इराक के सम्बंध में बहस में डेमोक्रेट और अधिकाँश सहयोगी सरकारें सैन्य अभियान के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद की संस्तुति की माँग कर रही हैं या फिर वे इसके विरुद्ध हैं।
यह एक विचित्र स्थिति है। अमेरिकी सरकार जिसका कि पिछ्ली दो शताब्दियों का मानवाधिकार को आगे बढाने और तानाशाहों को पराजित करने का रिकार्ड रहा है उसे संयुक्त राष्ट्र संघ पर निर्भर होना पडेगा? अब अमेरिका के निर्वाचित नेताओं को एक किनारे लगा दिया जायेगा और मिले जुले तानाशाह अमेरिका की सुरक्षा को प्रभावित करने वाले निर्णय लेंगे?
इस विचित्र विचार के पीछे एक कारण है, जिसका पता हडसन इन्सटीट्यूट के जान फोंटे के ओर्बिस पत्रिका के अभी के अंक में प्रकाशित एक आँखें खोल देने वाले लेख eye-opening article से चलता है । हाल के दशकों में " प्रगतिवाद" को अमेरिका की कार्यपालिका की शाखा , कांग्रेस, न्यायालय, राज्य और स्थानीय सरकारों ने अस्वीकार किया है परंतु उसे संयुक्त राष्ट्र संघ तथा अन्य लोकतांत्रिक अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में मान्यता मिल रही है। अनेक पश्चिमी कुलीन और अधिकतर यूरोप के लोगों ने इसे इतना अधिक आत्मसात कर लिया है कि वे संयुक्त राष्ट्र संघ तथा इसी प्रकार के अन्य संस्थानों को इन मुद्दों पर अधिक सटीक मानते हैं।
फोंटे के अनुसार यह अमेरिकी लोकतंत्र को समाप्त करने के प्रयास का अंग है और एक महत्वपूर्ण आंदोलन है जिसे कि उन्होंने " पराराष्ट्र प्रगतिवाद" का नाम दिया है। परंतु मैं " अफसरशाही वामपंथ" नाम अधिक पसंद करता हूँ , फोंटे ने इस तथ्य को स्थापित किया है कि फासीवाद और कम्युनिज्म की परम्परा में यह प्रयास "उदारवादी लोकतंत्र" के लिये महत्वपूर्ण चुनौती है।
इस खतरे को पूरी तरह से समझने के लिये फोंटे का पूरा लेख पढना चाहिये। संक्षेप में मतपेटियों, विधि प्रोफेसर , राजनीतिक कार्यकर्ता, अधिकारियों , गैर सरकारी संगठनों के अफसरों , कार्पोरेट प्रशासकों तथा कार्यरत राजनेताओं के माध्यम से अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करने में असफल रहने के बाद वे इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये आधुनिक उदारवादी लोकतंत्र के दो मुख्य स्तम्भों व्यक्तिगत नागरिक और राष्ट्र राज्य के महत्व को कम करने का प्रयास कर रहे हैं।
अफसरशाही वामपंथ व्यक्ति की भूमिका को कम करने का प्रयास अनेक प्रकार से कर रहा है:
- व्यक्ति के ऊपर गुट: किसी व्यक्ति की अद्बुत क्षमतायें और स्वरूप उसके किसी गुट के सदस्य ( नस्लवादी और लैंगिक ) होने से अधिक नहीं हैं जिसमें कि उसका जन्म हुआ है।
- पीडित बनाम शोषक: विश्व अच्छे और बुरे दो वर्ग में विभाजित है और अश्वेत , महिला , आप्रवासी तथा समलैंगिक अपने स्वरूप के चलते पहली श्रेणी में आते हैं।
- निष्पक्षता के लिये आवश्यक है कि अनुपात सही हो: " पीडित" वर्ग का प्रतिनिधित्व जीवन के सभी क्षेत्रों में होना चाहिये ( कार्यपालिका और बंदियों में) और उनकी जनसंख्या के प्रतिशत के अनुसार यह अनुपात होना चाहिये।
- लोकतन्त्र विभिन्न वर्गों के मध्य सत्ता की साझेदारी है: लोकतंत्र बहुमत का शासन न होकर सभी उपर्युक्त वर्ग के मध्य विभाजित होकर रहना चाहिये।
- पीडित के मूल्य ही नियम हैं: संस्थाओं को " शोषक" की संस्कृति के स्वरूप का त्याग कर अश्वेत , महिला ,आप्रवासी और समलैंगिक पाडितों को स्वीकार करना चाहिये।
- राष्ट्रीयता और उसके प्रतीकों से परे: परम्परागत इतिहास शोषकों को विशेषाधिकार प्रदान करता है और उसे अस्वीकार किया जाना चाहिये। उदाहरण के लिये अमेरिका के मामले में यूरोप के बसे लोगों पर परम्परागत रूप से जोर देने की बात का स्थान तीन नयी सभ्यताओं अमेरिंडियन, पश्चिमी अफ्रीका और यूरोप ने ले लिया है।
इसके बाद अफसरशाही वामपंथ राष्ट्र राज्य को कमजोर कर रहा है:
- राज्य की सम्प्रभुता को कम करना: राज्यों को अपनी शक्ति उच्चतर शक्तियों को देनी चाहिये जैसे कि यूरोपीय संघ या फिर संयुक्त राष्ट्र संघ। इसी भावना के अनुरूप इजरायल के विदेश मंत्री शिमोन पेरेज ने अपने क्षेत्र में सम्प्रभुता के महत्व को कम करने की बात की और तर्क दिया कि मध्य पूर्व में भी यूरोपीय संघ का संस्करण होना चाहिये।
- विश्व का नागरिक: राज्य के प्रति आत्यंतिक निष्ठा ( जिसकी परिभाषा यह है कि आप किसके लिये अपनी जान देंगे) का स्थान किसी अपरिभाषित वैश्विक सदस्यता ने ले लिया है।
- आप्रवासियों के अधिकार का वर्चस्व है: आप्रवासियों को स्वतंत्रता पूर्वक दूसरे स्थान पर बसने का अधिकार होना चाहिये , वे दूसरों पर अपनी संस्कृति थोप सकें और अपने नये निवास करने वाले देशों के प्रति अस्पष्ट निष्ठा घोषित करें। लम्बे समय से देश में निवास करने वाले लोगों को बहुसंस्कृतिवाद को हँसते हुए स्वीकार करना चाहिये।
यद्यपि अफसरशाही वामपंथ परा आधुनिक रूप में प्रगतिवाद के नाम पर आगे बढाया जा रहा है परंतु फोंटे का मानना है कि यह यूरोप के पूर्व आधुनिक काल की याद दिलाता है जबकि शासक निर्वाचित नहीं होते थे। आज के अफसर कल के राजाओं की भूमिका को पूरा करते हैं।
जिसकी सम्भावना थी कि वामपंथ का नया प्रकल्प अमेरिका कनाडा, फ्रांस , इजरायल के अतिरिक्त अन्य पश्चिमी देशों में अधिक सफल रहा । फोंटे के कथन में अंतर्निहित है कि अमेरिका के लोग ही इस बीभत्स व्यवस्था की घेराबंदी करेंगे जैसा कि उन्होंने फासीवाद और कम्युनिज्म के लिये किया था और जैसा कि वे उग्रवादी इस्लाम के विषय में कर रहे हैं।
अफसरशाही वामपंथ को स्वीकार करने के साथ ही हम इसे वास्तविक क्षति करने से पूर्व रोक सकते हैं।