युद्धों के इतिहास में सबसे स्तब्ध कर देने वाली विजय 35 वर्ष पूर्व जून में हुई थी जब इजरायल की सेना ने मिस्र, जार्डन और सीरिया की सेनाओं को मात्र छद दिनों में परास्त कर दिया था। और इस जून में आक्स्फोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस ने माइकल ओरेन द्वारा लिखी गयी पुस्तक Six Days of War: June 1967 and the Making of the Modern Middle East प्रकाशित की है जो कि इस विषय पर लिखी गयी अब तक की सबसे अच्छी पुस्तक है।
अमेरिकी मूल के इजरायली विद्वान ओरेन ने अपनी पूरी कहानी सहज, सीधे और पकड के साथ कही है जिसे कि जबर्दस्त उद्धरणों के साथ सँवारा गया है।
सिक्स डेज आफ वार पुस्तक को लाभ छह भाषाओं से स्रोत प्राप्त हुए हैं और यह पहला लेखन है कि जो हाल में खुले राज्य अभिलेखागारों पर आधारित है जो कि ऐसी घटनाओं के बारे में बताता है जिसके बारे में अभी तक जानकारी नहीं थी। जिसमें कि अनेक बाते हैं ( जैसे कि इजरायल कि जीतने की अरब योजना, या फिर कैसे रक्षा मंत्री मोशे दयान ने गोलन पहाडियों पर कब्जा करने का निर्देश दिया और इससे उनके कार्यकाल की शर्तें टूट गयीं) यह आश्चर्य नहीं है कि यह औपचारिक रूप से प्रकाशित होने से पूर्व ही अमेरिकी की सबसे अधिक बिकने वाली पुस्तक बन चुकी है।
67 के उस युद्ध को लेकर अनेक प्रश्न अब भी बने हैं और ओरेन ने उनके उत्तर प्राप्त करने के लिये अच्छी सूचना प्रदान की है। इनमें से तीन प्रमुख प्रश्न इस प्रकार हैं:
युद्ध क्यों हुआ? यह प्रश्न इसलिये उठता है कि प्रथम विश्व युद्ध की भाँति इसकी भी न तो किसी ने योजना बनाई थी और न ही कोई इसे चाहता था। ओरेन के शोध से इसके दुर्घटनावश होने की विशेषता पर प्रकाश पडता है। उदाहरण के लिये नवम्बर 1966 में इजरायल के तीन सैनिकों की जार्डन स्थित आतंकवादियों के हाथों मौत के बाद जैसा कि आम तौर पर होता है इजरायल के लिये अमेरिका के योग्य राजदूत ने जार्डन के राजा हुसैन से इजरायल के प्रधानमंत्री को शोक संदेश पहुँचाने में देर कर दी । इस विलम्ब के चलते इजरायल ने बदले की कार्रवाई की और यह बदले की कार्रवाई युद्ध को आगे बढाने का प्रमुख कारण सिद्ध हो गयी।
दुर्घटना की भूमिका को इन दिनों ध्यान में रखने की आवश्यकता है जबकि मध्य पूर्व में युद्ध की हवा फिर से बह रही है। कोई भी छोटा सा गलत कदम बडा भूचाल ला सकता है।
इजरायल की सेना ने यह स्तब्ध कर देने वाली विजय कैसे प्राप्त की? अरब सेना की फंतासी दुनिया के विपरीत इजरायल की सेना की वास्तविकता और कडे अभ्यास का परिणाम था। यदि इजरायल के लोग युद्ध के बारे में सोच रहे थे तो चीफ आफ स्टाफ यित्जाक राबिन को दौरा पडा और अरब के नेता अति आत्मविश्वास में आ गये। सीरिया के एक जनरल ने अधिक से अधिक चार दिनों के भीतर इजरायल पर विजय की भविष्यवाणी कर दी। मिस्र के राष्ट्रपति गमाल अब्दुल नसीर ने कोई चिंता नहीं दिखाई और यह मान बैठे कि इजरायल के लोग वह आश्चर्यजनक वायु आक्रमण करने में सक्षम नहीं है वास्तव में जिसके चलते उन्हें पीछे हटना पडा।
अधिक विस्तार रूप में देखें तो मिस्र के एक उच्च स्तरीय अधिकारी ने अपने नेतृत्व के बारे में कहा कि उन्हें लगता था कि, " इजरायल का विनाश बच्चों का खेल है जिसके लिये कुछ कमांडरों के घर पर टेलीफोन पर बैठना और विजय के नारे लिखना पर्याप्त है"
( बिडम्बना ही है कि वाशिंगटन को तेल अवीव से कहीं अधिक इजरायल की विजय का भरोसा था : ओरेन के अनुसार अमेरिका के रक्षा मंत्री ने भविष्यवाणी की थी कि यदि इजरायल पहल करता है तो यह अपने शत्रुओं को एक सप्ताह के भीतर पराजित कर देगा जो कि सत्य सिद्ध हुआ)
युद्ध से अरब इजरायल कूटनीति पर क्या प्रभाव पडा? मूल रूप से इसने सौदे का स्वरूप ही परिवर्तित कर दिया। मध्य मई में यह टकराव आरम्भ होने से पूर्व ही व्हाइट हाउस में मध्य पूर्व के हाथ हारोल्ड साउंडर्स ने सुझाव दिया था कि इजरायल को अपने शत्रुओं को पराजित करने का अवसर दिया जाना चाहिये और इसे रूप में देखा जाना चाहिये कि इससे, " सीमा को सुनिश्चित करने और सम्भवतः शरणार्थियों को ठीक ठाक करने में सहायता मिलेगी"
युद्ध के दूसरे दिन राष्ट्रपति लिंडन जानसन ने शान्ति के लिये भूमि की नीति की रूपरेखा तैयार की जो कि अब भी अरब इजरायल संघर्ष में अमेरिकी कूटनीति का आधार है। अरब से मान्यता प्राप्त करने के लिये इजरायल 1967 में जीती भूमि वापस कर दे।
अमेरिका के लोगों को अपेक्षा थी कि इजरायल की सैन्य विजय से अरब को पता चल जायेगा कि यहूदी राज्य को नष्ट करने की उनकी आशा कितनी निरर्थक है और इस विश्लेषण से तत्काल अनेक इजरायली भी सहमत हो गये( जिसमें कि यित्जाक राबिन भी शामिल हैं जो कि बाद में प्रधानमंत्री बने और ओस्लो बातचीत आरम्भ की जो कि इसी कल्पना पर आधारित थी)
परंतु जैसा कि हाल के घटनाक्रम ने विस्तार से इस बात को सिद्ध कर दिया है कि भूमि के बदले शांति की आशा गलत थी। केवल कुछ अपवादों को छोड दें ( जैसे कि मिस्र के राष्ट्रपति अनवर अस सादात) तो इजरायल द्वारा इस अदला बदली के लिये उत्सुक होने से उसके विरुद्ध अरब की ओर से हिंसा ही बढी है न कि स्वीकार्यता । ओरेन ने दिखाया है कि भूमि के बदले शांति अमेरिका की आशा पर आधारित था न कि मध्य पूर्व की वास्तविकता पर । उनके शोध से इस असफल हुई नीति की ओर संकेत जाता है कि अब अवसर है कि इसके स्थान पर किसी अधिक सही नीति को अपनाया जाये।
जैसा कि ओरेन के उपशीर्षक से संकेत मिलता है कि छह दिन के युद्ध के भयानक परिणाम हुए।