आज के ही दिन एक वर्ष पूर्व अधिकारी फादिया हमदी ने ट्यूनीशिया के छोटे से शहर सिदी बौजीद में फल विक्रेता मोहम्मद बउजीजी के चेहरे पर एक झापड जड दिया था जिसने कि उथल पुथल का आरम्भ किया जिसके चलते तीन अरब तानाशाहों को समस्त जीवन के लिये सत्ता छोडनी पडी: ट्यूनीशिया के बेन अली ने 14 जनवरी को त्याग पत्र दे दिया, मिस्र के मुबारक ने 11 फरवरी को अपने पद से त्याग पत्र दे दिया तथा लीबिया के कद्दाफी को 20 अक्टूबर को मार डाला गया । ( इसके अतिरिक्त यमन के सालेह ने भी 23 नवम्बर को त्याग पत्र तो दे दिया है परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि वास्तव में अपना पद छोडने के बाद भी वे सत्ता में बने रहेंगे)
उस झापड पर तीन विचार: पहला, इससे मस्तिष्क में प्रसिद्ध पंखे की घटना तैर जाती है ( फ्रेंच में le coup d eventail ) कि जब पडोसी अल्जीरिया में 29 अप्रैल 1827 में जब अल्जीयर्स के दिनों में ( क्षेत्र के आटोमन शासक) हुसैन बेन हसन ने फ्रांसीसी दूत पीर डेवाल को अपने पंखे से मार दिया था। फ्रांसीसी सरकार ने इस घटना का सहारा लेकर समस्त अल्जीरिया को अगले तीन वर्षों में जीत लिया और वहाँ 132 वर्षों तक जमे रहे। यह जानते हुए भी कि पंखे की घटना निर्मित हुई थी जबकि एक वर्ष पूर्व की झापड की घटना वास्तविक थी तो भी दोनों में काफी समानता है।
Anonymous, Le coup d'eventail, 1827 |
दूसरा, झापड से तितली प्रभाव का विचार पुष्ट होता है जो विचार 1972 में मैसच्यूयेट्स संस्थान के तकनीक विभाग के प्रोफेसर एडवर्ड लोरेंज ने अपने अकादमिक लेख के द्वारा दिया था , " ब्राजील में तितली जब अपने पर फड्फडाती है तो इससे टेक्सास में तेज हवा का तूफान आता है" ? अर्थात दूर घटित किसी छोटी सी घटना का व्यापक और अप्रत्याशित परिणाम हो सकता है।
तीसरा, पिछले वर्ष की घटनाओं से सभी देश यह मानने की भूल नहीं करेंग़े कि मुसलमान भाग्यवादी हैं। जैसा कि 1983 में मैंने परा आधुनिक जीवन के सम्बंध में कहा था, " यद्यपि मुस्लिम जनता के लिये अरबी शब्द " रायिया ( दबे कुचले लोग) प्रयोग किया जाता है जिससे कि उनकी निष्क्रियता का बोध होता है , यह मानना उचित होगा कि वे ऐसे पशु हैं जो कि सामान्य रूप से शांत और संतुष्ट रहते हैं , कुछ अवसरों पर अधिकारियों के विरुद्ध होते हैं और भगदड मचाते हैं । परम्परागत व्यवस्था को अस्वीकार करने की स्थिति कभी कभी ही होती है वह भी बहुत संकट में परंतु ऐसा इतनी बार होता है कि मुस्लिम शासकों को सतर्क रहना चाहिये"। वास्तव में इन शासकों को अपनी जनता की विस्फोटक स्थिति को कमतर नहीं आँकना चाहिये।