क्या आतंकवाद काम करता है, इसका अर्थ कि क्या इसे करने वाले अपने उद्देश्य में सफल होते हैं?
जबकि आतंकवादी आक्रमण प्रायः दैनिक जीवन का अंग होकर प्रतिदिन की बात हो गये हैं विशेष रूप से इराक, अफगानिस्तान और पाकिस्तान में तो परम्परागत ज्ञान यही कहता है कि आतंकवाद काफी सफल है। उदाहरण के लिये हेब्रू विश्वविद्यालय के स्वर्गीय एहुद स्प्रिंजाक ने स्वीकार किया कि आत्मघाती आतंकवाद " क्रूर ढंग से सफल है" शिकागो विश्वविद्यालय के राबर्ट पेप ने तर्क दिया कि आत्मघाती आतंकवाद बढ रहा है क्योंकि , " आतंकवादी जानते हैं कि इससे सफलता मिलती है" हार्वर्ड विधि प्रोफेसर एलेन एम दर्शोविज ने अपनी एक पुस्तक का शीर्षक दिया Why Terrorism Works।
परंतु स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के फेलो मैक्स अब्राहम्स इस निष्कर्ष का विरोध करते हैं और उनका कहना है कि इन लोगों ने अपना ध्यान कुछ संकीर्ण चिर परिचित आतंकवाद विजयों पर केंद्रित किया है जबकि अधिक व्यापक स्तर पर आतंकवादियों के असफल होने की परिपाटी पर ध्यान नहीं दिया है। इस घाटे को पूरा करने के लिये अब्राहम्स ने 2001 से अमेरिका के राज्य विभाग द्वारा नामित 28 आतंकवादी गुटों पर बारीक अध्ययन किया है और उनका मिलान किया है उनमें से कितनों ने अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त की है।
उनके अध्ययन Why Terrorism Does Not Work में पाया गया है कि इन 28 गुटों के अलग अलग 42 राजनीतिक लक्ष्य हैं और इनमें से केवल तीन में उन्हें सफलता मिली है जो कि कोई 7 प्रतिशत की सफलता दर है। ये तीन विजय हैं (1) 1984 में हिजबुल्लाह लेबनान से बहुराष्ट्रीय शांतिरक्षकों को बाहर करने में सफल रहा। (2) हिजबुल्लाह 1985और 2000 में लेबनान से इजरायल की सेनाओं को बाहर करने में सफल रहा। (3) 1990 में श्रीलंका के कुछ क्षेत्रों पर तमिल टाइगर्स नियंत्रण करने में सफल रहे।
अन्य 26 गुट जिनमें कि अबू निदाल संगठन से अल कायदा और हमास से औम शिन्रिको और कच तथा शाइनिंग पाथ हैं जो कि कभी कभी सीमित सफलता प्राप्त कर लेते हैं परंतु प्रायः वे असफल ही रहते हैं। अब्राहम्स इस आँकडे से तीन नीतिगत परिणाम निकालते हैं।
- गुरिल्ला समूह जो कि प्रायः सैन्य लक्ष्यों पर आक्रमण करते हैं उन्हें अधिक सफलता मिलती है उन आतंकवादी गुटों की अपेक्षा जो कि विशेष रूप से नागरिक ठिकानों को निशाना बनाते हैं। ( आतंकवादी 2004 में मैड्रिड आक्रमण के मामले में भाग्यशाली थे)
- आतंकवादियों के लिये यह , " अत्यंत कठिन होता है कि वे देश की राजनीतिक व्यवस्था को बदल दें या समाप्त कर दें" जिनका उद्देश्य सीमित है ( जैसे कि कुछ राज्य क्षेत्र हथियाना) वे अधिक बेहतर कर जाते हैं लेकिन जो व्यापक उद्देश्य के साथ चलते हैं ( जैसे कि शासन में परिवर्तन) उन्हें कम सफलता मिलती है।
- केवल आतंकवाद " भयभीत करने के उपकरण के रूप में निष्प्रभावी नहीं है वरन आतंकवाद के तरीके में ही इसकी कम सफलता दर अंतर्निहित है" इस असफलता के चलते " भविष्य के जिहादियों को स्वयं को नागरिकों को उडाने से अलग कर लेना चाहिये "
इस लगातार असफलता के अंतिम परिणाम से उत्साहहीनता आती है तथा इससे आतंकवाद के स्थान पर कहीं कम हिंसक तरीकों की ओर ध्यान जाता है। निश्चित ही परिवर्तन का संकेत स्पष्ट है।
उदाहरण के लिये कुलीन स्तर पर भी पूर्व जिहाद आतंकवादी ( अक्का डा. फद्ल ) ने भी हिंसा की निंदा की है, " हमें आक्रामकता करने से प्रतिबंधित किया गया है" वे लिखते हैं, " यदि इस्लाम के शत्रु भी ऐसा करें तो भी "
लोकप्रिय स्तर पर पिउ रिसर्च सेंटर ने 2005 Global Attitudes Project में पाया कि, " अधिकाँश मुस्लिम बहुल देशों में सर्वेक्षण में पाया गया कि आत्मघाती बम आक्रमण तथा अन्य आतंकवादी कार्रवाई के प्रति समर्थन घटा है" । और इसी प्रकार , "अल कायदा के नेता ओसामा बिन लादेन के प्रति विश्वास भी" ।इसी प्रकार 2007 Program on International Policy Attitudes के अध्ययन में पाया गया कि , " सभी देशों में अधिकाँश बहुमत राजनीतिक उद्देश्य के लिये नागरिकों पर आक्रमण का विरोध करता है और इसे इस्लाम के विरुद्ध मानता है.... अनेक उत्तरदाताओं का मानना था कि राजनीतिक आशय से नागरिकों पर आक्रमण जैसे बम से आक्रमण या हत्या को न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता" ।
व्यावहारिक स्तर पर आतंकवादी समूह नये स्वरूप में विकास की ओर हैं। उनमें से अनेक विशेष रूप से अल्जीरिया , मिस्र और सीरिया मे उन्होंने हिंसा का मार्ग छोड दिया है और राजनीतिक व्यवस्था में कार्य करने लगे हैं। अन्य ने भी अहिंसक कार्य आरम्भ कर दिया है हिजबुल्लाह चिकित्सा सेवायें दे रहा है तथा हमास ने चुनाव जीता। यदि अयतोला खोमैनी और ओसामा बिन लादेन इस्लामवाद के प्रथम चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं तो हिजबुल्लाह और हमास संक्रमणकालीन चरण का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन जो कि विश्व के सबसे शक्तिशाली इस्लामवादी हैं उन्होंने वैधानिक होने के लाभ के दर्शन करा दिये हैं।
यदि राजनीतिक मार्ग सफल है तो फिर इस्लामवादी हिंसा क्यों जारी है और बढ रही है? क्योंकि वे सदैव व्यावहारिक नहीं होते। SITE गुप्तचर समूह के रिटा काद्ज के अनुसार, " एक दैवीय संघर्ष मे लगे होने के कारण जिहादी अपनी सफलता केवल इस जीवन में भौतिक विजय से नहीं मापते वरन ईश्वर का शाश्वत आशीर्वाद और इस जीवन के बाद का पुरस्कार"
दीर्घगामी स्तर पर यद्यपि इस्लामवादी हिंसा की सीमाओं को भाँप जायेंगे और धीरे धीरे वैधानिक ढंग से अपने उद्देश्य की ओर बढेंगे। कट्टरपंथी इस्लाम को हमें पराजित करने का सबसे अच्छा अवसर बम आक्रमण और सर कलम करने में नहीं वरन , कक्षाओं, न्यायालय , कम्प्यूटर गेम, टेलीविजन स्टूडियो और चुनावी अभियान में है।
हम सतर्क हैं।