मुहम्मद के प्रतीत होने वाले अपमान को लेकर हो रही इस्लामवादी हिंसा के बारे में FoxNews.com के एक लेख में शुक्रवार को मैंने तर्क दिया कि सम्पादकों और निर्माताओं को प्रतिदिन मुहम्मद के कार्टून दिखाने चाहिये कि जबतक , " इस्लामवादी इस तथ्य के साथ जीने के आदी न हो जायें कि हमने पवित्रता को व्यावहारिक स्तर पर ला दिया है"
इस अपील को लेकर द अमेरिकन मुस्लिम वेबसाइट की शीला मुसाजी ने अत्यंत गम्भीर प्रतिक्रिया दी जिन्होंने इसे " गैरजिम्मेदार और समझ से परे बताया है" ऐसा क्यों? क्योंकि जैसा कि उनका कहना है, " बढती हुई हिंसा और नफरत के भाषण का समाधान अधिक नफरत का भाषण नहीं हो सकता"
यह समझदारीपूर्ण बात लगती है । परंतु क्या मुहम्मद को चिढाना , कुरान को जलाना या फिर इस्लाम को एक पंथ कहना नफरत का भाषण कहा जा सकता है? तो फिर अमेरिका के सर्वोच्च न्यायालय में या न्यूयार्क राज्य सर्वोच्च न्यायालय के भवनों में मुहम्मद के सम्मानपूर्ण प्रतिनिधित्व का क्या? जबकि उसके चलते असंतोष और दंगे भी हुए।
कानूनी लोगों की राय में नफरत का भाषण एक विशेष प्रकार की श्रेणी के लोगों के विरुद्ध होता है। यू एस लीगल डाट काम की जटिल परिभाषा के अनुसार , " किसी वर्ण, नस्ल, राष्ट्रीय मूल , लिंग , मजहब , लैंगिक स्वभाव या इस प्रकार के किसी वर्ग के विरुद्ध मूल रूप से घृणा फैलाने का प्रयास इस श्रेणी में आता है"
मेरा तर्क है कि मजहब की पवित्रता पर प्रहार उस मजहब की आस्था को निशाना बनाये जाने से पूरी तरह अलग है। मजहब की पवित्रता एक संरक्षित भाषण है जो कि विचारों के बाजार में लेनदेन का एक अंग है और इसमें सभी सुंदर भी नहीं है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ अपमान और आपत्तिजनक होने की स्वतंत्रता भी है। जबतक इसमें भडकाने या ऐसी सूचना प्रसारित करने का तत्व शामिल नहीं होता जिसके आधार पर आपराधिक कार्रवाई हो तब तक आपत्तिजनक होना हमारी विरासत का अभिन्न अंग है।
व्यक्तिगत रूप से कहूँ तो मुझे भाषण और चित्रों में समान रूप से उनकी अश्लील विष की खुराक के साथ जीना सीखना होगा जो कि हमसे सहमत नहीं हैं , मैं इस सम्बंध में शिकायत नहीं कर सकता। अधिक व्यापक रूप में पश्चिम में प्रबोधन युग के बाद से कैथोलिक, यहूदी , मोरमोंस तथा अन्य समुदायों ने अपने प्रतीकों और सिद्धांतों पर होने वाले अपमानजनक प्रहारों को आत्मसात करना सीख लिया है।
यदि साक्ष्य चाहिये तो मोंटी पायथन का Life of Brian, टेरेंस मैकनाली का Corpus Christi, एन्डेर्स सेरेनो का Piss Christi और क्रिस ओफिली का The Holy Virgin Mary याद करलें। या फिर मुसलमानों द्वारा बनाये जाने वाले सेमेटिक विरोधी कार्टून हों।
अभी हाल के एक उदाहरण को लें , The Onion नाम की हास्य वेबसाइट ने No One Murdered Because of This Image शीर्षक से कुछ कार्टून प्रकाशित किये। "इसमें मोजेज, जीसस, गणेश और बुद्ध को बादलों में दिखाया जिन्हें कि ऐसी उत्तेजनात्मक यौन क्रियाओं के साथ दिखाया गया था जो कि अपमानकारक था। इस पत्रिका ने बताया कि , " सूत्रों के अनुसार हालाँकि कुछ यहूदी, ईसाई,हिंदू और बौद्ध आस्था के लोग इन चित्रों से काफी रुष्ट हुए, अपने सिर हिलाये , अपनी आंखें नचायीं और अपने दिन के कार्य में लगे रहे"
मैंने कार्टूनों को बार बार प्रकाशित करने के लिये यह स्थापित करने के लिये कहा कि इस्लामवादी चिढाने और अपमान की स्वतंत्रता से इस तर्क की आड में न बचें कि यह भड्काने का कार्य है। सुश्री मुसाजी एक भी उदाहरण बतायें कि जब मुहम्मद , कुरान या इस्लाम के बारे में चुभने वाले बयान के चलते मुसलमानों के विरुद्ध गैर मुसलमानों ने दंगे किये हों या हत्यायें की हों?
मैं एक भी नहीं सोच पा रहा हूँ ।
जब मुसलमानों पर आक्रमण होता है तो वे प्रतिक्रिया में मुसलमानों के द्वारा आतंकवाद में लिप्त हो जाते हैं, निश्चित रूप से यह कोई तर्क नहीं है, परंतु इससे यह संकेत मिलता है कि मुसलमानों के विरुद्ध हिंसा का कोई सम्बंध मुहम्मद का मजाक बनाने या कुरान को अपमानित करने से नहीं है। मुसलमानों को भी अपनी खाल मोटी करनी होगी जैसा कि अन्य लोगों ने की है और यह वैश्वीकरण का सह उत्पाद है। पुराना आवरण चला गया ।
इस मामले को और बुरा करते हुए इस्लामवादी हमसे कहते हैं कि मुहम्मद के मामले में सतर्क होकर रहो और उन लोगों को धमकी देते हैं जो कि इस बारे में चर्चा करते हैं , इसे बनाते हैं या इस्लाम के पैगम्बर का चित्र बनाने का दिखावा भी करते हैं जबकि वे अन्य धर्मों का अपमान करने के लिये स्वतन्त्र रहते हैं। मैं अनेक कलाकारों, व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्ट , लेखकों, सम्पादकों, प्रकाशकों , लोकपाल और अन्य लोगों का उदाहरण दे सकता हूँ जो कि खुले रूप से इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि इस्लामी विषय पर चर्चा करने में उन्हें भयभीत किया जाता है यहाँ तक कि इस समस्या को सुश्री मुसाजी ने भी स्वीकार किया है।
तापमान को शांत करने के लिये मुसलमान दो कदम उठा सकते हैं: आतंकवाद बंद कर दें और कार्टून व उपन्यास पर दंगे करना बंद कर दें। इससे पिछ्ले दशक में इस्लाम के विरुद्ध निर्माण हुआ विरोध शांत हो जायेगा। ऐसे अवसर पर मैं खुशी खुशी सम्पादकों और निर्माताओं से मुहम्मद का अपमानकारक कार्टून प्रकाशित करने की अपील वापस ले लूँगा।