लीबिया में लम्बे समय तक शासन करने वाले तानाशाह मुवम्मर अल कद्दाफी की समाप्ति पर बराक ओबामा ने अत्यंत विश्वासपूर्वक टिप्पणी की कि , " मुवम्मर अल कद्दाफी की मृत्यु से यह स्पष्ट होता है कि लीबिया के लोगों की रक्षा करने और एक उत्पीडक से उन्हें मुक्ति दिलाने में हमारी भूमिका एक सही कदम था" । दो माह के भीतर इराक से अपनी सेना वापस बुलाने के अपने निर्णय पर जोर देते हुए ओबामा ने कहा, " इराक में युद्ध समाप्त करने की अपनी नीति में हमें सफलता प्राप्त हुई है। उसके उपरांत उन्होंने इन घटनाक्रमों से अत्यंत उल्लसित निष्कर्ष निकाला और काफी बडी बडी बातें करते हुए कहा कि इससे यह प्रतीत होता है , " युद्ध का ज्वार थम रहा है" और हमने " विश्व में अमेरिका के नेतृत्व को फिर से नया किया है" ।
यह कितना उपयोगी है कि जब ओबामा की घरेलू नीतियाँ ( विशेष रूप से स्वास्थ्य देख रेख और रोजगार ) उन्हें अलोकप्रिय बना रही हैं तो वे यह दावा कर रहे हैं कि विदेश नीति में उन्हें सफलता प्राप्त हुई है। डेमोक्रेटिक पार्टी ने उनके अंतरराष्ट्रीय उपलब्धियों पर व्यंग्य में ही (बराक ओबामा के प्रस्तावों को अमेरिकी संसद में रिपब्लिकन द्वारा बहस से गिराने पर चुटकी लेते हुए) कहा, ,"आतंकवादियों और तानाशाहों" " का बराक ओबामा के विरुद्ध कोई प्रभावी बचाव नहीं था" लेकिन मध्य पूर्व से हमें सतर्क रहने की आवश्यकता है क्योंकि लीबिया और इराक में चीजें गलत होंगी। मेरी भविष्यवाणी है कि ओबामा को अपनी बडी बडी बातों के लिये खेद होगा।
लीबिया के सम्बन्ध में यह अभी अस्पष्ट है कि राष्ट्रीय संक्रमण परिषद ( National Transitional Council) में जो कि देश पर शासन करने करने का प्रयास कर रहा है कौन शक्तिशाली होकर उभरेगा। दो व्यक्तित्व सम्भावित विकल्प हो सकते हैं। ( 1952 में जन्मे जिन्हें कि महमूद गेब्रील एल वारफाली) जिन्होंने कि एन टी सी के अंतरिम प्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया है। उन्होंने पिट्सबर्ग विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पी-एच. डी की उपाधि प्राप्त की जहाँ उन्होंने रणनीतिक योजना का अध्यापन भी किया। उनकी कुल 10 पुस्तकें भी प्रकाशित हुईं जिनमें कि एक बहुचर्चित पुस्तक Imagery and Ideology in US policy toward Libya, 1969-1982 और बहुचर्चित व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रबंधन सलाहकार कम्पनी की भी स्थापना की।
इसके विपरीत अब्दुल हकीम बेलहाज ( 1966 में जन्मे) त्रिपोली के सैन्य नेता 1988 मे सोवियत सेना के विरुद्ध अफगानिस्तान में युद्ध करने गये और लीबिया के इस्लामी लडाकू गुट के नेता के रूप में भी अपनी सेवायें दी जिन्हें कि वर्ष 2004 में सी आई ए ने गिरफ्तार किया और कद्दाफी को सौंप दिया जिसने कि उन्हें वर्ष 2010 तक जेल में रखा।
दोनों के मध्य अंतर काफी विरोधाभाषी है ,लीबिया के एक नेता ने अमेरिका में एक मह्त्वपूर्ण अकादमिक पद धारण किया तो दूसरे का दावा है कि उसे सी आई ए के द्वारा प्रताडित किया गया। एक लीबिया को पश्चिमी व्यस्था के साथ मिलाना चाहता है तो दूसरा खिलाफत की पुनर्स्थापना के स्वप्न देख रहा है।
यद्यपि बेलहाज ने जिब्रील के नेतृत्व में टीएनसी में अपनी आस्था व्यक्त की है लेकिन सैन्य ईकाई पर नियंत्रण स्थापित करने के उनके प्रयास का विरोध भी किया है। जैसा कि लास एंजेल्स टाइम्स के पैट्रिक जे मैकडोनल्ड ने अत्यंत नाजुक रूप से इस पर अपने विचार व्यक्त किये हैं, " नागरिक नेतृत्व और विरोधी सैन्य ईकाइयों के मध्य कैसे सम्बंध रहेंगे यह अभी भी अस्पष्ट है" । इससे भी संकट की स्थिति यह है कि रविवार को जिब्रील ने अपने त्यागपत्र की घोषणा कर दी जब एनटीसी अध्यक्ष ने " इस्लामी मत के आधार पर" संविधान के निर्माण की घोषणा कर दी। यदि लीबिया इस्लामवादी हो जाता है तो ओबामा को कद्दाफी की याद आयेगी।
जहाँ तक इराक की बात है तो युद्ध की समाप्ति सम्बन्धी उनका दावा 1 मई , 2003 को जार्ज डब्ल्यू बुश द्वारा " मिशन की सफलता" सम्बन्धी हास्यास्पद भाषण की याद दिलाता है जब अपरिपक्व रूप से उन्होंने घोषणा की थी कि, " इराक संघर्ष में अमेरिका और उसके सहयोगियों की विजय हुई है" । अभी जबकि वास्तविक युद्ध का आरम्भ हुआ है तब अमेरिकी सेना के वापस आने से तेहरान इस देश पर सम्पूर्ण नियंत्रण स्थापित करने के लिये प्रयास आरम्भ करेगा और इसे अपना क्षत्रप बनाने का प्रयास करेगा ( सहयोगी राजनीति के लिये प्राचीन फारसी शब्द)।
अमेरिका की चेतावनियों के बाद भी तेहरान ने पहले ही इराक की राजनीति में हस्तक्षेप आरम्भ कर दिया है , उग्रवादियों को प्रायोजित कर रहा है, आतंकवाद की सहायता कर रहा है और देश में अपनी सेनायें भेज दी हैं और साथ ही अधिक कुछ करने की तैयारी कर रहा है। जैसा कि मैक्स बूट ने लिखा है अमेरिकी सेना की वापसी से " इराक में विनाशक विफलता का खतरा काफी बढ जायेगा। ईरानी सेना तो अत्यंत उत्साहित हो रही होगी क्योंकि हम इसके विरुद्ध पूरी तरह असुरक्षित होकर यह स्थान छोड रहे हैं" । बगदाद ने ईरानी खतरे को देखते हुये इसका तुष्टीकरण करने का प्रयास किया है उदाहरण के लिये, इसके चीफ आफ स्टाफ ने तेहरान के साथ क्षेत्रीय सुरक्षा संगठन बनाने का प्रस्ताव किया है।
यदि ईरान के प्रयासों को शीघ्र ही सफलता प्राप्त हो जाती है तो एक वर्ष के भीतर होने वाले चुनावों में ओबामा की सम्भावनाओं को क्षति पहुँच सकती है। " किसके चलते इराक हारे" यह रिपब्लिकन चुनावी संघर्ष का मुख्य नारा बन सकता है। ओबामा वर्ष 2007 में ही इराक को स्थिर करने मे अमेरिकी प्रयासों को पूरी तरह असफल बता चुके हैं इसलिये अब इसकी असफलता के लिये आरोपों को झेलने के लिये भी उन्हें तैयार रहना चाहिये।
यदि 2012 में होने वाले अमेरिकी चुनावों तक इराक बचा भी रहता है तो भी मेरी भविष्यवाणी है कि 5से 10 वर्षों में इराक में ( अफगानिस्तान की भाँति) सभी खर्चों और जीवन की हानि के बाद भी अमेरिकी प्रयास पूरी तरह निरर्थक रहा है। जब भविष्य में विश्लेषक इस बात की व्याख्या करने का प्रयास करेंग़े कि क्या गलत हुआ तो वे निश्चय ही ओबामा के दिशाहीन वक्तव्यों की ओर अपना ध्यान देंगे।
जिस प्रकार बेलहाज जिब्रील के ऊपर हावी होंगे उसी प्रकार इराक के ऊपर ईरान । यदि ऐसा होता है तो ओबामा और डेमोक्रेट आज के एकाँगी अतित्मविश्वास पर खेद व्यक्त करते नजर आयेंगे।