कुछ भी ज्वलंत मुद्दे हों . ईरान के साथ व्यापार हो, इराक के साथ युद्ध हो, इजरायल का समर्थन हो, मिसाइल रक्षा व्यवस्था निर्मित करना हो , अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय स्वीकार करना हो , सभी मुद्दों पर अमेरिका और पश्चिम यूरोप प्रायः तर्क में एक दूसरे के विरोधी पक्ष में खडे पाये जाते हैं।
अमेरिका के लोग यूरोपवासियों को नरम मस्तिष्क के तुष्टीकरण करने वालों के रूप में मानते हैं जिनमें कि न तो नैतिक बंधन है और न ही रणनीतिक दृष्टि है। इसके बदले में यूरोप के लोग अमेरिकावासियों को गैर जिम्मेदार मानते हैं जो कि " मौत की संस्कृति" के तहत काम करते हैं।
ये वर्तमान व्यवहार जीवन के सत्य हैं और अपने अपने राष्ट्रीय चरित्र से उभरे हैं। परंतु ये भिन्नतायें शायद ही स्थाई हैं। दो शताब्दी पूर्व जब अमेरिका के लोग यूरोप के कठोर लोगों के इर्द गिर्द सतर्कतापूर्वक कार्य करते थे तो यही भूमिका बदली हुई थी।
राबर्ट कागन ने हूवर इंस्टीट्यूट के नीतिगत सर्वेक्षण Power and Weakness," में अपने मेधावी विश्लेषण में लिखा है कि आज का व्यवहार कुछ गहरी तार्किक वास्तविकताओं का परिणाम है। विशेष रूप से ये 1945 के पश्चात के दो घटनाक्रम का परिणाम हैं जो कि अत्यंत महत्वपूर्ण हैं और उन पर अधिक ध्यान नहीं दिया गया।
यूरोप कमजोर है: 1945 से 500 वर्षों पूर्व तक यूरोप ने समस्त विश्व पर नियंत्रण स्थापित कर रखा था। छोटे से पुर्तगाल और हालैण्ड ने समुद्र पर शासन किया । मध्यम आकार के ब्रिटेन और फ्रांस ने साम्राज्य स्थापित किया जिसमें लगभग समस्त विश्व आता था। परंतु यह तब की घटना है।
आज यूरोपियन संघ शस्त्र से अधिक सामाजिक समस्याओं पर व्यय करता है। अमेरिका के समानांतर ही अर्थव्यस्था और जनसंख्या के बाद भी यह सैन्य दृष्टि से पिद्दी है और इसमें इतनी भी क्षमता नहीं है कि कि यह शक्ति दिखा सके या फिर अपने पडोस में भी छोटी समस्या का भी समाधान कर सके( जैसे कि बाल्कन प्रकरण )।
इसके विपरीत अमेरिका ने अपनी सुरक्षा पर भारी निवेश किया है और ऐसी महाशक्ति निर्मित की है कि जिसे कोई भी चुनौती नहीं दे सकता। येल इतिहासकार पाल केनेडी का मानना है , " सैन्य संदर्भ में केवल एक खिलाडी है जिसकी गणना की जा सकती है" । अमेरिका और शेष विश्व की तुलना करते हुए विरोधाभास की ओर ध्यान दिलाते हुए केनेडी ने पाया, " इससे पूर्व शक्ति का इतना असंतुलन कभी नहीं था"
क्षमताओं में इतना अंतर होने के चलते ही अमेरिका और यूरोप समस्या के प्रति अपना रुख भी अलग अलग रखते हैं। अपनी शक्ति के चलते यह स्वाभाविक है कि अमेरिका के लोग अपने शत्रु राज्य इराक के विरुद्ध शक्ति प्रयोग को पूर्णतया विधिक मानते हैं। अपनी कमजोरी के चलते यूरोप के लोगों को स्वाभाविक ही यह रुख चिंताजनक और यहाँ तक कि अनैतिक तक लगता है।
यूरोप परा आधुनिक है: 1945 से पूर्व 80 वर्षों तक जर्मनी के आक्रमण के भूत ने यूरोप को परेशान किया और इसके चलते दो विश्व युद्ध हुए। इसके बाद बातचीत , बहुपक्षीय बातचीत , व्यापारिक सम्बंध और अंतरराष्ट्रीय कानून को लागू करने की उबाऊ प्रक्रिया के बाद यूरोप वह करने में सफल रहा जिसे कि कगान के शब्दों में, जर्मनी को पश्चिमी यूरोप राज्य की व्यवस्था में शामिल करते हुए अन्तरराष्ट्रीय राजनीति ने सबसे बडी सफलता प्राप्त की।
जैसे ही जर्मनी का शेर फ्रांस के मेमने के साथ आया यूरोप के लोगों ने एक वैश्विक ऐतिहासिक सफलता के लिये एक दूसरे को धन्यवाद दिया और निष्कर्ष निकाला कि उन्हें अपने अगले वैश्विक मिशन को प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिये जो कि " परा आधुनिक व्यवस्था" होगी जिसमें कि शक्ति के संकेत के बिना ही समस्या का समाधान निकाला जायेगा। ( वैसे वे इस मामले में यह भूल गये कि यह बदलाव केवल इसलिये सम्भव हुआ था क्योंकि अमेरिका की सेना ने जर्मनी को पराजित किया था) । कगान के अनुसार उन्हें प्रेरणा मिली कि इस सफलता को विश्व स्तर पर दुहराया जाये और उत्तर कोरिया या फिर इराक को भी वैसे ही उमेठा जाये जैसे जर्मनी को किया गया।
इस अवसर पर अमेरिका द्वारा सेना के प्रयोग से यूरोप की नरम नीति की वैश्विक विश्वसनीयता को चुनौती मिलती है। इससे भी बुरा पक्ष यह है कि यूरोप द्वारा विरोधियों के साथ ताल मेल और खुश रखना सदैव कार्य नहीं करता और इससे तो यही लगता है कि राज्यों के मध्य शास्वत शांति की यूरोप की आशा भी मात्र भ्रम है। यूरोपियन संघ ने जिस प्रकार अमेरिका की शक्ति के प्रयोग पर भावनात्मक प्रतिक्रिया दी है वह वास्तव में यूरोप में पुनः युद्ध का सामना करने के भय से प्रेरित है।
संक्षेप में ये अंतर काफी भयानक हैं:अमेरिका मंगल ग्रह से हैं जबकि यूरोप के लोग शुक्र ग्रह पर हैं। यूरोप के लोग अपना धन सामाजिक सेवा में व्यतीत करते हैं । अमेरिका के लोग अपना अधिकतम धन सेना में व्यय करते हैं। यूरोप के लोग 1945 के पश्चात जर्मनी को शांत रख पाने में अपनी सफलता से शिक्षा ग्रहण करते है जबकि अमेरिका के लोग नाजी जर्मनी और सोवियत को पराजित करने से अपनी शिक्षा ग्रहण करते हैं। कागन की अंतरदृष्टि के व्यापक परिणाम हैं:
- अमेरिका और यूरोप के मतभेद तात्कालिक नहीं दूरगामी हैं।
- ये समय के साथ बढने वाले हैं।
- इस बात की सम्भावना नहीं है कि यूरोप अमेरिका से प्रतिस्पर्धा करने लायक सैन्य शक्ति विकसित कर सके।
- जैसे जैसे यूरोप रणनीतिक रूप से अप्रासंगिक हो रहा है अमेरिका को भी इसे कम से कम महत्व देना चाहिये।
- इसके विपरीत क्योंकि वाशिंगटन अधिक महत्वपूर्ण है तो इसे यूरोप का सद्भाव जीतने का प्रयास करना चाहिये।
- नाटो एक खोल से अधिक कुछ नहीं है।
- अमेरिका के लोगों को सैन्य गठबंधन के लिये यूरोप से बाहर के देशों की ओर देखना चाहिये और इस क्रम में तुर्की, इजरायल और भारत का नाम सबसे पहले मस्तिष्क में आता है।