पिछले माह बोस्टन मैराथन में हुए बम धमाकों और VIA Rail Canada train कनाडा में ट्रेन पर लगभग होने वाले आक्रमण के पीछे क्या प्रेरणा थी ?
वामपपंथी और व्यवस्था से जुडे लोग प्रायः अस्पष्ट और रटे रटाये उत्तर तैयार रखते हैं जैसे कि , " हिंसक अतिवाद" या फिर पश्चिमी साम्राज्यवाद के विरुद्ध आक्रोश जिस पर किसी प्रकार की गम्भीर चर्चा हो ही नहीं सकती। इसके विपरीत परम्परावादी स्वयं में ही जीवंत और गम्भीर बहस में उलझ जाते हैं जिसमें कि कुछ कहते हैं कि इस्लाम मजहब इसके पीछे प्रेरणा है जबकि अन्य का कहना है कि यह मजहब का ही आधुनिक कट्टरपंथी स्वरूप है जिसे कि कटटरपंथी , क्रांतिकारी इस्लाम या इस्लामवाद कहा जा सकता है।
बाद वाली बहस में भाग लेते हुए इस्लामवाद पर ध्यान केंद्रित करते हुए मेरे कुछ निम्नलिखित तर्क हैं।
जो लोग इस्लाम को ही एक समस्या के रूप में देखते हैं ( जैसे कि पूर्व मुस्लिम वफा सुल्तान और अयान हिरसी अली) वे मुहम्मद के जीवन और कुरान व हदीथ की विषय वस्तु से लेकर आज के मुस्लिम व्यवहार के सातत्य की ओर संकेत करते हैं। गीर्ट वाइल्डर्स की फिल्म Fitna फितना से सहमत होते हुए वे कुरान की आयतों और जिहाद की कार्रवाई के मध्य सम्बंध पाते हैं। वे इस्लामी धर्मग्रंथों को उद्धृत करते हुए मुस्लिम सर्वोच्चता , जिहाद , महिलाओं से घृणा को केंद्रबिंदु मानते हुए इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि नरमपंथी इस्लाम असम्भव है। वे तुर्की के प्रधानमंत्री रिसेप तईप एरडोगन के नरमपंथी इस्लाम के विचार का भी उपहास करते हैं। उनका सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न है, " मुहम्मद एक मुस्लिम थे या इस्लामवादी?"। उनका कहना है कि हम जैसे लोग जो इस्लामवाद को आरोपित करते हैं वे ऐसा राजनीतिक रूप से सही होने की विवशता या कायरता के चलते करते हैं।
इस पर मेरा उत्तर है: यह सत्य है कि कुछ निरन्तरता है ; इस्लामवादी निश्चित रूप से कुरान हदीथ का शब्दशः पालन करते हैं । नरमपंथी मुस्लिमों का भी अस्तित्व है परंतु इस्लामवादियों की तुलना में एकाधिकार सत्ता नहीं है। एरडोगन के नरमपंथी इस्लाम के विचार को अस्वीकार करने से इस्लामवाद और इस्लाम विरोधी विचार का एक दूसरे पर हावी होना दिखता है। मुहम्मद एक सामान्य मुस्लिम थे , न कि इस्लामवादी क्योंकि इस्लामवाद का विचार तो 1920 के दशक से आया है। और साथ ही हम कायर नहीं हैं वरन सत्य विश्लेषण कर रहे हैं।
यह विश्लेषण इस प्रकार है:
इस्लाम चौदह सौ वर्ष पुराना एक अरब से अधिक आस्थावानों का मजहब है जिसमें कि हिंसक जिहादी से शांत सूफी तक सभी आते हैं । मुसलमानों ने 600 से 1200 शताब्दी के मध्य उल्लेखनीय सैन्य, आर्थिक और सांस्कृतिक सफलता प्राप्त की । उस काल में मुस्लिम होने का अर्थ था एक विजयी टीम का सदस्य होना यह ऐसा तथ्य था जिसने कि मुसलमानों को इस बात के लिये प्रेरित किया कि वे अपनी आस्था को भौतिक सफलता के साथ जोडें। मध्य काल के उस गौरव की स्मृतियाँ न केवल जीवित हैं वरन इस्लाम और मुस्लिम की आस्था और विश्वास का एक कारण हैं।
जबर्दस्त विवाद 1800 के आस पास आरम्भ हुआ जब मुसलमान अप्रत्याशित रूप से युद्ध में पराजित हुए और बाजार सहित सांस्कृतिक नेतृत्व पश्चिम यूरोप के हाथ में चला गया। यह आज भी बरकारार है कि जब मुसलमान उपलब्धि के सभी सूचकाँक में सबसे नीचे हैं bottom of nearly every index of achievement। इस परिवर्तन के चलते व्यापक भ्रम और आक्रोश की स्थिति उत्पन्न हो गयी। क्या गलत हुआ What went wrong , आखिर ईश्वर ने अपने प्रति आस्था रखने वालों को क्यों उनकी दशा पर छोड दिया? पूर्व आधुनिक उपलब्धियों और आधुनिक असफलता के मध्य असहनीय विभाजन ने अवसाद की स्थिति उत्पन्न कर दी।
मुसलमानों ने इस संकट के प्रति तीन प्रकार से उत्तर दिया।
सेक्युलरवादी चाहते थे कि मुसलमान शरियत ( इस्लामी कानून ) को छोड दें और पश्चिम को अंगीकार कर लें। जो इस्लाम के प्रति क्षमाभाव रखते हैं या किसी भी प्रकार उसे न्यायसंगत ठहराते हैं वे भी पश्चिम को अंगीकार करते हैं परंतु वे ऐसा दिखाव करते हैं कि ऐसा करते हुए वे शरियत का भी पालन कर रहे हैं। इस्लामवादी पश्चिम को अस्वीकार करते हैं और उनका आग्रह शरियत का पूरी तरह पालन करने पर रहता है।
इस्लामवादी पश्चिम से घृणा करते हैं क्योंकि इसे ईसाइयत के समकक्ष मानते हैं , ऐतिहासिक रूप से इसके प्रति शत्रुता के चलते और मुसलमानों पर व्यापक प्रभाव के कारण भी इससे घृणा करते हैं। इस्लामवाद अस्वीकार करने, पराजित करने और पश्चिमी संस्कृति को पराभूत करने के अभियान को प्रेरित करता है। इस आग्रह के बाद भी इस्लामवादी पश्चिमी प्रभाव को आत्मसात करते हैं जिसमें कि विचारधारा की अवधारणा भी है। निश्चित रूप से इस्लामवाद इस्लाम को एक राजनीतिक विचारधारा में परिवर्तित कर देता है। इस्लामवाद सही रूप में कट्टरवादी स्वप्निल जगत का स्वाद देता है जो कि अन्य " वादों" की भाँति एक वाद है जिसकी तुलना फासीवाद और कम्युनिज्म से की जा सकती है। उदाहरण के लिये इन दो आंदोलनों की भाँति इस्लामवाद भी षडयंत्रकारी अवधारणा पर काफी निर्भर रहता है और इसी संदर्भ में विश्व की व्याख्या करता है और अपनी महत्वाकाँक्षा के लिये राज्य प्राप्त करना चाहता है और इसकी प्राप्ति के लिये कोई भी हथकंडे अपनाता है।
मुसलमानों के 10 से 15 प्रतिशत वर्ग का समर्थन प्राप्त करते हुए इस्लामवाद ऐसे समर्पित और कुशल काडर को खडा करता है जो कि अपनी सीमित संख्या से कहीं परे प्रभाव डालते हैं। इसने ईरान और मिस्र में सभ्य समाज को खतरे में डाल दिया है और केवल बोस्टन की सडकों पर ही नहीं वरन पश्चिम के विद्यालयों, संसद और न्यायलयकक्ष में भी यह खतरा अनुभव किया जाता है।
हमारी ओर से प्रश्न है " आखिर आप इस्लामवाद को कैसे पराजित करना चाहते हैं?" जो लोग समस्त इस्लाम को अपना शत्रु बना रहे हैं वे न केवल एक सामान्यीकरण की ओर जा रहे हैं वरन आवश्यक भ्रम पाल रहे हैं परंतु उनके पास इसे पराजित करने की कोई कार्यप्रणाली नहीं है। हम लोग जो इस्लामवाद पर ध्यान दे रहे हैं वे द्वितीय विश्व युद्ध और शीत युद्ध को इस तीसरे अधिनायकवाद को पराजित करने के लिये एक माडल के रूप में देख रहे हैं। हमें यह पता है कि कट्टरपंथी इस्लाम समस्या है और नरमपंथी इस्लाम समाधान है। हम इस्लामवाद विरोधी मुसलमानों के साथ कार्य करते हैं ताकि दोनों की सामान्य बुराई को नष्ट कर सकें। हम इस नये प्रकार की बर्बरता पर विजय प्राप्त करेंगे ताकि आधुनिक स्वरूप का इस्लाम उभर सके।