सीरिया का कस्बा इद्लिब जो कि अमेरिका के हितों के चलते काफी ध्यान में है उस पर ईरान और तुर्की की सरकारों के समझौते के समाचार ने मध्य पूर्व में इन दो सबसे प्रभावशाली देशों के रिश्तों को नेपथ्य में डाल दिया है|
इन दो देशों की प्रतिद्वंदिता आधी सहस्राब्दी पुरानी है जिसमें कि ग्यारह युद्ध शामिल हैं और जो अभी शेष हैं, वाशिंगटन इंस्टीट्यूट के सोनेर केगेपटे के शब्दों में क्षेत्र का " सबसे पुराना सत्ता संघर्ष"| अभी हाल के समझौते का क्या महत्व है और इनकी प्रतिद्वंदिता क्षेत्र के भविष्य पर क्या प्रभाव डालेगी?
ईरान और तुर्की की समानताएं ध्यान देने योग्य हैं| दोनों देशों की जनसंख्या 8 करोड़ है| ( इस क्षेत्र के तीसरे सबसे बड़े देश एजिप्ट की जनसंख्या 9.6 करोड़ है) | दोनों का दावा है कि वे प्राचीन सभ्यताएं हैं , लम्बे समय तक यहाँ साम्राज्य रहे हैं , रूस के साथ तनाव रहा है और सफलतापूर्वक यूरोप के उपनिवेशवाद से बचे रहे हैं| आधुनिक समय में दोनों ही प्रथम विश्व युद्ध के बाद निर्दयी आधुनिकतावादियों के शासन में रहे और अब इसके बाद हाल में कहीं अधिक दमनकारी इस्लामवादियों के द्वारा शासित हैं|
वर्तमान नेता ईरान के अली खामेनी और तुर्की के रिसेप तईप एरडोगन सम्पूर्ण शक्ति के साथ शासन कर रहे हैं और दोनों ही पूरी बेचैनी से इस वास्तविकता को छिपाने के लिए बड़े शोरगुल से साथ चुनाव करवाने का तिकड़म अपनाते हैं और संसद, कैबिनेट , कानून और गैर सरकारी संगठनों का शोर मचाते हैं| दोनों की महत्वाकांक्षा है कि वे मुस्लिम समाज के नेता बनें , शायद एक दिन स्वयं को खलीफा होने का दावा करें| अब जब अरब राज्यों की ओर से जायोनिज्म विरोध का स्वर कुछ मंद पडा है तो तेहरान और अंकारा ने इसका भार अपने ऊपर ले लिया है , इस क्रम में इस्लामी गणतंत्र ईरान जर्मनी में यहूदियों के नरसंहार को नहीं मानता तो तुर्की गणतंत्र इजरायल की तुलना नाजियों से करता है|
बहुत से मामलों में ईरान के लोग तुर्क से आगे हैं पर तुर्क भी उनके बराबर आने का प्रयास कर रहे हैं| अयातोला खोमेनी 1979में सत्ता में आये और एरडोगन 2002 में सत्ता में आये| ईरान के पास लम्बे समय से तेल और गैस का भण्डार है और तुर्की ने हाल में ही प्रभावशाली ढंग से आर्थिक आधार खड़ा किया है| तेहरान ने विदेशों में अपनी सेनायें लगा रखी हैं और अरब की चार राजधानियों पर इसका नियंत्रण है , जबकि दूसरी ओर अंकारा अभी घरेलू विरोधियों से ही लड़ रहा है विशेष रूप से गुलेनवादी और कुर्द |दोनों ही देशों की सरकारें पश्चिम को कोसती हैं पर ईरान ऐसा खुलेआम करता है जबकि तुर्की नाटो का सदस्य है और यूरोपियन संघ की सदस्यता चाहता है|
खोमेनी के गुर्गों ने मुक्त समुद्र क्षेत्र में अमेरिका के नाविकों को गिरफ्तार कर लिया जबकि एरडोगन के लोगों ने निवासियों को बंधक बना लिया | ईरान को लेकर षडयंत्रकारी सिद्धांत पिछले दो दशक से तुर्की में खूब चलन में है| जिसमें इस क्षेत्र के बारे में शानदार कयास शामिल हैं| दोनों ही वेनेजुएला के तानाशाह निकोलस माडूरो के उत्साही सहयोगी बन गए हैं| एक लम्बे समय से तानशाही के चलते स्थापित व्यवस्था में खोमेनी ने कुछ हद तकअभिव्यक्ति की स्वतंत्रता दे रखी है जबकि एरडोगन पूरा नियंत्रण चाहते हैं कि बास्केटबाल के खिलाड़ी अमेरिका में क्या कहते हैं? या फिर इन्स्तांबुल हवाई अड्डे से गुजरने वाले यात्री क्या सोचते हैं|
इन दोनों के मध्य सबसे बड़ा अंतर उनकी जनता के व्यवहार को लेकर उनकी चिंता है| खोमेनी को जहां केवल 15 प्रतिशत जनता का समर्थन प्राप्त है तो एरडोगन के लिए समर्थन का प्रतिशत 45 का है, जिसके आधार पर एरडोगन को जो वैधानिकता और आत्मविश्वास है उसके बारे में खोमेनी केवल स्वप्न ही देख सकते हैं| कुछ अर्थों में इस्लामवादी शासन के लम्बे समय तक रहने से जो परिणाम आता है वह प्रति व्यक्ति आय में दिखता है जो कि ईरान में 4,700 अमेरिकी डालर पर जड़ता के साथ स्थिर है जबकि तुर्की में 10,700 अमेरिकी डालर के साथ बढ़ रही है|
ईरान में शासन का पतन दिख रहा है और इस्लामवाद भी पराभूत होगा जिसके चलते मुसलमानों को अपने धर्म के अधिक आधुनिक और नरमपंथी स्वरुप की तरफ बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी | तुर्की की सरकार की अधिक लोकप्रियता और इस्लामवाद का अधिक आधुनिक संस्करण इसे अधिक शक्तिशाली बनाता है और इसी कारण यह अधिक चिंताजनक दूरगामी प्रतिद्वंदी है| इसलिए मध्य पूर्व में एक विशाल परिवर्तन होने वाला है , जबकि ईरान नरमपंथ की ओर बढेगा और तुर्की इस क्षेत्र का सर्वोच्च ख़तरा बन रहा है|
एरडोगन के शासन के पहले वर्षों में ( 2002-10) द्विपक्षीय सम्बन्ध बढे जब उनकी इस्लामवादी विश्व द्रष्टि और इराक में अमेरिका के आशय को लेकर आशंका समान थी | पर उसी समय संबंधों में खटास भी आयी प्राथमिक रूप से तब जब दोनों शासन विदेशों में अपना प्रभाव विस्तार करना चाहते थे और पड़ोसी होने के नाते टकराव अवश्यम्भावी था| सीरिया में गृह युद्ध जहाँ कि तेहरान ने शियावादी जिहादियों का समर्थन किया और अंकारा ने सुन्नी जिहादियों का पर यही एकमात्र समस्या नहीं है | संबंधों में तनाव के और भी कारण हैं, जैसे यमन में विरोधी पक्षों का समर्थन| ईरानी गतिविधि पर नजर रखने के लिए तुर्की ने नाटो राडार नियुक्त किया है तो ईरान ने तुर्की के विरुद्ध अल कायदा का समर्थन किया है|
तनाव इस स्तर तक पहुंच गया कि अंतर्राष्ट्रीय आपदा समूह के अली वायेज को लगा कि तेहरान और अंकारा " टकराव के रास्ते पर हैं" उनका अनुमान है कि यदि इस मामले को यहीं न रोका गया तो संबंधों का यह स्वरुप " कहीं अधिक खून खराबे , अधिक अस्थिरता और कहीं अधिक खतरे वाले सीधे सैन्य संघर्ष तक जा सकता है" | अधिक काव्यात्मक अंदाज में केगेपटे को लगता है कि, " मध्य पूर्व में केवल एक शाह या एक सुल्तान के लिए जगह है परन्तु एक शाह और एक सुल्तान के लिए नहीं"
इस संदर्भ में इद्लिब समझौता बहुत क्षणिक दिखता है| तेहरान और अंकारा शीघ्र ही फिर एक दूसरे के विरुद्ध हो जायेंगे और कहीं अधिक जोश से अपनी शाश्वत शत्रुता को जारी रखेंगे |