अठारहवीं शताब्दी में इस्लाम की शिक्षा के प्रसारण में इस्लाम के दो प्रमुख शहर मक्का और मदीना की मुख्य भूमिका From In the Path of God: Islam and Political Power (1983), pp. 66-67.
दोनों ही शहर लम्बे समय से मजहबी विचार के केंद्र रहे हैं परंतु सत्रहवीं शताब्दी में हदीथ पर पुनर्विचार के उनके प्रयासों के बाद ये बौद्धिक रूप से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गये। विद्वानों ने मूलभूत शरियत की पुनर्समीक्षा की और वह भी अपने समाज को गैर इस्लामी चलन से शुद्ध करने के प्रयासों के चलते। जिस प्रकार प्रोटेस्टेंट सुधार के दौरान प्राचीन निर्णयों पर पुनर्विचार करने के अधिकारों को लेकर आग्रह उस पुनर्विचार की विशिष्ट सामग्री से भी अधिक महत्व का था । हालाँकि इन विद्वानों का आशय कहीं अधिक परम्परावादी था परंतु उनकी गतिविधियों का क्रांतिकारी प्रभाव रहा और इसके चलते दूसरों के लिये भी इस्लामी रिकार्ड के पुनर्मूल्याँकन और अपना निष्कर्ष निकालने का मार्ग प्रशस्त हो गया। मक्का और मदीना में विद्वानों के प्रयासों के बारे में समस्त इस्लामी जगत को हज के द्वारा पता चला जब प्रत्येक वर्ष तीर्थयात्री नये विचार लेकर हिजाज से लौटते हैं।
इन विद्वानों के कुछ महत्वपूर्ण शिष्यों के नाम इस प्रकार हैं: (1) जबरील इब्न उमर जिन्होंने काइरो में शिक्षा प्राप्त की और उथमन दन फोदियो को इन्होंने नये विचार दिये और जिन्होंने कालांतर में 1804 में उत्तरी नाइजीरिया में फुलानी जिहाद आरम्भ किया जिसके चलते यह क्षेत्र अनेक दशकों तक उथल पुथल की स्थिति में रहा। (2) मुहम्मद इब्न अब्द अल वहाब ने अनेक वर्षों तक मक्का में शिक्षा ग्रहण की और एक आंदोलन की स्थापना की जिसे उनके नाम पर आरम्भ किया गया और वहाबिया अब तक का सबसे कट्टरपंथी अतिवादी आंदोलन है जो कि राजनीतिक रूप से चल रहा है। उन्होंने 1744 में यह कबीलाई नेता मुहम्मद इब्न सऊद के साथ हाथ मिलाया और इससे वहाबी अरब की राजनीति में एक स्थाई आवाज बन गये। इसके साथ ही वहाबियों ने अन्य कट्टरपंथियों को भी प्रभावित किया जैसे कि 1812 में मोरक्को के सुल्तान ने एक प्रतिनिधिमंडल को वहाबी परम्परा सीखने के लिये भेजा। (3) मोरक्को के विद्वान अहमद इब्न इद्रीस ने भी मक्का में शिक्षा ग्रहण की और कालांतर में उन्होंने मक्का के दक्षिण में असीर प्रांत में एक स्वतंत्र राज्य स्थापित किया जो कि मजहबी नेताओं द्वारा संचालित था। (4) भारत के महत्वपूर्ण इस्लामी विद्वान शाह वली उल्लाह ने उन्नीसवीं शताब्दी के आरम्भ में हिजाज में अध्ययन किया था।
(5) बंगाल में कट्टरपन्थी आंदोलन के संस्थापक शरियत अल्लाह ने बीस वर्षों तक मक्का में अध्ययन किया और इसके बाद वे वापस लौटे और अपने कट्टरपन्थी उद्देश्य के लिये आंदोलन आरम्भ किया। (6) अब्द अर रऊफ अस सिंकिली ने अरब में उन्नीस वर्षों तक अध्ययन किया और फिर इंडोनेशिया वापस लौटकर नव सूफी व्यवस्था का प्रचार किया। (7) अब्द अस समद अल पलिमबानी ने मक्का में अध्ययन किया और अध्यापन किया और वे भी इंडोनेशिया लौटकर बंधुता का प्रचार करने लगे। (8) मक्का से लौटने वाले तीन विद्वानों ने कठोर कानून की वकालत की और सुमात्रा में पादरी आंदोलन की स्थापना की। (9) चीन में कांसू प्रांत के मा मिंघसिन ने चीन के अधिकारियों के विरुद्ध विद्रोह की प्रेरक शिक्षाओं से पूर्व उन्होंने अरब प्रायद्वीप में अध्ययन किया था।