तुर्की और ईरान मध्य पूर्व के दो सबसे बडे , केंद्रीय , प्रगति किये हुए और प्रभावशाली देश हैं और दोनों देशों के मध्य प्रतिद्वन्द्विता का इतिहास ओटोमन सफाविद के समय से लेकर अभी हाल में 1990 के दशक में रहा है। हालाँकि पिछले दशक में दोनों देशों के सम्बंध अच्छे रहे जबकि दोनों के यहाँ इस्लामवाद का प्रयोग हुआ ।
फिर भी मैं देख रहा हूँ कि इन दो क्षेत्रीय शक्तियों के मध्य तनाव बढ रहा है और मेरी भविष्यवाणी है कि यह आगे भी जारी रहेगा और किसी को भी पता नहीं है कि अंतिम बिंदु क्या होगा? इस वेबलाग में इनके सम्बंध के कुछ रोचक घटनाक्रम को आनुक्रमिक आधार पर दिया जा रहा है।
पैट्रियट मिसाइल: ईरान की सेना के चीफ आफ स्टाफ मेजर जनरल हसन फिरोजाबादी ने 15 दिसम्बर को कहा कि तुर्की में नाटो की पैट्रियट मिसाइल को तैनात करने से युद्ध का आरम्भ हो सकता है: " प्रत्येक पैट्रियट मिसाइल वैश्विक मानचित्र पर काला चिन्ह दिखाती है। वे विश्व युद्ध की योजना बना रही हैं और यह मानवता के भविष्य और विशेष रूप से यूरोप के लिये खतरनाक है"
( 16 दिसम्बर,2012)
सीरिया: तुर्की के उप विदेश मंत्री बुलेंट अरिंक ने तेहरान पर आरोप लगाया कि उसने असद शासन के उत्पीडन पर चुप्पी साधकर इस्लामी सिद्धांतों के साथ धोखा किया है: " अच्छा, इस्लामी गणतंत्र ईरान ! आपके नाम के साथ " इस्लामी" लगा है मुझे नहीं पता आप इसके लिये कितने योग्य हैं ( इस नाम के) लेकिन क्या आपने सीरिया में पिछले दो दिनों की घटना पर एक शब्द भी बोला है?" इस्तांबूल के फेथ विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय सम्बंधों के सहायक प्रोफेसर सावास जेंक ने भविष्यवाणी की , " ईरान और तुर्की के मध्य प्रतिस्पर्धा पहले से कहीं अधिक कठिन होने जा रही है" ( 12 फरवरी, 2012)
नाटो की मिसाइल व्यवस्था: ईरान की संसद की राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति आयोग के उपाध्यक्ष हुसैन इब्राहिमी ने चेतावनी दी है कि ईरान पर आक्रमण से तुर्की में स्थित नाटो मिसाइल व्यवस्था तक यह आक्रमण जा सकता है। शार्क समाचार पत्र के साथ साक्षात्कार में ईरानी संसद सदस्य ने कहा कि तुर्की में लक्ष्य को निशाना बनाना ईरान का स्वाभाविक अधिकार है और निश्चित रूप से ऐसा किया जायेगा। " हमारे विरुद्ध आक्रमण की दशा में अपनी रक्षा हमारा अधिकार है" ( 13 दिसम्बर, 2011)
नाटो मिसाइल व्यवस्था: इस्लामी रिवोल्यूशनरी गार्ड कार्प्स के एरोस्पेस कमांडर के ब्रिगेडियर जनरल अमीर अली हाजीजादेन ने चेतावनी दी है कि ईरान आक्रमण की प्रतिक्रिया में तुर्की के नाटो मिसाइल कवच को निशाना बनायेगा:
" हमने अपनी तैयारी कर ली है यदि ईरान के विरुद्ध कोई खतरा आता है तो हम तुर्की में नाटो की मिसाइल व्यवस्था को निशाना बनायेंगे और उसके बाद अन्य लक्ष्यों को निशाना बनायेंगे.... हमें पूरा विश्वास है कि मिसाइल व्यवस्था को अमेरिका ने इजरायल शासन के लिये स्थापित किया है परन्तु विश्व को धोखा देने के लिये विशेष रूप से तुर्की को धोखा देने के लिये उनका कहना है कि यह व्यवस्था नाटो की है । तुर्की नाटो का सदस्य है और नाटो के लिये रक्षा कवच है। आज नाटो अमेरिका के हर कदम के लिये कवच है और अमेरिका स्वयं इजरायल शासन के लिये कवच बन चुका है"
(26 नवम्बर, 2011)
पीकेके: सोनेर काग़ाप्टे ने व्याख्या की, "आखिर सीरिया और ईरान फिर से तुर्की के शत्रु क्यों बन रहे है"
2003 में इराक युद्ध के आरम्भ के साथ ही तुर्की और ईरान एक तरह से मित्र बन गये। अपने पूर्व में अफगानिस्तान में और पश्चिम में इराक में अमेरिकी सेना की उपस्थिति के आधार पर तेहरान ने निष्कर्ष निकाला कि इसे अपने पडोसी तुर्की के साथ अच्छे सम्बंध बनाने होंगे ताकि इसे अलग थलग करने के लिये अमेरिकी नीत ताने बाने को तोड सके। पीकेके के किये ईरान का समर्थन समाप्त हो गया जिस दिन से अमेरिका की सेना ने इराक में कदम रखना आरम्भ किया।
आठ वर्षों के उपरांत तेहरान अपनी रणनीति पर पुनर्विचार कर रहा है। इराक से अमेरिकी सेनायें वापस जा रही हैं और ईरान का इस क्षेत्र में प्रभाव बढ रहा है और अब इसे लगता है कि तुर्की के प्रति इसे दूसरे ढंग से पेश आना चाहिये।
(29 अक्टूबर, 2011)
सत्ता का खेल: वाशिंगटन इन्स्टीट्यूट फार नियर ईस्ट पोलिसी के टर्किश रिसर्च प्रोग्राम के निदेशक सोनेर कागाप्टे ने तुर्की और ईरान की प्रतिद्वन्द्विता के बारे में कहा है।
आने वाले वर्षों में मध्य पूर्व में अधिक प्रभाव छोडने वाली प्रतिद्वन्द्विता अरब इजरायल संघर्ष या सउदी ईरान तनाव नहीं होगा। यह एक बार फिर से नई हुई तुर्की और ईरानी प्रतिस्पर्धा होगी। वास्तव में तुर्की और फारस की प्रतिद्वन्द्विता मध्य पूर्व का सबसे पुराना सत्ता का खेल है....
उदाहरण के लिये इराक में उनकी प्रतिस्पर्धा। वैसे तो इराक युद्ध का विरोध तुर्की और इराक दोनों ने ही किया था परंतु इराक के चुनावों में दोनों ने ही एक दूसरे के विरोधी पक्ष का सहयोग किया। आज तेहरान और अंकारा एक दूसरे के विरोधी हैं और दोनों में से कोई भी नहीं चाहता कि किसी दूसरे का बगदाद या इराकी कुर्द पर प्रभाव रहे।
अभी हाल में तुर्की और फारस की प्रतिस्पर्धा सीरिया के मामले में सामने आयी। अंकारा ने अल असद शासन द्वारा प्रदर्शकारियों पर शक्ति प्रदर्शन का विरोध किया । दूसरी ओर तेहरान ने न केवल असद शासन का साथ दिया वरन बाथ शासन को आर्थिक सहायता भी प्रदान की कि वह अपने उत्पीडन के कार्य को जारी रख सके।
सम्भवतःयह मध्य पूर्व में तुर्की के घुमाव का सबसे महत्वपूर्ण कारण रहा। आरम्भ में तो ऐसा प्रतीत हुआ कि अंकारा और तेहरान एक धुरी बन जायेंगे परंतु वे परस्पर विरोधी बन गये और क्षेत्रीय प्रभाव की प्रतिस्पर्धा के साथ ही सदियों पुरानी यादें ताजा हो आयीं……
पिछले दशक में पीकेके ने तुर्की पर आक्रमण किया और ईरान नीत अंकारा और तेहरान पर इसके दलों ने आक्रमण किया जिससे कि सुरक्षा विषय पर चर्चा हुई। अभी हाल में ईरान ने पीकेके के दलों के साथ शांति स्थापित कर ली है और पीकेके नेता मुरात कारायेलान के जीवन की रक्षा भी की है जबकि तुर्की इराक में पीकेके शिविरों पर बम वर्षा कर रहा था। ईरान और तुर्की फिर से क्षेत्र में सबसे पुराने सत्ता के खेल में अपने हाथ दिखा रहे हैं।
मध्य पूर्व में एक शाह और सुल्तान के लिये स्थान है परन्तु एक शाह और एक सुल्तान के लिये नहीं। तेहरान और अंकारा एक बार फिर अपनी सदियों पुरानी प्रतिस्पर्धा में उलझ गये हैं कि कौन क्षेत्र में शक्तिशाली बन कर उभरता है।
(17 अक्टूबर, 2011)
सीरिया: एली कार्मोन ने तुर्की की विदेश नीति की समीक्षा करते हुए पाया है कि सीरिया के साथ तनाव के चलते सम्बंधों में अनेक परिवर्तन आये हैं:
जबसे तुर्की असद शासन के विरुद्ध हुआ है तेहरान ने तुर्की के प्रति सीरिया के विश्वास को बाधित करने में सफलता प्राप्त की है और इसके लिये तुर्क विरोधी प्रचार प्रभावी रहा , तुर्की के साथ इराक में पीकेके के कुर्द के विरुद्ध खुफिया सहयोग बंद कर दिया और इसे सीरिया के मामले में हस्तक्षेप न करने की धमकी दी।ईरान बहरीन में शिया विद्रोह को दबाने में तुर्की की सहायता से भी असंतुष्ट हुआ ।
(4 सितम्बर, 2011)
नाटो राडार की तैनाती: अंकारा इस बात के लिये सहमत हो गया कि अमेरिका द्वारा बनायी राडार व्यवस्था को नाटो के सुरक्षा कवच के रूप में मिसाइल के विरुद्ध तैनात करे विशेष रूप से ईरान के विरुद्ध। इस सम्बंध में रिपोर्ट करते हुए न्यूयार्क टाइम्स ने कहा कि तुर्की के निर्णय से " अमेरिका के सैन्य अधिकारी तो प्रसन्न हुए परंतु ईरान में इसे एक खतरे के रूप में देखा गया। नाटो के सदस्य के रूप में तुर्की के इस निर्णय को ईरान के साथ तनाव की पृष्ठभूमि में देखा गया। इस निर्णय से यह भी माना गया कि तुर्की अमेरिका के विचारों के अधिक निकट है क्योंकि हाल में ईरान की सैन्य क्षमता को एक खतरा माना जा रहा है"
तुर्की ने जिस प्रकार नाटो की मिसाइल रक्षा कवच की योजना का अंग बनने का निर्णय लिया है वह महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पूर्व ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर तुर्की ने पश्चिम और ईरान के मध्य मध्यस्थ की भूमिका निभाई थी। यहाँ तक कि जनवरी में तुर्की ने एक कूटनयिक बैठक भी बुलाई थी जिसका कोई परिणाम नहीं आया। इसके बाद से तुर्की और ईरान के मध्य तनाव बढ्ने लगा और विशेष रूप से सीरिया की सरकार द्वारा विद्रोह के विरुद्ध की गयी कार्रवाई के बाद। तुर्की ने खुले रूप से सीरिया की आलोचना करनी आरम्भ कर दी जबकि ईरान ने सीरिया का समर्थन किया।
(2 सितम्बर, 2011)
हिज्बुल्लाह: सुडेयूचे जेटंग ने 30 अप्रैल को पश्चिमी कूटनयिक को उद्धृत करते हुए कहा कि तुर्की के अधिकारियों ने हिजबुल्लाह के लिये जा रहे हथियारों के जखीरे को किलिस में पकडा जो कि सीरिया के साथ लगी तुर्की की सीमा है ।
(4 अगस्त, 2011)
सीरिया: 31 मार्च को अंकारा ने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद को हथियार की जब्ती की सूचना दी जिसे कि आटो स्पेयर हिस्से के रूप में सूचीबद्ध किया गया था कि जो सीरिया के विमान के लिये ईरान के लोग निर्यात कर रहे थे।
अधिक विस्तार से सी आई ए के पूर्व जासूस के अनुसार रजा खलीली के शब्दों में दोनों देशों ने सीरिया में बसर अल असद शासन के विरुद्ध हुए विद्रोह को लेकर किस प्रकार प्रतिक्रिया दी है। " सीरिया में हो रहे विद्रोह ने ईरान के नेतृत्व को चिंतित कर दिया है। ईरान की तानाशाही सरकार के लिये सीरिया के तानाशाह बसर अल असद का बचे रहना आवश्यक है क्योंकि सीरिया ही वह फाटक है जिससे कि मध्य पूर्व में ईरान की शक्ति का विस्तार होता है साथ ही इजरायल और अमेरिका के विरुद्ध इसकी अतिवादी नीतियों का विस्तार भी होता है " इसके विपरीत " पडोसी तुर्की ने सीरिया के नरसंहार की निंदा की है । सीरिया के उत्तरी क्षेत्र से हजारों भयभीत लोगों ने तुर्की में शरण ली है"
खलीली का कहना है कि
अभी हाल में ईरान की रिवोल्यूशनरी गार्ड के मीडिया संस्थान की साप्ताहिक पत्रिका सोबेह सादेग में ईरान ने तुर्की को सीरिया में उसकी भूमिका के लिये कडी चेतावनी दी है और दुहराया है कि ईरान असद शासन के साथ है। लेख का शीर्षक है " सीरिया के घटनाक्रम पर ईरान का गम्भीर रुख" इसमें चेतावनी दी गयी है कि "यदि तुर्की अपने इसी रुख पर कायम रहा तो इसके गम्भीर परिणाम होंगे । हमें तुर्की और सीरिया के मध्य चयन करना होगा । सीरिया द्वारा इसकी रक्षा करने की न्यायसंगतता और इसकी विचारधारगत अवधारणा के चलते ईरान को सीरिया को ही चुनना होगा"