अमेरिका की सेनाओं ने पिछले सप्ताह परेड, आतिशबाजियों और नारों के मध्य, " बाहर जाओ अमेरिका बाहर जाओ" तथा, " अमेरिका गया ! बगदाद विजयी हुआ!" के मध्य इराक को छोडा।
उन्होंने नवम्बर 2008 को सेनाओं की स्थिति को लेकर हुए समझौते के पश्चात इराक को छोडा जिसके अनुसार 30 जून 2009 तक उन्हें शहर, कस्बों और गाँवों से वापसी करनी थी" । इसके अतिरिक्त 31 दिसम्बर 2011 तक , " सभी अमेरिकी सेना को इराकी राज्यक्षेत्र , जल और वायुसीमा से वापस होना है" ।इस समझौते के अंतर्गत अमेरिका की सैन्य कार्रवाई पर बगदाद का नियंत्रण होगा साथ ही यह इराक की अर्थव्यवस्था और शिक्षा में भी अमेरिका की भूमिका को परिभाषित करता है।
कुछ नगरीय अमेरिकी किलेबंदी को इराक को सौंप दिया गया और शेष ध्वस्त कर दिया गया। जैसा कि कैप्टेन एन्ड्रियू रोहर ने इसे इस रूप में कहा है जो कि केंद्रीय बगदाद में व्यावसायिक गली पर खडे होकर अपने छोटे से बेस को ध्वस्त होते देख रहे थे, " कोई भी अवशेष न छूटे यही लक्ष्य है" । अमेरिका की सेनायें शहर के बाहर टेंट और प्लाईवुड के ठिकानों की ओर आ गयी हैं।
ये परिवर्तन मह्त्वपूर्ण हैं और संक्षेप में छह वर्ष से अधिक के अमेरिका नीत कब्जे और अब भी अमेरिका के पर्याप्त मात्रा में समर्थन की आवश्यकता के बाद भी कुल मिलाकर वे अपने देश का संचालन स्वयं कर रहे हैं।
मेरे अनुसार अमेरिका द्वारा देश की ओर प्रस्थान छह वर्ष की देरी करके किया गया ।पहले ही 2003 के एक लेख चलो इराकियों को इराक चलाने दें में मैंने सुझाव दिया था, " शक्ति का हस्तांतरण इराक को कर दिया जाये , उन्हें सरकार बनाने दिया जाये...... शहर की गलियों में पेट्रोलिंग से गठबंधन सेना को हटा दिया जाये साथ ही भवनों की सुरक्षा से उन्हें हटा दिया जाये और उन्हें मरुस्थल के बेस में भेज दिया जाये" ।
वाशिंगटन की देरी का बडा मूल्य अमेरिका के लोगों को चुकाना पडा है, सैकडों लोगों की मृत्यु से लेकर सैकडों अरब डालर तक, और उसके बाद अमेरिका की राजनीति को विषाक्त करने तक। अमेरिका के हितों को शहरी इराक के कल्याण से जोडकर 11 सितम्बर के पश्चात बनी " हम एक साथ हैं" की एकता को वियतनाम युद्ध के पश्चात की अब तक की सबसे अधिक विभाजित और दोषरोपण वाली बहस में बदल दिया।
इससे भी बुरा यह कि इराक के शहरों को कब्जे में रखने से अभी तक भी गणना न कर सकने वाले दीर्घगामी घातक परिणाम हुए हैं। किसी भी अन्य तत्व से अधिक इराक के शहरों का दायित्व अपने ऊपर लेने से जार्ज डब्ल्यू बुश की विश्वसनीयता समाप्त हुई तथा ऐसी राजनीतिक भूमि तैयार हो गयी कि एक वामपंथी रुझान के राजनेता ने राष्ट्रपति के लिये एकतरफा विजय प्राप्त की। बराक ओबामा के कार्यकाल की पहली छमाही से प्रतीत होता है कि वे राज्य और समाज के सम्बंध में मूलभूत परिवर्तन चाहते हैं, इस भावना के आधार पर कहा जा सकता है कि अमेरिका के लोगों को अनेक दशकों तक इराक में की गयी भूलों का परिणाम भुगतना होगा।
इराक में कब्जा करने के परिणाम का क्या? जैसा कि वाशिंगटन पोस्ट में अर्नेस्टो लंदोनो ने पाया है, अमेरिकी सेना को दो प्रश्न परेशान करते हैं जबकि वे 30 जून को बाहर होने के लिये तैयार हो रहे हैं: इराक की सेना उनके जाने के बाद कैसा व्यवहार करेगी? क्या इराक की सरकार को वैधानिकता प्रदान करने के लिये और प्रोत्साहित करने के लिये जो अमेरिकी जीवन और कोष व्यय किया गया है क्या वह सही निवेश सिद्ध हुआ ?
मैं पूरी तरह निराशावादी हूँ, इराक को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में देखता हूँ कि जो ऐतिहासिक रूप से हिंसक देश रहा है और वह भी सद्दाम हुसैन के स्टालिनवादी सदमे से अभी उबरा है, एक ऐसा स्थान जो कि भ्रष्टाचार , तनाव , घृणा और प्रतिशोध की इच्छा से भरा है। अमेरिका की सेनाओं ने छह वर्षों तक अस्थाई रूप से इस दबाव को सीमित किया परंतु शायद ही देश के भाग्य को बदल सकें।
इराक के अनेक लोग सहमत हैं, इराक की सेना के लेफ्टिनेंट का कहना है कि " जब अमेरिका के लोग छोडकर जायेंगे तो सब कुछ लूट लिया जायेगा क्योंकि कोई भी देखने वाला नहीं होगा" एक विश्लेषक का कहना है कि , " निश्चित रूप से एक गृह युद्ध होगा"। कोई भी उस आशा और समायोजन के उत्साह भरे संदेशों को स्वीकार नहीं कर रहा जो कि अमेरिका के करदाताओं के धन से इराक में फैलाया जा रहा है। स्थानीय सुरक्षा समिति के अध्यक्ष के अनुसार, " इराक अभी एक बच्चे के समान है जिसकी देखभाल के लिये कोई चाहिये" । एक शिया विधिनिर्माता कासिम दाऊद ने खुले रूप से कहा कि अमेरिका की सेनाओं को 2020 या 2025 तक रहना चाहिये।
लेकिन सेना अनिवार्य रूप से देश से बाहर आ रही है और मेरी भविष्यवाणी है कि अमेरिका का प्रयास धीरे धीरे लुप्त हो जायेगा , असफल हो जायेगा और इसे भुला दिया जायेगा। इराक आतंकवाद , सुन्नी शिया तनाव , कुर्द स्वायत्तता, इस्लामवादी महत्वाकाँक्षा , लुप्त होते ईसाइयों , नाजुक मोसुल बाँध तथा तेल और गैस के समाप्तप्राय आधारभूत संरचना जैसी चुनौतियों का सामना अत्यंत दयनीय रूप से करेगा। गृह युद्ध एक जीवंत सम्भावना है जबकि साम्प्रदायिक संघर्ष फिर से वापस आ गया है। वर्तमान साक्ष्य तो यह तक संकेत करते हैं कि इराक तो अमेरिका द्वारा दान में दिये अरबों डालर के सैन्य उपकरणों की देखभाल भी नहीं कर सकता।
एक अमेरिकी होने के नाते मैं इराक को शुभकामनायें देता हूँ लेकिन अमेरिका के नियंत्रण से इसके शहरों की मुक्ति , इसकी अर्थव्यवस्था और विद्यालयों के देखरेख को अंतिम नमस्कार , कबाईली तनाव और मोसुल बाँध को लेकर तनाव को अंतिम नमस्कार और आतंकवादियों के दायित्व और उनसे पीडितों के दायित्व को प्रणाम ।
विडम्बना है कि इराक के शहरों पर कब्जा रखने से इराक को गम्भीर और दीर्घगामी दुष्परिणाम हुआ है और इराक पर इसके सुप्रभाव अत्यंत कृत्रिम और तात्कालिक होंगे। अंत में संसाधनों का पीडादायक व्यर्थ होना अब समेटा जा रहा है भले ही देर से हो।