इजरायलवादियों ( जायोनिस्ट) ने फिलीस्तीन की भूमि को चुराया है यही मंत्र फिलीस्तीन अथारिटी और हमास अपनी सन्तानों को पढाते हैं और मीडिया में भी इसी का प्रचार करते हैं। जैसा कि फिलीस्तीन मीडिया वाच ने कहा है कि इस दावे का व्यापक मह्त्व है, " इजरायल राज्य के निर्माण को एक चोरी के कार्य के रूप में प्रस्तुत करना और इसके अस्तित्व को एक ऐतिहासिक अन्याय के रूप में दिखाना ही फिलीस्तीन अथारिटी द्वारा इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार करने के आधार के रूप में सहायक है" । चोरी का यह तर्क इजरायल को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कमजोर करता है।
लेकिन क्या यह आरोप सत्य है?
नहीं , यह सत्य नहीं है। यह विडम्बना है कि इजरायल का निर्माण सर्वाधिक शांतिपूर्ण आप्रवास और राज्य निर्माण का इतिहास का उदाहरण है। इसे समझने के लिये इजरायलवाद या जायोनिज्म को सही संदर्भ में समझना होगा। सामान्य रूप से यदि कहें तो विजय प्राप्त करना तो एक ऐतिहासिक परम्परा रही है, प्रत्येक स्थान पर सरकारों की स्थापना विजय के द्वारा ही हुई है, लगभग सभी राज्य दूसरे की कीमत पर अस्तित्व में आये हैं। कोई भी स्थाई प्रभारी नहीं रहा है सभी की जडें कहीं और से जुडी हैं।
जर्मनी की जनजातियाँ, मध्य एशिया की घुमक्कड जातियाँ, रूस के जार और स्पेन व पुर्तगाल के विजेताओं ने मानचित्रों की नये सिरे से रचना की। आधुनिक ग्रीक निवासी प्राचीन ग्रीक के साथ कुछ ही जुडाव अनुभव कर पाते होंगे। कोई इस बात की गणना भी नहीं कर सकता कि बेल्जियम का स्वरूप कितनी बार बदला गया? अमेरिका का अस्तित्व भी मूल अमेरिकावासियों पर विजय प्राप्त करने के बाद ही आया। राजाओं ने अफ्रीका में विजय प्राप्त की और आर्यों ने भारत को विजित किया। यमातो भाषियों को समाप्त कर दिया गया लेकिन कुछ अवशेष रह गये जैसे आइनू।
मध्य पूर्व को अपनी केंद्रीय स्थिति और भौगोलिक अवस्था के चलते आक्रमणों का अधिक अंश झेलना पडा जिसमें कि ग्रीक, रोमन, अरबी, क्रूसेडर, सेलजुक, तिमुरिद, मंगोलियाई और आधुनिक यूरोप शामिल हैं। क्षेत्र के भीतर भी राजवंशों ने इसी प्रकार अनेक राज्यक्षेत्र बनाये उदाहरण के लिये मिस्र को अनेक बार जीता गया।
अब जिस क्षेत्र को इजरायल के रूप में जाना जाता है वह कोई अपवाद नहीं है। एरिक एच क्लाइन ने अपनी पुस्तक Jerusalem Besieged: From Ancient Canaan to Modern Israel में लिखा है, " समस्त इतिहास में कोई भी दूसरा शहर नहीं है जिसे लेकर इतना जटिल संघर्ष हुआ हो" । वे अपने दावे की पुष्टि के लिये याद करते है, " पिछली चार सह्स्रताब्दी में जेरूसलम के लिये अलग अलग कुल 118 संघर्ष हो चुके हैं" । वे गणना करते हैं कि दो बार तो जेरूसलम को पूरी तरह नष्ट किया गया, 23 बार इसे घेरा गया, इस पर नियंत्रण 44 बार किया गया और कुल 52 बार इस पर आक्रमण किया गया। फिलीस्तीन अथारिटी इस बात को उन्मादी रूप से प्रस्तुत करता है कि आज के फिलीस्तीनी प्राचीन कनान जनजाति जेबुसाइट के वंशज हैं लेकिन ये लोग अधिकाँश तौर पर आक्रांताओं तथा आर्थिक अवसर की खोज में आये आप्रवासियों के वंशज हैं।
निरंतर आक्रमण , हिंसा और तख्तापलट के चित्रण के विपरीत 1948 तक पवित्र भूमि में इजरायलवादियों ( जायोनिस्ट) ने अपनी उपस्थिति को अत्यन्त शालीन तथा सैन्य के विपरीत व्यापारिक आधार पर रखा। दो महान साम्राज्य ओटोमन और ब्रिटिश ने Eretz Yisrael ( इजरायल की भूमि) पर शासन किया इसके विपरीत इजरायलवादियों ( जायोनिस्ट) के पास सैन्य शक्ति नहीं थी। वे तो शायद राज्य को विजय से प्राप्त भी नहीं कर सकते थे।
इसके विपरीत उन्होंने भूमि खरीदी। वे भूमि पर भूमि , खेतिहर जमीन और घर पर घर खरीदते गये जो कि 1948 तक इजरायलवाद ( जायोनिस्ट) के उद्यम का प्रमुख आधार था। 1901 में फिलीस्तीन में भूमि खरीदने के लिये Jewish National Fund की स्थापना की गयी ताकि , " सक्रिय और शांतिपूर्ण उद्यम में रत मुक्त यहूदियों के नये समुदाय की सहायता की जा सके और यही उस समय की प्रमुख संस्था थी न कि हगाना नामक गोपनीय सुरक्षा संगठन जिसकी स्थापना 1920 में हुई।
इजरायलवादियों ( जायोनिस्ट) ने अनुत्पादक और अनुपयोगी क्षेत्र के पुनर्वास पर अधिक ध्यान दिया । उन्होंने न केवल मरुस्थल को उत्पादक बनाया , वरन गीले और दलदल क्षेत्र को सुखाया , जल के स्रोतों की व्यवस्था की , नये जल क्षेत्र विकसित किये , वनहीन पहाडियों को हरा भरा किया , चट्टानों को साफ किया और धरती से लवण तत्व को हटाया। यहूदियों द्वारा इस क्षेत्र पर फिर से प्रभाव बनाने और सफाई करने से रोग मूलक मृत्यु कम हो गयी।
जब ब्रिटिश मेन्डेट ने 1948 में फिलीस्तीन क्षेत्र को अपने नियंत्रण से मुक्त कर दिया और उसके तत्काल बाद अरब के राज्यों ने मिलकर इजरायलवादियों का दमन कर उन्हें वहाँ से निकालने का प्रयास किया तब जाकर इन लोगों ने आत्म रक्षा में तलवार उठाई और सैन्य विजय के द्वारा इस क्षेत्र को जीतने का प्रयास किया। यहाँ तक कि जैसा इतिहासकार एफ्रेम कर्श ने Palestine Betrayed में कहा है अनेक अरबवासी अपनी भूमि छोडकर चले गये और बहुत तो अस्वाभाविक रूप से अपनी भूमि छोडने को विवश किये गये।
यह इतिहास फिलीस्तीन के इस तथ्य का खंडन करता है कि, " इजरायलवादियों ( जायोनिस्ट) के गिरोह ने फिलीस्तीन को चुराया और इनके लोगों को यहाँ से बाहर निकाल दिया" और इसके चलते ऐसी आपदा की स्थिति उत्पन्न हुई जो कि " मानव इतिहास में अभूतपूर्व है" ( जैसा कि फिलीस्तीन अथारिटी की 12 कक्षा की पुस्तक में पढाया जाता है) या फिर कि, " इजरायलवदियों ( जायोनिस्ट) ने फिलीस्तीनी भूमि और उनके राष्ट्रीय हितों को लूटा और फिलीस्तीनी अरब लोगों के अवशेष पर अपने राज्य की स्थापना की" ( फिलीस्तीन अथारिटी के एक दैनिक समाचार पत्र के स्तम्भकार ने लिखा) । अंतराष्ट्रीय संगठन, समाचार पत्र के सम्पादकीय, विश्वविद्यालयों की यचिकाओं में समस्त विश्व भर में इस असत्य को बार बार दुहराया जाता है।
इजरायलवालों को चाहिये कि वे अपना सर ऊँचा रखें और बतायें कि उनके देश का निर्माण इतिहास में किसी भी देश के लोगों की तुलना में सबसे कम हिंसक और सभ्य आंदोलन पर आधारित है। गिरोहों ने फिलीस्तीन को चुराया नहीं है वरन व्यापारियों ने इजरायल को खरीदा है।