युद्ध एक ऐसा कार्य व्यापार है जिसकी पहली आवश्यकता विजय प्राप्त करने के लिये सेना तैनात करना है न कि दन्ड देना, अपनी छाप छोडना , एक सांकेतिक बात स्थापित करना या फिर दूसरे से कहीं अधिक नैतिक दिखना।
परंतु यदि पश्चिमी देश सीरिया की सरकार द्वारा नागरिकों के विरुद्ध रासायनिक हथियार प्रयोग किये जाने की आशंका के बाद उसके विरुद्ध प्रतिक्रिया में कदम उठाते हैं और सीमित हमला करते हैं जो कि एक या दो दिन तक होगा और पचास से कम स्थानों पर किया जायेगा तो उन्हें पूर्ण विजय के स्थान पर उपर्युक्त अन्य उपलब्धियाँ ही हाथ लगेंगी।
अमेरिका , ब्रिटेन और अन्य देशों की मिसाइलों को यदि धरातल पर सेना तैनात करने की किसी तैयारी के बिना सीरिया पर छोडा भी जायेगा तो इससे न तो सरकार अपदस्थ होगी और न ही युद्ध की दिशा में परिवर्तन होगा। हालाँकि इससे पश्चिमी लोगों को स्वयं पर प्रसन्न होने का अवसर अवश्य मिल जायेगा।
इससे कुछ नये खतरे अवश्य उभर सकते हैं । बसर अल असद की कुख्यात अयोग्यता के चलते उनकी प्रतिक्रिया का अनुमान लगा पाना कठिन है। पश्चिमी हमले से अन्य सम्भावनाओं में से एक यह भी है कि दुर्घटनापूर्ण तरीके से शासन का अपने नागरिकों पर आक्रमण अधिक तीव्र हो जाये , इजरायल के विरुद्ध हिंसा में वृद्धि हो ,पश्चिमी देशों में स्लीपर सेल सक्रिय हो जायें या फिर तेहरान पर निर्भरता और बढ जाये । यदि पश्चिमी देशों के हमले से वे बच गये तो वे बढ चढकर बात करेंगे कि हमने अमेरिका को पराजित कर दिया।
दूसरे शब्दों में अवश्यंभावी आक्रमण से कुछ सम्भावित लाभ हैं तो इसके कुछ सम्भावित खतरे भी हैं। साफ सुथरे रूप से यह संक्षेप में ओबामा की असफल विदेश नीति को ही स्पष्ट करता है।