डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी त्रिकोणीय एकेश्वरवादी यात्रा में जो कि उन्हें जेरूसलम और रोम भी ले जायेगी ( खेद है कि मक्का उपलब्ध नहीं था) उसके पहले पडाव में उन्होंने रियाद में एक महत्वपूर्ण भाषण दिया जिसमें कि व्यापक रूप से विभिन्न मुद्दों को स्पर्श किया गया , मध्य पूर्व, जिहादी हिंसा, " अरब नाटो" और इस्लाम| कुल मिलाकर यह मिश्रित प्रदर्शन रहा पर सकारात्मक रहा |
पहला , 34 मिनट के इस भाषण में गलत क्या था: यह सुसंगत नहीं रही , एक मुद्दे से कूदकर दूसरे मुद्दे पर जाना और फिर वापस लौट आना | इसमें जबरदस्त अभिव्यक्ति का अभाव तो रहा ही इसमें किसी अन्त्रद्र्ष्टि का अभाव भी झलका ( जैसे कि " आतंकवादी ईश्वर की पूजा नहीं करते वे मौत की पूजा करते हैं" ) | कुछ स्थानों पर इसमें ओबामा की तरह अस्पष्टता थी जैसे कि यह बयान कि इतिहास का महान अवसर हमारे समक्ष उपस्थित है, एक लक्ष्य सभी अन्य लक्ष्यों पर हावी हो जाता है : " अतिवाद पर विजय प्राप्त करना और आतंकवाद की ताकतों को समाप्त करना" |
वहाबी विचारधारा के मुख्यालय रियाद में " अतिवादी विचारधारा से संघर्ष का वैश्विक केंद्र" खोलना हास्यास्पद है| मुझे तो इस बात पर बड़ी चिढ हुई जब ट्रम्प ने सउदी अरब को " पवित्र भूमि" कहा| मैं तो चुप हो गया जब राजा सलमान की इतनी प्रशंसा की गयी एक ऐसा व्यक्ति जो कि 1990 के दशक में पाकिस्तान और बोस्निया में जिहादी हिंसा को पोषित करने के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने का दोषी है|
भाषण का संदर्भ काफी चिंताजनक है : अमेरिका और सउदी के मध्य 380बिलियन अमेरिकी डालर का समझौता इस तानाशाही शासन को अमेरिका पर अतिरिक्त प्रभाव प्रदान करता है| सउदी द्वारा 110 बिलियन डालर की अमेरिकी हथियार की खरीददारी से उस सरकार को भारी मात्रा में हथियार मिल गए जिसका उद्देश्य अधिकाँश अमेरिकी लोगों से पूरी तरह भिन्न है|
मन में उठने वाली इन शंकाओं को यदि परे रख दें , तो यह एक अच्छा भाषण है जो कि ओबामा के वर्षों से अलग एक सही दिशा में नीतिगत परिवर्तन का संकेत देता है , विशेष रूप से ईरान और इस्लाम के विषय में | सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है कि ट्रम्प इस बात के इच्छुक दिख रहे हैं कि इस्लामवाद की विचारधारा को शत्रु के रूप में इंगित करें |
यह काफी महत्वपूर्ण है : ठीक उसी प्रकार जैसे कि एक फिजीशियन को इलाज करने से पहले मेडिकल समस्या को पहले पहचानना होता है , उसी प्रकार एक रणनीतिकार को शत्रु को पराजित करने से पहले उसे पहचानना पड़ता है| इसे " बुराई करने वाले" , " आतंकवादी" और " हिंसक अतिवादी" कहने से शत्रु के इस्लामी मूल को छोड़ देने जैसा है|
इस प्रकार देखें तो भाषण का प्रमुख अंश इस प्रकार है " अब भी बहुत कार्य किया जाना शेष है | इसका अर्थ है कि ईमानदारी से इस्लामी अतिवाद और इस्लामवादी व हर प्रकार के इस्लामी आतंकवाद के संकट से लोहा लेना" ( तैयार किये गए भाषण में " इस्लामवादी अतिवाद और इस्लामवादी आतंकी संगठन था परन्तु भाषण देते हुए ट्रम्प ने ये परिवर्तन किये| यद्यपि इस्लामवादी राजनीतिक रूप से इस्लामी से कहीं अधिक स्पष्ट है परन्तु दोनों एक ही बात स्पष्ट करते हैं)
एक अमेरिकी नेता के लिए ऐसी घोषणा सउदी अरब राज्य की राजधानी में और सउदी आयोजित " अरब इस्लामी अमेरिकी शीर्ष स्तरीय बैठक" में50 मुस्लिम बहुल देशों की उपस्थिति में करना पूरी तरह से अप्रत्याशित और उल्लेखनीय है कि | ट्रम्प ने प्रभावी रूप से घोषणा करते हुए कहा कि " मेरे पास आपके नंबर हैं , इसलिए मेरे साथ खेल मत खेलिए"
उन्होंने अपने भाषण में इस बिंदु को कई बार स्पष्ट किया कि : " मुस्लिम बहुल देशों को कट्टरपंथ के विरुद्ध संघर्ष में अग्रणी भूमिका लेनी होगी" , " यदि हमें आतंकवाद को परास्त करना है और इस दुष्ट विचारधारा को निष्प्रभावी करना है तो मुस्लिम देशों को बोझ लेना होगा" ; " आई एस आई एस , अल कायदा, हेज्बुल्लाह , हमास सहित अनेक और संगठनों की ओर से की गयी मानव क्षति का उल्लेख करते हुए उनका यह आह्वान करना कि हमें , " निर्दोष मुसलमानों की हत्या , महिलाओं के उत्पीडन , यहूदियों के उत्पीडन और ईसाइयों के नरसंहार" के विरुद्ध एक साथ उठ खड़ा होना होगा| समस्या के स्वरुप को लेकर कोई नरम रवैया नहीं |
परन्तु एक बयान नीति निर्धारक नहीं हो सकता | जार्ज डब्ल्यू बुश और बराक ओबामा ने अनेक अवसरों पर बारी बारी से इस्लामफासीवाद, और इस्लामवाद कहा , ओबामा ने तो यहाँ तक किजिहादी भी कहा | हालांकि उनकी स्पष्ट अभिव्यक्ति का उनकी नीतियों पर कोई प्रभाव नहीं हुआ | इसी प्रकार ब्रिटेन के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर और डेविड कैमरोन ने इस्लामवाद के बारे में अद्भुत भाषण दिए परन्तु इनका उनकी सरकार के कार्यों पर बहुत कम प्रभाव हुआ |
ट्रम्प के भाषण को यदि कुछ परिवर्तन लाना है तो इसे एक सुसंगत नजरिये के आरम्भ के रूप में सामने आना होगा कि इस्लामवादी विचारधारा इस पूरे विवाद के मूल में है और हिंसा इसकी एक अभिव्यक्ति मात्र है जो कि इनमें सर्वाधिक खतरनाक नहीं है|
इसके आरम्भ के रूप में ट्रम्प के प्रत्याशी रहते हुए अगस्त में दिए उनके भाषण को याद करना समीचीन होगा , जब उन्होंने संकल्प किया था कि , " राष्ट्रपति के रूप में मेरा पहला कार्य कट्टरपंथी इस्लाम पर एक आयोग स्थापित करना होगा ....... कट्टरपंथी इस्लाम के सिद्धांतों और विश्वास को पहचानकर उसकी व्याख्या अमेरिका के लोगों के समक्ष करना , कट्टरपंथ के संकेत पर चेतावनी देना और अपने समुदाय में कट्टरपंथ को सहयोग करने वाले नेटवर्क का पर्दाफ़ाश करना" | यह आयोग " स्थानीय पुलिस अधिकारियों, संघीय जांचकर्ताओं और आप्रवास पर नजर रखने वालों के लिए नए प्रोटोकाल विकसित करेगा" ,
श्रीमान राष्ट्रपति आगे बढते हैं और अब वह समय आ गया है कि कट्टरपंथ इस्लाम पर व्हाइट हाउस आयोग की नियुक्ति करें |