इजरायल हमास युद्ध की टिप्पणी दो भागों में विभाजन के झुकाव की ओर रही है, जिसमें कि नैतिक आधार पर या तो इजरायल का पक्ष लिया गया है या नहीं। यह एक महत्वपूर्ण बहस है परंतु एकमात्र नहीं ; इसके साथ ही ठन्डे मस्तिष्क से रणनीतिक आकलन की भी आवश्यकता है कि कौन विजयी हो रहा है और कौन पराजित हो रहा है?
हिलेल फ्रीस का तर्क है कि हमास ( जो उनके अनुसार " एक छोटा अलग थलग पडा आंदोलन है जो कि एक छोटी सी पट्टी को नियंत्रित करता है) ने मिस्र की सरकार को असंतुष्ट कर तथा इजरायल के साथ युद्ध कर " स्थितियों का पूरी तरह गलत आकलन किया है" । उनका निष्कर्ष है कि हमास ने " रणनीतिक आत्महत्या" कर ली है।
सम्भव है परंतु जो परिस्थितियाँ हैं उनमें हमास को लाभ हो रहा है। खालिद अबू तोमेह ने समस्त मध्य पूर्व में हमास को मिल रहे समर्थन का उल्लेख किया है। कैरोलिन ग्लिक ने हमास की विजय के दो मार्ग बताये हैं : एक तो यथास्थिति पर वापस लौटना जिसमें कि हमास अब भी गाजा में मुख्य भूमिका में रहे, या फिर युद्धविराम का समझौता जहाँ कि विदेशी शक्तियाँ एक अंतरराष्ट्रीय निगरानी शासन की स्थापना करें जो कि मिस्र और इजरायल के साथ गाजा की सीमा की देख रेख करे।
जैसा कि इससे प्रतीत होता है कि हमास के युद्ध के रिकार्ड का आकलन प्रमुख रूप से इस बात पर निर्भर है कि जेरूसलम में क्या निर्णय लिया जाता है। यही निर्णय प्रमुख मुद्दा है कि कितने सही ढंग से इजरायल के नेतृत्व ने कार्य किया है?
विनाशकारी ढंग से जेरूसलम की भयानक अक्षमता 1993 से लगातार जारी है और असफल नीतियों को इसने इतना आगे बढाया है कि इससे इजरायल की प्रतिष्ठा , रणनीतिक लाभ और सुरक्षा का क्षरण हुआ है। चार प्रमुख कारण हैं जिससे कि मैं नकारात्मक निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ।
पहला, जेरूसलम की टीम ने गाजा की समस्या को खडा किया। इसके नेता प्रधानमंत्री एहुद ओल्मर्ट ने पारलौकिक ढंग से 2005 में गाजा से एकतरफा वापसी की व्याख्या की थे: " हम ( इजरायल के लोग) लडते लडते थक गये हैं , हम साहसी होते होते थक गये हैं, हम विजयी होते होते थक गये हैं, हम अपने शत्रुओं को पराजित करते करते थक गये हैं"
(1) ओल्मर्ट ने गाजा से वापसी में मुख्य भूमिका निर्वाह की जिसने कि इस क्षेत्र पर इजरायल सुरक्षा सेना के निकट नियंत्रण को समाप्त कर दिया तथा (2) गाजा मिस्र सीमा पर इजरायल के नियंत्रण को छोड देना। बाद के निर्णय पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया परंतु इससे हमास को मिस्र की ओर सुरंग निर्माण करने की क्षमता प्राप्त हो गयी ताकि सामग्री की तस्करी कर इजरायल पर मिसाइल दागी जा सके।
दूसरा, ओल्मर्ट और उनके सहयोगी राकेट और मोर्टार को दागे जाने से रोकने में असफल रहे । 2005 में इजरायल की वापसी से अब तक हमास ने इजरायल पर 6,500 मिसाइल दागी हैं। क्या बात है इजरायल ने तीन वर्षों तक प्रत्येक दिन आठ आक्रमण सहन किये, क्यों? एक उत्तरदायी सरकार को पहले राकेट पर ही प्रतिक्रिया देनी चाहिये थी ।
तीसरा, मध्य दिसम्बर में फ्रांसीसी संसद की एक समिति ने एक अत्यंत महत्वपूर्ण तकनीकी रिपोर्ट प्रकाशित की है जो कि यह स्थापित करती है कि, " इस बारे में कोई शक नहीं" कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम सैन्य उपयोग के लिये है और यह 2 से 3 वर्षों में पूरा होकर आरम्भ हो जायेगा।
बुश प्रशासन के अंतिम दिनों में जबकि वर्तमान राष्ट्रपति जाने वाले हैं और निर्वाचित राष्ट्रपति कार्यभार लेने वाले हैं तो यह कार्य के सम्बंध में देखभाल करने का अच्छा अवसर है। तो ओल्मर्ट ने इस अवसर को ईरान के परमाणु कार्यक्रम से उत्पन्न अस्तित्वगत खतरे के स्थान पर अपेक्षाकृत कम खतरे हमास से संघर्ष में व्यर्थ कर दिया । इस उपेक्षा के व्यापक और घातक परिणाम हो सकते हैं।
अंत में हमास के साथ युद्ध में ओलमर्ट सरकार के किस उद्देश्य को देखा जाये, ऐसा प्रतीत होता है कि यह हमास को कमजोर करना चाहती है ताकि फतह को सशक्त किया जा सके और महमूद अब्बास गाजा पर पुनः नियंत्रण स्थापित कर सकें व इजरायल के साथ कूटनीति आरम्भ कर सकें। माइकलबी ओरेन व योसी क्लेन हलेवी ने इस विचार को अभी हाल के अपने लेख में पकडा है जिसका शीर्षक है, " फिलीस्तीनी इजरायल की विजय चाहते हैं: यदि हमास अपने आतंक के साथ आगे बढता है तो शांति प्रक्रिया समाप्त हो जायेगी"
हालाँकि कटु अनुभव इस अवधारणा को अयोग्य ठहराते हैं। एक तो यह कि फतह ने स्वयं को एक दृढ प्रतिज्ञ शत्रु सिद्ध किया है जिसका लक्ष्य यहूदी राज्य को समाप्त करना है। दूसरा, फिलीस्तीनियों ने स्वयं फतह को 2006 के चुनाव में अस्वीकार कर दिया था। क्या इसके बाद भी कोई फतह को " शांति का भागीदार" मानता है? इसके बजाय जेरूसलम को अन्य स्थितियों के बारे में रचनात्मक रूप से देखना चाहिये , जैसे कि मेरा no-state solution कोई राज्य नहीं समाधान और जार्डन व मिस्र की सरकारों को इसमें लाना।
ओल्मर्ट की अयोग्यता से अधिक निराशाजनक यह है कि एक माह में होने वाले इजरायल के चुनाव में अभी से उनके समान तीन नेता आमने सामने हैं( विदेश मंत्री ज़िपी लिवनी तथा रक्षा मंत्री एहुद बराक ) जो कि वर्तमान में उनके निकट सहयोगी हैं, शेष दो ( बराक और बिन्यामिन नेतन्याहू ) अपने पूर्ववर्ती प्रधानमंत्री कार्यकाल में बुरी तरह असफल रहे हैं।
ओल्मर्ट और उनके सम्भावित उत्तराधिकारियों में सबसे बुरी बात यह है कि इनमें से किसी ने भी इजरायल के राजनीतिक जीवन की ऊपरी सतह पर पूरी तरह विजय की भावना को अभिव्यक्त नहीं किया है। इस कारण से मैं इजरायल को राजनीतिक रूप से समाप्त देखता हूँ कि जो प्रतिभा, ऊर्जा और संकल्प से भरा है परंतु दिशाहीन है।