जब सलमान रश्दी ने 1989 में अपने जादुई वास्तविक उपन्यास The Satanic Verses में इस्लामी पवित्रता को चिढाया था तो अयातोला खोमैनी ने मौलिक रूप से कुछ चौंकाने वाला कार्य किया : उन्होंने रश्दी सहित इस पुस्तक के प्रकाशन से जुडे सभी लोगों के विरुद्ध मृत्यदंड का फतवा जारी कर दिया । ऐसा करते हुए खोमैनी ने पश्चिम पर इस्लामी मूल्य और नियम लाद दिये कि हम पैगम्बर का अपमान नहीं करते और प्रभावी रूप से पश्चिम को भी कहा कि आप भी ऐसा नहीं कर सकते।
इसके साथ ही एक रुझान आरम्भ हो गया कि पश्चिम में जो भी इस्लाम विरोधी दिखे उसकी निंदा की जानी चाहिये और यह आज तक चल रहा है। बार बार जब भी पश्चिम मुहम्मद, कुरान या इस्लाम का असम्मान करता दिखता है तो इस्लामवादी प्रदर्शन करते हैं , दंगे करते हैं और हत्यायें करते हैं।
खोमैनी के फतवे का अप्रत्याशित एक परिणाम यह हुआ कि इससे पश्चिम और इस्लामवादी दोनों ही पक्षों में कुछ व्यक्तियों को ऐसा अवसर प्राप्त हो गया कि वे अपने देश की नीतियों का संचालन करने लगे।
पश्चिमी ओर से एक समाचार पत्र सम्पादक फ्लेमिंग रोज ने द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात डेनमार्क के लिये सबसे बडा संकट खडा करते हुए मुहम्मद के बारह कार्टून प्रकाशित किये। फ्लोरिडा के पादरी टेरी जोंस ने अफगानिस्तान में अमेरिकी कमांडरों में भय उत्पन्न करते हुए कुरान को जलाने की धमकी दे डाली। नकोला बासेले नकोला और उनके मित्रों ने Innocence of Muslims के वीडियो द्वारा मिस्र के साथ अमेरिका के कूटनीतिक सम्बन्धों के लिये संकट खडा कर दिया। फ्रांसीसी साप्ताहिक पत्रिका Charlie Hebdo ने मुहम्मद के भोंडे चित्र प्रकाशित कर फ्रांस की सरकार को विवश कर दिया कि वह बीस देशों में अपने दूतावास अस्थाई रूप से बन्द कर दे। इसी प्रकार जर्मनी की व्यंग्य पत्रिका Titanic ने भी मुहम्मद पर इसी प्रकार आक्रमण की योजना बनाकर जर्मनी के दूतावासों को भी बंद करने को विवश कर दिया।
इस्लामवादी पक्ष से किसी व्यक्ति या वर्ग ने इन प्रतीत होने वाले अपमानों को लेकर इसे दंगे का कारण बनाया। खोमैनी ने ऐसा The Satanic Verses के लिये किया तथा अहमद अबू लबान ने ऐसा ही डेनिश कार्टून के साथ किया। हामिद करजई ने अफगानियों को अमेरिकी सैनिकों द्वारा कुरान के जलाये जाने पर दंगे करने को प्रेरित किया और मिस्र के प्रचारक खालिद अब्दुल्लाह ने Innocence of Muslim एक अंतराष्ट्रीय घटना बना दिया।
संक्षेप में कोई भी पश्चिमी कुछ डालर में कुरान को खरीद कर उसे जला सकता है जबकि कोई भी मुसलमान एक मंच से इस घटना को एक युद्धक आक्रामकता में परिवर्तित कर सकता है। लोकतांत्रिक पश्चिमी और मुस्लिम के दोनों ही पक्षों में भावनायें हावी हैं और पश्चिमी उद्दीप्तकर्ताओं ( भडकाने) और इस्लामवादी गरम प्रतिक्रिया करने वालों के मध्य यह मुठभेड दिनों दिन बढती जा रही है।
इससे एक प्रश्न उठता है: क्या होगा यदि प्रमुख मीडिया के प्रबंधक और प्रकाशक इस आम सहमति पर आ जायेंगे कि , " अब बहुत हुआ यह भय हम प्रसिद्ध डेनमार्क के मुहम्मद कार्टून प्रतिदिन प्रकाशित करेंगे जबतक कि इस्लामवादी थक नहीं जाते और दंगे करना बंद नहीं कर देते"? क्या होगा यदि कुरान जलाने की घटना प्रायः घटित होने लगेगी?
क्या पुनरावृत्ति होने से संस्थागत स्वरूप को प्रेरणा मिलेगी , इससे कहीं अधिक आक्रोशमय प्रतिक्रिया होगी, क्या इससे इस्लामवादियों को और शक्ति मिलेगी जिस पर वे सवार हो सकेंगे? या फिर यह दिन प्रतिदिन का अंग हो जायेगा, इस्लामवादियों को भी यह सामान्य लगने लगेगा और उन्हें यह आभास होगा कि हिंसा से उन्हें कोई लाभ नहीं होता वरन यह पलटकर क्षति ही पहुँचाता है।
मेरी भविष्यवाणी है कि बाद वाला ही घटनाक्रम होगा , मुहम्मद कार्टून का प्रतिदिन प्रकाशन या फिर आम तौर पर कुरान का तिरस्कार होने से इस्लामवादियों के लिये मुस्लिम जनमानस को एकत्र करना कठिन हो जायेगा । यदि ऐसा होता है तो पश्चिम के लोग इस्लाम के साथ भी वैसा ही व्यवहार करने लगेगें जैसा कि वे अन्य धर्मों के साथ करते हैं कि बिना भय के उसकी आलोचना करते हैं। इससे इस्लामवादियों को प्रदर्शित होगा कि पश्चिमी लोग समर्पण नहीं कर रहे हैं और वे इस्लामी कानून को अस्वीकार कर रहे हैं और वे अपने मूल्यों के लिये खडे होने को तैयार हैं।
इसलिये सभी पश्चिमी सम्पादकों और निर्माताओं से यह मेरा अनुरोध है कि मुहम्मद के कार्टून प्रतिदिन दिखायें कि जब तक इस्लामवादी इस बात के आदी न हो जायें कि हमने पवित्रता को व्यावहारिक स्तर पर ला दिया है।