किसी राजदूत को देश से बाहर से निकालना कूटनीतिक भाषा में वैसे ही है कि जैसे पति को सोने के कमरे से बाहर निकालकर दूसरे कक्ष में रहने का आदेश देना। हो सकता है कि यह तात्कालिक हो परन्तु यह कचोटता है।
अंकारा ने इजरायल के राजदूत को बाहर करने का जो निर्णय लिया है ( वैसे भी वे कुछ ही दिन में देश छोडने वाले थे) सम्भवतः वह तात्कालिक अलगाव से कुछ अधिक का संकेत देता है। एक तो इससे दोनों देशों के सम्बंध का स्तर घटकर दूसरे सचिव के दर्जे का हो गया है जिसमें कि सभी सैन्य समझौते स्थगित कर दिये गये हैं और शायद इससे आगे चलकर अधिक शत्रुवत आर्थिक, कूटनीतिक और रक्षा के क्षेत्र में कदम उठाये जायें। दूसरा, यह तुर्की की विदेश नीति के नये सिरे से स्वरूप ग्रहण करने की प्रक्रिया की व्यापक परिपाटी का अंग है। जिसके अंतर्गत यह देश पश्चिम से विमुख होकर अधिक इस्लामवादी स्वरूप ग्रहण कर रहा है जो कि तेहरान और रियाद से भी अधिक स्पष्ट है।
यद्यपि तुर्की में जो परिवर्तन एक दशक से हो रहा है उससे चिंतित और दुखी हूँ पर मुझे लग रहा है कि इसे आधुनिकता और नरमपंथ के माडल के रूप में अन्य मुस्लिम भी अपना सकते हैं ।वैसे मैं इस बात से काफी संतुष्ट हूँ कि इजरायल के दूत ने अंकारा छोड दिया है और इससे रिसेप तईप एरडोगन और एकेपी के इस नाटक को लोग जान सकेंगे और अनुमान लगा सकेंगे कि तुर्की किस प्रकार पश्चिम के शत्रु के रूप में स्वयं को नये सिरे से ढाल रहा है।
मैंने पहले भी कहा है और उसे दुहरा रहा हूँ कि अब यह सहयोगी नहीं रहा और अब समय आ गया है कि तुर्की की सरकार को नाटो गठबंधन की सदस्यता से हटा दिया जाये या अस्थाई तौर पर बाहर कर दिया जाये।