59 वर्षीय पादरी टेरी जोन्स ने जब वर्ष 2010 में 11 सितम्बर की वर्षगाँठ पर कुरान की प्रतियों को जलाने की अपनी इच्छा प्रकट की तो अमेरिकी सरकार ने बाहरी देशों में अमेरिकी सेनाओं पर आक्रमण के भय से उन पर भारी दबाव डाला कि वह अपना निर्णय वापस लें और अंत में उन्होंने अपनी योजना स्थगित कर दी।
जोंस ने इस्लामी धर्मग्रंथ के सामारोहिक निर्णय को रद्द नहीं किया वरन उसे केवल छह माह के लिये टाल भर दिया। 20 मार्च को उन्होंने एक कार्यक्रम आयोजित किया जिसे " अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुरान के निर्णय का दिन नाम दिया" उन्होंने इस दिन फ्लोरिडा में मौन न्यायिक जुलूस निकाला और इस पुस्तक को , " मानवता के विरुद्ध अपराधों का दोषी" बता कर इसकी एक प्रति को आग के हवाले कर दिया।
इस कार्यक्रम को अमेरिका में जानबूझकर अधिक महत्व नहीं दिया गया इस आशा के साथ कि इसके प्रभाव को कम किया जा सके लेकिन इंटरनेट के इस युग में बहुत कम छुपाया जा सकता है। दो दिनों के भीतर ही यह जलाने वाली घटना पाकिस्तान और अफगानिस्तान पहुँच गयी जहाँ कि इन देशों के राष्ट्रपति ने एक एक कर जोंस की निंदा की और इस विषय को व्यापक आधार पर चर्चा में ला दिया। 1 अप्रैल को आवेशित अफगान बिफर पडे और मजारे शरीफ के उत्तरी शहर में 12 लोगों को मार डाला , अगले दिन आत्मघाती बम जो कि महिला के वस्त्र पहने हुआ था उसने काबुल में गठबंधन शिविर पर आक्रमण किया और कन्धार में सड्कों की भीड ने भी 12 लोगों की हत्या कर दी।
( यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि इसमें सितम्बर 2010 से पाँच ही अधिक लोग ह्ताहत हुए हुई जोन्स द्वारा कुरान जलाये जाने की बात के बाद 19 लोगों की हत्या हुई थी)
इस हत्याओं के लिये नैतिक रूप से किसे दोषी ठहराया जाना चाहिये जोंस को या फिर उन इस्लामवादियों को जो कि इस्लाम के कानून को जहाँ तक सम्भव हो पूरी सख्ती से और सम्पूर्णता के साथ लागू करने का प्रयास करते हैं?
इस बात पर आश्चर्य नहीं हुआ कि जोंस ने इस हत्याओं को " आपराधिक घटना" कहा और इस बात पर जोर दिया कि, " हमें उन देशों और लोगों को उत्तरदायी ठहराना चाहिये जो उन्होंने किया है या फिर उन तर्कों के लिये जिसके सहारे वे अपनी आतंकवादी गतिविधियों को चलाते है" ।
इसके विपरीत बराक ओबामा ने कुरान जलाने की घटना को , " असहिष्णुता की पराकाष्ठा बताया" और इसकी हिंसक प्रतिक्रिया को " अनादरपूर्ण और निंदनीय" कहा । कांग्रेस के सदस्यों ने एक स्वर में जोंस को दोषी ठहराया।
- सीनेट के बहुमत के नेता हैरी रीड ( नेवादा के डेमोक्रेट) ने कहा, " वह इस बात पर गौर करेंगे" कि कुरान जलाने की घटना की निंदा करने सम्बन्धी प्रस्ताव लायें।
- सीनेट के बहुमत व्हिप रिचर्ड जे डर्बिन ( इलीनोयस के डेमोक्रेट) ने पादरी को उत्तरदायी ठहराते हुए कहा, " इस पादरी ने कुरान के साथ अपने पब्लिसिटी स्टंट के चलते दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से हमारी सेना और इस देश के नागरिकों सहित अनेक निर्दोष लोगों के जीवन को खतरे में डाल दिया है" ।
- सीनेटर लिंडसे ग्राहम ( दक्षिणी कैरोलिना के रिपब्लिकन ) ने इच्छा व्यक्त की कि, " अमेरिका के लोगों को उत्तरदायी बनाने का मार्ग ढूँढा जाये" और " अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को एक महान विचार बताया लेकिन कहा कि हम लोग युद्ध की स्थिति में हैं"।
- संसद की गुप्तचर समिति के अध्यक्ष माइक रोजर्स ( मीकियाँग के रिपब्लिकन) ने प्रत्येक अमेरिकावासी से आग्रह किया , " सभी नागरिकों को सोच समझ कर कार्य करना चाहिये ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि हमारे सैनिक सकुशल घर वापस आयें" ।
जोंस पर लगाये गये इन आरोपों के प्रकाश में यह बात साफ है कि कुलीन वर्ग में मतैक्य है, ब्रिटेन के वामपंथी समाचार पत्र गार्डियन द्वारा आयोजित सर्वेक्षण में कुछ तथ्य आश्चर्यजनक रूप से सामने आये। इस प्रश्न पर कि, " क्या अफगानिस्तान में हुए विरोध में मारे गये संयुक्त राष्ट्र संघ के स्टाफ के लिये फ्लोरिडा का वह पादरी उत्तरदायी है जिसने कुरान जलाई" उत्तर में केवल 45 प्रतिशत लोगों ने जोंस को दोषी ठहराया जबकि 55 प्रतिशत लोगों ने इस्लामवादियों को उत्तरदायी माना।
निश्चित ही कुछ गैर इस्लामवादी अमेरिकी मुस्लिम नेता इस भावना का समर्थन करते नजर आये। अरिजोना में अमेरिकन इस्लामिक फोरम फार डेमोक्रेसी के एम जुहदी जसीर ने इन मौतों के लिये उन उग्रवादी नेताओं को दोषी ठहराया जिन्होंने कुरान जलाने की घटना को हिंसा के लिये एक तर्क के रूप में लिया। कैलेफोर्निया में अहमदिया मस्जिद के इमाम शमशाद नसीर ने कहा , " उनका समुदाय किसी भी क्षेत्र में धर्म के नाम पर किसी को भी मारे जाने की निंदा करता है क्यों न इसे अत्यंत पवित्र धर्मग्रथों के नाम पर ही किया जाये" ।
जैसा कि पिछले सितम्बर में मैंने लिखा था जब कि जोंस ने कुरान को जलाने की धमकी दी थी " हिंसा का स्रोत शरियत और इस्लामी कानून से है जो कि इस बात पर जोर देता है कि इस्लाम और विशेष रूप से कुरान को विशेषाधिकार प्राप्त है" । यह जोर इस बात पर है कि पश्चिम में 1989 में सलमान रुशदी के उपन्यास के विरुद्ध जो फतवा अयातोला खोमैनी ने जारी किया था उसके साथ कोई छेडछाड नहीं होनी चाहिये। इस्लाम भी अन्य धर्मों की भाँति एक अन्य धर्म है और उसका सर्वोच्चता का कोई दावा नहीं हो सकता। इस्लामी सर्वोच्चता के दावे को बंद कर पाना इस्लाम को आधुनिक बनाने की दिशा में सबसे बडी बाधा है।
चाहे जितना अरुचिकर लगे लेकिन जोंस का कार्य कानूनी भी है और अहिंसक भी। वह 43 मौत के लिये उत्तरदायी नहीं हैं इसके लिये बर्बर इस्लामवादी विचारधारा को दोषी ठहराया जाना चाहिये। आखिर इस आधारभूत तथ्य को अमेरिका के राजनेता कब समझेंगे और अमेरिकी नागरिकों के नागरिक अधिकारों के लिये कब उठ कर खडे होंगे। इस्लाम की निंदा करना वह रुचिकर हो या अरुचिकर हो पूरी तरह संवैधानिक अधिकार है। निश्चय ही यह कार्य अत्यन्त बुद्धिमत्तापूर्ण किया गया है और ऐसा सभ्यतागत कारणों के आवश्यक भी है।