इस माह में घटित दो घटनाओं ने जार्ज डब्ल्यू बुश के मध्य पूर्व के रिकार्ड को लेकर दो परस्पर भिन्न विचारों का निष्कर्ष हमारे समक्ष रखा है।
एक में बुश ने स्वयं अपने विदाई भाषण में घोषित किया कि, " 2008 में मध्य पूर्व 2001 की अपेक्षा एक मुक्त, अधिक आशावान और सुखद भविष्य की ओर अग्रसर स्थान है" । दूसरी ओर एक और घटना में एक इराकी पत्रकार मुंतरजर अल जैदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति के बगदाद में भाषण के समय उनके प्रति असम्मान और अस्वीकार्यता प्रदर्शित करते हुए उन पर जूते फेंके और उनपर चिल्लाया, " यह एक विदाई है ! कुत्ते, कुत्ते!"
वैसे यह विडम्बना है कि जैदी की यह बेशर्मी बुश के इस कथन को पुष्ट करती है कि अधिक स्वतंत्रता मिली है, क्या वह सद्दाम हुसैन पर जूता फेंकने का साहस कर सकता था?
हालाँकि मैं बुश को पसन्द करता हूँ और उनके विषय में अच्छा सोचता हूँ पर मैंने कट्टरपंथी इस्लाम के प्रति उनकी प्रतिक्रिया की आलोचना 2001 से ही की है, 2002 से उनकी अरब इजरायल नीति की , 2003 से उनकी इराक नीति की और 2005 से उनकी लोकतांत्रिक नीति की। वर्ष 2007 और 2008 में मैंने उनके समस्त मध्य पूर्व के प्रयासों की कमियों की समालोचना की।
आज मैं उनके इस दावे को मुद्दा बना रहा हूँ कि मध्य पूर्व 2001 से अधिक आशावान और सुखद भविष्य की ओर देखने वाला स्थान बन गया है। उन कुछ गतिविधियों को देखिये जिनके चलते स्थितियाँ अधिक खराब हो गयी हैं।
- ईरान ने प्रायः परमाणु हथियार का निर्माण कर लिया है और ऐसा प्रतीत होता है कि यह अमेरिका पर विनाशक electro-magnetic pulse attack on the United States आक्रमण की तैयारी कर रहा है।
- पाकिस्तान एक परमाणु सम्पन्न इस्लामवादी राज्य बनने की ओर अग्रसर है।
- तेल की कीमतें अपनी सर्वाधिक वृद्धि दर पर हैं केवल अमेरिका की मंदी के चलते गिरी हैं।
- तुर्की एक शक्तिशाली सहयोगी से छिटककर विश्व में अमेरिका का सबसे विरोधी देश हो गया है।
- इराक अमेरिका की गर्दन पर जूते के समान सवार है जो कि खर्च, मानव क्षति और अकूत खतरे की सम्भावना लिये है।
- इजरायल को एक यहूदी राज्य के रूप में अस्वीकार करना अधिक प्रचलित और विषाक्त स्वरूप ग्रहण कर चुका है।
- इस क्षेत्र में रूस एक शत्रु शक्ति के रूप में फिर से उभर रहा है।
- लोकतंत्र के प्रयास ध्वस्त हो गये ( मिस्र) इस्लामवादी प्रभाव अधिक बढ गया ( लेबनान) या फिर इस्लामवादियों के सत्ता ग्रहण करने के लिये मार्ग प्रशस्त हो गया ( गाजा)
- खतरे को पहले ही आक्रमण कर रोकने की नीति की कीर्ति धूमिल हो चुकी है।
बुश की दो सफलतायें बिना सद्दाम हुसैन का इराक और जनसंहारक हथियारों से मुक्त लीबिया शायद ही इन असफलताओं को संतुलित कर सके।
इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बुश के आलोचक उनके मध्य पूर्व के रिकार्ड की निंदा करते हैं। ठीक है पर अब तो वे प्रायः निर्णायक भूमिका में हैं अब मध्य पूर्व को लेकर अमेरिका की नीति को वे कैसे ठीक करना चाहते हैं?
एक पूर्वावलोकन Restoring the Balance: A Middle East Strategy for the Next President तो सार्वजनिक प्रदर्शन के लिये है, एक बडा अध्ययन संयुक्त रूप से दो उदारवादी संस्थानों ने किया है द ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन ( 1916 में स्थापित) तथा काउंसिल आफ फोरेन रिलेशंस ( 1921 में स्थापित) । 18 माह के इस प्रयास की परिणति Restoring the Balance में 15 विद्वानों ने भाग लिया , 2 सहायक सम्पादक ( रिचर्ड हास और मार्टिन इंडिक) , राकफेलर कांफ्रेंस सेन्टर में भोज हुआ, अनेक तथ्य शोधक यात्रायें हुईं और संगठनों और प्रबंधकों की एक छोटी सेना के साथ यह कार्य सम्पन्न हुआ।
यह पाठक दो मुख्य कमियों में ही अटका पडा है, पहला, पुस्तक ने छह विषयों पर अध्ययन किया है ( अरब इजरायल संघर्ष, ईरान, इराक , आतंकवाद प्रतिरोध, परमाणु अप्रसार तथा राजनीतिक और आर्थिक विकास) , इसके विशेषज्ञों ने इस्लामवाद पर प्रायः कुछ भी नहीं कहा है, जो कि हमारे समय की सबसे तात्कालिक वैचारिक चुनौती है, न ही ईरान के परमाणु निर्माण पर कुछ कहा गया है, जो कि हमारे समय का सबसे तात्कालिक सैन्य खतरा है। उन्होंने अन्य मुद्दों जैसे तुर्की, सउदी अरब, इजरायल के प्रति अरब की अस्वीकार्यता , रूस का खतरा तथा ऊर्जा निर्यात करने वाले देशों को सम्पत्ति का हस्तांतरण से भी किनारा कर लिया है।
दूसरा, यह अध्ययन पराजयमूलक नीतिगत सिफारिशें करता है। " स्टीवेन ए कुक तथा शिबले तेलहामी ने सुझाव दिया है कि " हमास को अपने दायरे में लाओ" तर्क दिया है कि " फिलीस्तीनी एकता सरकार में" आतंकवादी संगठनों को शामिल किया जाये और साथ ही 2002 के अब्दुल्लाह योजना को भी स्वीकार करने की वकालत की है। अरब इजरायल मंच पर उल्टा पडने वाली इसके अतिरिक्त किसी अन्य योजना की कल्पना ही नहीं की जा सकती।
ईरान के मुद्दे पर सुजैन मालोने व रे ताकेह ने ईरानी परमाणु अवसंरचना पर आक्रमण तथा उसे घेरने की दोनों ही नीतियों को अस्वीकार किया है। इसके बजाय एक मूलभूत परिवर्तन की बात करते हुए तेहरान के साथ सम्पर्क बनाने का सुझाव देते हैं और इसका कारण कुछ अपरिहार्य वास्तविकतायें हैं ( जैसे कि ईरान की बढती शक्ति) और ईरान के प्रभाव को नियमित कर सकने के लिये योजना निर्माण की आवश्यकता।
इन उदाहरणों से स्पष्ट है कि कमजोरी और तुष्टीकरण की भावना Restoring the Balance में प्रवेश कर गयी है। अमेरिका के हितों को मजबूती से बढाने के आश्वासन का क्या हुआ?
एक ओर जहाँ आशा की जाती है कि ओबामा प्रशासन ऐसे निराशावादी अपरिपक्व सुझावों को दरकिनार कर देगा तो साथ ही यह भी भय है कि ब्रूकिंग्स और सी एफ आर की मनोदशा ही अगले कुछ वर्षों तक हावी रहेगी। यदि ऐसा होता है तो बुश का रिकार्ड आज भले ही कितना अपर्याप्त दिखता हो परंतु उनके उत्तराधिकारी की तुलना में यह चमकेगा।