि गुंडो को आक्रमण करने की अनुमति दी गयी। जब लगा कि चीजें नियंत्रण से बाहर चली जायेंगी तो शासन ने हस्तक्षेप किया।
सैन्य नेतृत्व द्वारा यह मेधावी कदम था, इससे सात उपलब्धियाँ प्राप्त हुईं।
- आक्रमण के इजरायल विरोधी स्वरूप के चलते घरेलू स्तर पर इस्लामवादी सैन्य शासन से प्रसन्न हो गये।
- उदारवादी प्रदर्शनकारियों की प्रतिष्ठा खराब हुई।
- इससे सेना को अपने आंतरिक प्रतिद्वदियों प्रधानमंत्री को परास्त करने में सहायता मिली जैसा कि उनके तात्कालिक त्यागपत्र से पता चलता है और फिर वे वापस भी आ गये।
- इससे मार्शल शासन की सम्भावित वापसी भी न्यायसंगत सिद्ध हो गयी। 1981 में सदात द्वारा लगाये जाने से भी अधिक परिपूर्ण स्थिति। जैसा कि सूचना मंत्री ओसामा हेकाल ने टेलीविजन पर कहा कि अधिकारी सभी आपातकालीन कानून प्रयोग करेंगे।
- इससे इजरायल पर दबाव बढा कि वह मिस्र को और अधिक रियायत दे।
- इससे अरब मुस्लिम देशों में तंतावी की स्थिति और मजबूत हुई और इसने पश्चिम को भी याद दिलाया कि इस्लामवादियों को परे रखने के लिये उसे तंतावी की आवश्यकता है।
टिप्पणी: इस छोटे से नाटक से पुष्ट होता है अब भी मिस्र पर सेना का शासन है जो कि अच्छे से धोखा दे रहा है और उदारवादी और इस्लामवादी 1952 से लेकर अब तक किनारे ही हैं।