10 अगस्त को लन्दन में विमानों को उड़ाने के षड़यन्त्र के सामने आने के बाद हवाई यात्रियों की रूपरेखा होने पर बहस फिर से आरम्भ हो गई है. दुखद पक्ष यह है कि निष्क्रियता, इन्कार और किसी वर्ग को चिन्हित न करने के राजनीतिक आग्रह के चलते इजरायल के अपवाद को छोड़कर पश्चिमी देशों के हवाई अड्डों की सुरक्षा सेवायें आतंकवाद से जुड़े सामानों पर ही अधिक ध्यान देती हैं और यात्रियों को प्राय: छोड़ देती हैं.
यद्यपि 11 सितम्बर 2001 के आक्रमण के बाद इस दिशा में कुछ प्रगति हुई है और सभी यात्रियों की गतिविधियों पर गहरी नजर रखी जा रही है. उदाहरण के लिये अमेरिकी विमानों की सुरक्षा के लिये उत्तरदायी यातायात सुरक्षा प्रशासन ने पर्यवेक्षण नीति द्वारा यात्रियों की जाँच नाम से एक पद्धति विकसित की जो बारह विमान सेवाओं में कार्य कर रही है.
अमेरिका के सीमा शुल्क विभाग और इजरायल के हवाई अड्डा सुरक्षा विभाग द्वारा उपयोग की जाने वाली यह तकनीक नस्लीय रूपरेखा का रोग और दवा दोनों है, ऐसा यातायात सुरक्षा प्रशासन के प्रवक्ता अन्ना डेविस का कहना है. उनके अनुसार पर्यवेक्षण व्यवहार की परिपाटी के आधार पर इसमें उच्च स्तर के तनाव, भय या धोखे का पता चल जाता है. पर्यवेक्षण नीति द्वारा यात्रियों की जाँच में हवाई अड्डे से बाहर जाते समय यात्रियों पर बारीक नजर रखी जाती है जबकि यातायात सुरक्षा प्रशासन के लोग कुछ शारीरिक लक्षणों जैसे पसीना गिरना, कठोर भाव भंगिमा और बन्द मुट्ठी पर नजर रखते हैं. उसके बाद उन्हें और बारीकी से देखने वाले इनमें से कुछ को छाँटकर उनसे अलग से बात करते हुये कुछ अप्रत्याशित प्रश्न पूछते हैं और उसकी प्रतिक्रिया में उनकी शारीरिक भाषा और अस्वाभाविक चिन्ह के संकेत देखते हैं. इन छाँटे गये अधिकांश लोगों को तत्काल रिहा कर दिया जाता है जबकि 1|5 लोगों से पुलिस पूछताछ करती है.
लन्दन षड़यन्त्र के बाद ब्रिटिश अधिकारियों ने अपने अमेरिकी सहयोगियों से यह विधा सीखने का प्रयास किया.
इसके लिये इजरायल की एक मशीन कागीटो का प्रयोग किया जाता है जो गणना, नकली खुफिया साफ्टवेयर और झूठ पकड़ने वाली मशीन के सिद्धान्तों के आधार पर यात्रियों के शत्रुवत् उद्देश्यों को पकड़ती है. परीक्षण के तौर पर इसे चलाने में पता चला कि इसने 88 प्रतिशत निर्दोष यात्रियों को सम्भावित खतरे के रूप में पहचाना और आतंकवादी के रूप में नाटक कर रहे 15 प्रतिशत को जाने दिया.
सभी यात्रयों पर नजर रखने वाली पद्धति का अपना उपयोग है, पर्यवेक्षण नीति द्वारा यात्रियों की जाँच से फर्जी वीजा, जाली पहचान पत्र, चोरी के हवाई टिकट सहित अनेक चीजों की जाँच तो सम्भव है परन्तु आतंकवाद प्रतिरोध में इसकी सफलता संदिग्ध है. आतंकवादियों को सन्तोषजनक ढंग से प्रश्नों का उत्तर देने का, पसीने से बचने का और तनाव न आने देने का प्रशिक्षण दिया जाता है ताकि इस प्रणाली की पकड़ से बचा जा सके.
लन्दन षड़यन्त्र की विफलता के बाद हवाई अड्डों पर व्यवधान से इस्लामवादी आतंकवाद के स्रोत और मुसलमानों की रूपरेखा पर बहस आरम्भ हो गई है. वाल स्ट्रीट सम्पादकीय के शब्दों में , “ हवाई अड्डों पर समान्य स्थिति बहाल करने के लिये सामान्य यात्रियों को सम्भावित खतरनाक लोगों से अलग रखा जाये”.
यह तर्क धीरे-धीरे जोर पकड़ रहा है .अभी हाल में एक जनमत सर्वेक्षण ने पाया कि 55 प्रतिशत ब्रिटिश इस बात से सहमत हैं कि यात्रियों की रूपरेखा में उनकी पृष्ठभूमि और उनके रंग रूप को भी ध्यान में रखा जाना चाहिये जबकि 29 प्रतिशत ही इसके विरोध में थे. स्काटलैण्ड यार्ड के पूर्व प्रमुख लाण्ड स्टीवेन्सन ने मुस्लिम युवाओं पर अधिक ध्यान देने पर जोर दिया है. गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, “ विशेषकर फ्रांस और नीदरलैण्ड्स सहित कुछ यूरोपियन देश मुस्लिम यात्रियों के लिये स्पष्ट रूप से जाँच की योजना लागू करना चाहते हैं ”. विसकोन्सिन और न्यूयार्क स्टेट में दो राजनेताओं ने इसी प्रकार की रूपरेखा का समर्थन किया है. फाक्स न्यूज के प्रस्तोता बिल ओ रेली ने सुझाव दिया कि 16 से 45 वर्ष की आयु के मुसलमानों से पूछताछ होनी चाहिये. अमेरिका के लोकप्रिय टॉक शो के प्रस्तोता माइक गालाघर ने कहा कि हवाई अड्डों पर मुसलमानों की अलग पंक्ति बनवाई जाये. इवनिंग के एक स्तम्भ में राबर्ट सैण्डलर ने प्रस्ताव किया कि मुसलमानों को अलग विमान में और शेष को अलग विमान में सवारी कराई जाये.
ऐसी सूचना है कि ब्रिटेन का यातायात विभाग ऐसी योजना बनाने जा रहा है जिसमें यात्रियों की रूपरेखा में उनकी धार्मिक पृष्ठभूमि को भी ध्यान में रखा जायेगा. न्यूज फॉर ब्रिटिश ने संकेत दिये हैं कि साथी हवाई यात्रियों द्वारा ऐसा पहले ही आरम्भ किया जा चुका है.
इस पूरी बहस से तीन निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-
चूँकि सभी इस्लामवादी आतंकवादी मुसलमान हैं इसलिये मुसलमानों पर ध्यान देने की आवश्यकता है. दूसरा हवाई अड्डों पर मुसलमानों की पंक्ति जैसे विचार अव्यावहारिक हैं, इसके बजाय खुफिया विभाग को मुसलमानों को इस्लामवादी एजेण्डे से हटाने का प्रयास करना चाहिये.
तीसरा मुसलमानों पर ध्यान देते हुये यात्रियों की रूपरेखा के व्यापक रूप से लागू होने की सम्भावना कम है. जैसा कि वाल स्ट्रीट जर्नल के सम्पादकीय ने भी कहा है, “ अटलांटिक के ऊपर 3,000 लोगों के प्राण गँवा देने के षड़यन्त्र की सम्भावना के बाद भी किसी वर्ग को चिन्हित न करने की राजनीतिक प्रवृत्ति के चलते अधिक सक्षम सुरक्षा के लिये हम अभी भी तैयार नहीं हुये हैं ”.
2001 में 3,000 लोगों की जान गँवाने के सीमित प्रभाव और हत्या से शिक्षा की मेरी परिकल्पना के अनुसार कट्टरपंथी इस्लाम की समस्या को लेकर तब लोग जागते हैं जब सड़कों पर खून बहता है. मेरी भविष्यवाणी है कि प्रभावी ढंग से रूपरेखा तभी अमल में आयेगी जब पश्चिम के लोग 1 लाख से अधिक जानें एक बार में गँवा देंगे.