मंगलवार को काइरो और बेनगाजी के अमेरिकी दूतावासों पर आक्रमण इस्लामवादियों द्वारा भयभीत करने और इसकी प्रतिक्रिया में पश्चिमी तुष्टीकरण की सहज परिपाटी के अनुकूल ही है जो प्रक्रिया 1989 के सलमान रश्दी से आरम्भ हुई थी। जिस प्रकार अमेरिकी राजनयिक की हत्या के उपरांत ओबामा प्रशासन की प्रतिक्रिया निष्क्रिय सी रही है उससे ऐसे और आक्रमणों की सम्भावना बढ गयी है।
रुश्दी संकट अचानक तब उत्पन्न हुआ जब ईरान के शासक अयातोला खोमैनी ने एक उपन्यासकार द्वारा लिखे गये एक जादुई वास्तविक उपन्यास The Satanic Verses को " इस्लाम, पैगम्बर और कुरान" के विरुद्ध घोषित करते हुए इस लेखक के विरुद्ध मौत का फतवा जारी कर दिया। इस घटना के उपरांत ऐसे आक्रमणों की लम्बी सूची बनती गयी ,1997 में अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में प्रतिमा को लेकर, 2002 में अमेरिका के धर्मान्तरण समर्थक नेता जेरी फालवेल, 2005 में न्यूजवीक पत्रिका, 2006 में डेनमार्क के कार्टून का विषय, 2006 में ही पोप बेनेडिक्ट 16 का मामला, 2010 में फ्लोरिडा के प्रचारक टेरी जोंस का मामला, 2012 के आरम्भ में अफगानिस्तान में अमेरिकी सैनिकों का मामला इस लम्बी सूची में शामिल रहा। इन सभी मामलों में इस्लाम के प्रतीत होने वाले अपमान के चलते हिंसा की घटनायें हुईं जो कि कुछ अवसरों पर पश्चिम के विरुद्ध हुईं परंतु अधिक अवसरों पर मुसलमानों में आपस में ही घटित हुईं।
वास्तव में वर्ष 2010 की घटना के चलते अफगानिस्तान में 19 मौतें हुईं जिससे कि तब की First Things पत्रिका के डेविड गोल्डमैन ने देखा और कहा, " कोई भी पागल व्यक्ति एक माचिस की डिबिया और कुरान की प्रति के सहारे मुस्लिम जगत को उतनी हानि पहुँचा सकता है जितना कि बस में भरे आत्मघाती हमलावर भी नहीं पहुँचा सकते...... कुरान की उपयोग की हुई संस्करण की प्रति के मुकाबले की गयी क्षति का डालर में कितना मूल्य है" ? गोल्डमैन ने अनुमान लगाया कि किस प्रकार गुप्तचर सेवायें जोंस से सीख सकती हैं कि कुछ डालर के सहारे व्यापक अराजकता फैलाई जा सकती है।
अभी तक 2012 के आक्रमण के चलते 4 अमेरिकी लोगों की मृत्यु हुई है और सम्भव है कि यह आगे और बढे। जोन्स (अपने International Judge Muhammad Day के द्वारा) और सैम बैसिले ( जो कि सम्भवतः अस्तित्व में न हो परंतु जिन पर आरोप है कि उन्होंने ही इस्लाम विरोधी वीडियो बनाकर 11 सितम्बर के इस बार के आक्रमण को प्रेरित किया) न केवल लोगों के लिये मृत्यु की स्थिति निर्माण कर सकते हैं वरन अमेरिका और मिस्र के सम्बंधों में टकराव ला सकते हैं और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों में एक तत्व बन सकते हैं।
जहाँ तक ओबामा प्रशासन का प्रश्न है तो वह अपने तुष्टीकरण और क्षमाप्रार्थी भाव के अनुसार ही कार्रवाई कर रहा है और इसने इस्लाम के आलोचकों को दोषी ठहराया है। " काइरो में अमेरिका के दूतावास ने कुछ दिग्भ्रमित लोगों द्वारा मुसलमानों की धार्मिक भावनाओं को भडकाने के लगातार प्रयास की निंदा की .... हम उन लोगों के कार्य को अस्वीकार करते हैं जो कि अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के वैश्विक अधिकार का दुरूपयोग दूसरों की धार्मिक आस्था को ठेस पहुँचाने के लिये कर रहे हैं" । इसके उपरांत विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ( अमेरिका दूसरों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने के किसी भी अन्तरराष्ट्रीय प्रयास की निंदा करता है) और बराक ओबामा( अमेरिका दूसरों की धार्मिक भावना को नीचा दिखाने के प्रयासों की निंदा करता है) ने आरम्भिक घुटने टेकने के रुझान को पुष्ट कर दिया।
रिपब्लिकन राष्ट्रपति प्रत्याशी मिट रोमनी ने सही ही कहा , "यह दुखद है कि ओबामा प्रशासन की प्रथम प्रतिक्रिया हमारे दूतावासों पर हुए आक्रमण की निन्दा करने की नहीं थी वरन वे उनके प्रति सहानुभूति रख रहे थे जिन्होंने आक्रमण किया" । इस तर्क के व्यापक परिणाम हैं चुनाव के लिये तो अधिक नहीं हैं( वहाँ ईरान प्रमुख विदेश नीति का मुद्दा है) परंतु क्योंकि ऐसी कमजोरी से इस्लामवादियों को पुनः आक्रमण करने की प्रेरणा मिलती है तथा वे इस्लाम की आलोचना को रोक पाते हैं और पश्चिम पर इस्लामी कानून या शरियत के एक आयाम को थोपने में सफल होते हैं।
टेरी जोंस , सैम बैसिले और भविष्य में उनका अनुकरण करने वाले जानते हैं कि मुसलमानों को कैसे हिंसा के लिये प्रेरित किया जाये, पश्चिमी सरकारों को शर्मिंदा किया जाये और इतिहास को आगे बढाया जाये। इसकी प्रतिक्रिया में इस्लामवादी जानते हैं कि जोंस इत्यादि का अपने लिये कैसे उपयोग किया जाये। इस चक्र को रोकने के लिये सरकारों को सिद्धांतों पर मजबूती से खडा होना होगा ; " नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है जिसका विशेष रूप से अर्थ अपमान और असंतुष्ट करना भी होता है। अधिकारी इस अधिकार की रक्षा करेंगे। मुसलमानों को कोई विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है और वे भी इसी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नियम के अंतर्गत आते हैं जैसे कि अन्य लोग आते हैं। हमें अकेला छोड दो"