फिलीस्तीनियों ने तीव्र स्वर में और लम्बे समय से (लगभग एक सदी) इजरायलवाद को अस्वीकार किया है कि मुफ्ती हज अमीन अल हुसैनी, यासिर अराफात तथा हमास एकस्वर से फिलीस्तीनी समर्थन प्राप्त करते हैं।
परंतु ऐसा नहीं है: मत सर्वेक्षण के अनुसार फिलीस्तीन का महत्वपूर्ण अल्पमत लगभग 20 प्रतिशत एक सार्वभौमिक यहूदी राज्य के साथ मिलकर रहने को तैयार है। यद्यपि यह अल्पमत कभी भी प्रभावी भूमिका में नहीं रहा और अस्वीकारवादियों द्वारा इसकी आवाज को सदैव दबाया गया परंतु जेरूसलम के हिब्रू विश्वविद्यालय के हिलेल कोहेन ने आश्चर्यजनक रूप से इनकी ऐतिहासिक भूमिका को खोज निकाला है।
उन्होंने इस विषय को राज्य पूर्व की स्थिति Army of Shadows: Palestinian Collaboration with Zionism, 1917–1948 में खँगाला है ( कैलिफोर्निया प्रेस विश्वविद्यालय के हैम वाजमान ने इसे अनूदित किया है) फिर इसी लेखक ने , अनुवादक और प्रेस के द्वारा एक और पुस्तक Good Arabs: The Israeli Security Agencies and the Israeli Arabs, 1948–1967, पर कार्य चल रहा है जिसका प्रकाशन 2010 में होना है।
आर्मी आफ शैडो में कोहेन ने दिखाया है कि समायोजक फिलीस्तीनियों ने पवित्र भूमि में राज्य पूर्व यहूदी समुदाय यिशुवा के लिये भूमिका निभाई। उन्होंने मजदूर उपलब्ध कराये, व्यापार में लगे, भूमि बेची, शस्त्र बेचे, राज्य की परिसम्पत्ति को हस्तान्तरित किया , शत्रु सेना के बारे में गुप्तचर सूचनायें प्रदान कीं , अफवाह और मतभेद फैलाया , साथी फिलीस्तीनियों को आत्मसमर्पण करने के लिये समझाया,यिशुवा के शत्रुओं से युद्ध किया तथा यहाँ तक कि शत्रु की पंक्ति के पीछे से भी कार्य किया। उनका योगदान और सहयोग इतना अधिक था कि यह अचरज होता है कि क्या उनके सहयोग के बिना इजरायल राज्य अस्तित्व में आ पाता।
मुफ्ती ने पूरी तरह इजरायलवाद को अस्वीकार कर फिलीस्तीनी लोगों को ठोस रूप से जोडने का प्रयास किया लेकिन इसका दूसरा परिणाम रहा। हुसैनी के आसपास के लोगों के स्वार्थ, अतिवाद और बर्बरता ने इस एकता को कमतर कर दिया, हत्यारी नीति, शत्रुवत भाषा , मुफ्ती की अवज्ञा करने वालों के प्रति जिहाद की घोषणा करने तथा आधे से अधिक फिलीस्तीनी जनसंख्या को " गद्दार" बता देने से अनेक किनारे के लोग और पूरा समुदाय( विशेष रूप से द्रुज) इजरायलवाद के पक्ष में आ गये।
इसके साथ ही कोहेन लिखते हैं, " जैसे जैसे समय व्यतीत हुआ अरबवासियों में उनकी संख्या बढती गयी जिन्होंने कि अस्वीकारवादियों की ओर से मुख मोड लिया तथा ब्रिटिश और इजरायलवादियों को प्रत्यक्ष सहायता प्रदान करने लगे"। वह कहते हैं कि इजरायलवाद के प्रति सहयोग , " न केवल सामान्य बात है वरन फिलीस्तीनी समाज और राजनीतिक का प्रमुख तत्व है" कोहेन से पूर्व किसी ने भी ऐतिहासिक आँकडों को इस प्रकार नहीं देखा था।
वे यिशुवा के फिलीस्तीनी गठबंधन के अनेक कारण गिनाते हैं: समान लाभ, स्तर और कबीलाई हित , राष्ट्रवादी महत्वाकाँक्षा, हुसैनी तत्व के प्रति घृणा या भय, व्यक्तिगत नैतिकता, पडोसी न होने का अकेलापन या व्यक्तिगत मित्रता। जो लोग इन लोगों को "मिलीभगत वाला" या " गद्दार" कहते हैं उनके लिये कोहेन का तर्क है कि ये लोग परिस्थितियों को हुसैनी तथा अन्य अस्वीकारवादियों से कहीं अच्छा समझते थे: समायोजनवादी जान गये थे कि इजरायलवाद का प्रकल्प अत्यंत सशक्त है और इसका विरोध नहीं किया जा सकता और इसका विरोध करने का अर्थ विनाश और घर से निकाला जाना होगा इसलिये उन्होंने इसके साथ शांति स्थापित कर ली।
1941 में गुप्तचर मशीनरी ने अत्यंत विकसित तरीके विकसित कर लिये थे ताकि फिलीस्तीनियों के साथ प्रत्येक सम्पर्क का उपयोग सूचना एकत्र करने के लिये किया जाये। आर्मी आफ शैडो इस बात की ओर ध्यान दिलाती है यिशुवा का विकसित सामाजिक विकास जिसे कि कोहेन ने " फिलीस्तीनी अरब समाज में गहरा गुप्तचर प्रवेश" कहा है वह एकमार्गीय प्रक्रिया थी.. फिलीस्तीनी यहूदी जीवन में प्रवेश करने की कला से वंचित थे।
सैन्य बल ( हगाना) , एक आधुनिक आर्थिक अवसंरचना तथा लोकतांत्रिक राजनीति के साथ ही फिलीस्तीनी जीवन में गहराई से उनका प्रवेश भी इजरायलवाद की उपलब्धियों में से एक है। इसका अर्थ है कि जहाँ एक ओर इजरायलवादी एकजुट होकर आक्रामक हो सकते थे ; " फिलीस्तीनी समाज आन्तरिक युद्ध में फँसा था तथा एक नेतृत्व के पीछे एकजुट होकर आंदोलित होने की स्थित में नहीं था"
कोहेन अपने शोध के प्रभावों को लेकर काफी विनम्र हैं, विशेष रूप से इस बात पर कि 1948-49 की अरब पराजय में फिलीस्तीनी सहायता मुख्य कारण नहीं था। यह सही भी है, परंतु जो साक्ष्य उन्होंने उपलब्ध कराये हैं उसके आधार पर इजरायलवादियों के प्रथम संस्करण में उनके उद्यम की सफलता में इनका सहयोग रहा है। रोचक बात यह है कि यह सहयोग इजरायल डिफ़ेन्स फोर्स के लिये अब भी महत्वपूर्ण है( और कैसे आईडीएफ पश्चिमी तट के अनेक आतंकवादी प्रयासों को रोक पाने में सफल होगी) इजरायल राज्य के पास यिशुवा से कहीं अधिक संसाधन हैं जिससे कि फिलीस्तीनी सहायता की आज केंद्रीय भूमिका नहीं है।
कोहेन इस तथ्य की भी पुष्टि करते हैं कि सभी फिलीस्तीनी इजरायल के शत्रु नहीं हैं जिसे कि मैंने भी हाल के दिनों में अभिलेखित किया है। यह आशा का संचार करता है तो क्या 20 प्रतिशत फिलीस्तीनी जो इजरायल का समर्थन करते हैं बढकर 60 प्रतिशत हो सकते हैं जिससे कि अरब इजरायल संघर्ष समाप्त हो जाये। फिलीस्तीनियों का यह ह्रदय परिवर्तन न कि " इजरायल की पीडादायक रियायत" सभी शांति प्रयासकों का लक्ष्य होना चाहिये।