1- नम आँखों से एक वर्ष के भीतर लोकतंत्र आने की भविष्यवाणी उतनी की बेवकूफी भरी है अब है जितनी कि तब थी। हाँ इतना अवश्य है कि सत्ता लोलुप सैन्य नेतृत्व ने दिखा दिया कि कुर्सी पर बने रहने के लिये जो भी आवश्यक होगा वह करेगा।
2- असली तमाशा तो अब होने वाला है। सीरिया का शासन समाप्त होने को है और इसका सबसे अधिक प्रभाव मध्य पूर्व के महत्वपूर्ण देश ईरान की स्थिरता पर पडेगा।
3. अरब शासन को लेकर भ्रम नहीं होना चाहिये कि यह अरब लोगों का है। अनेक वर्षों से लगातार मेरा विचार रहा है कि यदि , " आप अरब समर्थक हैं तो आपको अरब शासन का विरोधी होना चाहिये" । लीबिया और सीरिया में घटनाक्रमों ने इसे सिद्ध किया है।
4. मास्को और पेकिंग को सीरिया जैसे पुलिस राज्य का समर्थन करने की कीमत चुकानी होगी। इसी प्रकार तुर्की की विदेश नीति का नारा कि " शून्य समस्या" धीरे धीरे पुलिस राज्यों से शून्य समस्या में बदल गयी है।
5. इस्लामवादी जैसे जैसे सफल हो रहे हैं वैसे वैसे वे एक दूसरे से अलग होने की प्राचीन मध्य पूर्व की आदत की ओर जा रहे हैं। मिस्र में मुस्लिम ब्रदरहुड और सलाफी के मध्य सहयोग की सम्भावना कठिन है। हमास में हानियाह और मेशाल दो अलग धडे हैं। जब इस्लामवादी दमिश्क में अपना नियंत्रण कर लेगें तो वे इस्लामी गणतंत्र से अलग हो जायेंगे। अंकारा और तेहरान प्रायः एक दूसरे के विपरीत ही रहते हैं।
6. पिछले वर्ष की जटिलता का सार संक्षेप यदि करूँ: इजरायल सुरक्षा बल ने सीरिया के शरणार्थियों के लिये सीरिया और इजरायल नियंत्रित बफर क्षेत्र में मानवीय सहायता की तैयारी की जिसमें कि शासक वर्ग के हजारों अलावी भी थे और इजरायल के सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल बेनी गांज ने चुटकी ली, " "मुझे विश्वास नहीं है कि सभी अलावी इजरायल की ओर आयेंगे" परंतु अनेक ऐसा करेंगे।