1967 में जून के महीने में तीन शत्रु राज्यों पर इजरायल की सेना की विजय किसी भी प्रकार के युद्ध के इतिहास में सबसे सफल युद्ध है| छह दिन के इस युद्ध का मध्यपूर्व पर भी खासा प्रभाव पडा, इससे यहूदी राज्य की निरन्तरता स्थापित हो गयी , सम्पूर्ण अरब राष्ट्रवाद के लिए यह घातक हमला था और विडम्बना देखिये कि इसके चलते इजरायल में विश्व की स्थिति और खराब हो गयी क्योंकि इसने पश्चिमी तट और जेरूसलम पर कब्जा कर लिया |
यदि इस अंतिम बिंदु पर ध्यान दें तो किस प्रकार एक शानदार युद्धभूमि की विजय ने इजरायल के लिए समस्या खडी कर दी जो आज भी उसे परेशान करती है| क्योंकि इसने इजरायल के लोगों को ऐसी अनचाही भूमिका में फंसा दिया है जिससे वे बच नहीं सकते |
पहला, इजरायल के वामपंथी और विदेशों के सद्भाव वाले लोग इजरायल की सरकार पर आरोप लगाते हैं कि इसने पश्चिमी तट को छोड़ने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं किये , जबकि अधिक प्रयास से वास्तविक शांति सहयोगी मिल गया होता| ऐसा करते हुए आलोचक उस अस्वीकृतिवाद के व्यवहार की अवहेलना करते हैं जिसने पिछली एक शताब्दी में फिलीस्तीन की राजनीति पर हावी रहा है और जो किसी भी प्रकार से इजरायलवाद को स्वीकार करने से परहेज करता है| इसके संस्थापक पुरुष अमीन अल हुसैनी ने हिटलर के साथ सहयोग किया और अंतिम समाधान को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की ; इसका नवीनतम प्रकटीकरण " सम्बन्ध सामान्य करने के विरोध में, बहिष्कार और प्रतिबन्ध लगाने के आन्दोलन" में होता है| अस्वीकृतिवाद के चलते इजरायल की ओर से दी जाने वाली रियायतों का कोई अर्थ नहीं रह जाता बल्कि उनका उलटा असर होता है क्योंकि इसके जवाब में फिलीस्तीनी अधिक शत्रुवत और हिंसक हो जाते है|
दूसरा, पश्चिमी तट में इजरायल की भौगोलिक और भूजनानिंकी स्थिति काफी उलझन भरी है | इसके रणनीतिकार ऊंचे स्थानों पर नियंत्रण स्थापित करना चाहते हैं , जबकि इसके राष्ट्रवादी कस्बे बनाना चाहते हैं और इसके धार्मिक लोग यहूदियों के धार्मिक स्थलों को अपने नियंत्रण में लेना चाहते हैं,पश्चिमी तट की 17 लाख की जनसंख्या पर इजरायल का वास्तविक निरंतर शासन इजरायल को घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी महंगा पड़ता है क्योंकि ये लोग शत्रुवत भाव वाले अरब भाषी और फिलीस्तीनी मुस्लिम हैं| उस भूमि को अपने नियंत्रण में रखने या शत्रु भाव के लोगों को आत्मसात कर, खरीद कर, उन्हें विभाजित कर, बाहर निकालकर या फिर उनके लिए नया शासक ढूँढकर अशक्त करने के सभी प्रयास असफल रहे हैं|
तीसरा, 1967 में इजरायल ने जेरूसलम में तीन एकतरफा कदम उठाये जिसने भविष्य के लिए टाइम बम निर्मित कर दिए: शहर की सीमा को काफी बढ़ा दिया, इसे जीत लिया और शहर के नए अरब निवासियों को इजरायल की नागरिकता प्रदान कर दी| कुल मिलाकर इन कदमों से दीर्घगामी भूजनानिंकी और घर बनाने की प्रतिस्पर्धा आरम्भ हो गयी जिसमें कि इस समय फिलीस्तीनी विजयी हो रहे हैं और यहूदियों की ऐतिहासिक राजधानी का यहूदी स्वभाव खतरे में पड़ गया है| इससे भी बुरा यह है कि 300,0000 अरबवासी कभी भी इजरायल की नागरिकता ले सकते हैं|
इन समस्याओं से प्रश्न उठता है: 1967 में यदि इजरायल के नेताओं ने वर्तमान समस्याओं को पहले ही देख लिया होता तो उन्हें पश्चिमी तट और जेरूसलम में क्या अलग करना चाहिए था? उन्हें निम्नलिखित चीजें करनी चाहिए थी :
- उन्हें अस्वीकृतिवाद के विरुद्ध युद्ध को अपनी पहली प्राथमिकता बनाकर पश्चिमी तट और जेरूसलम में जीवन के हर क्षेत्र में दंडात्मक प्रतिबन्ध को बढ़ावा देना चाहिए था , किसी भी प्रकार के भड़काऊ कार्य के लिए दंड देना चाहिए था और इजरायल के लिए सकारात्मक व्यवहार अर्जित करने के लिए विशेष प्रयास करना चाहिए था|
- 1949 से पश्चिमी तट में शासन कर रहे जार्डन के अधिकारियों को फिर से बुलाना चाहिए था कि वे इसके आंतरिक मामलों को चलायें ( जेरूसलम नहीं ), इजरायल की सुरक्षा सेना को केवल सीमा और यहूदी लोगों की रक्षा का काम दिया जाता |
- जेरूसलम की सीमाओं का विस्तार केवल पुराने शहर और बिना बस्ती वाले क्षेत्रों तक किया जाता |
- पश्चिमी तट पर यहूदी कस्बे बनाए जाने के सभी परिणामों के बारे में विस्तार से सोचा गया होता |
और अब आज इजरायल के लोग क्या कर सकते हैं? जेरूसलम का मुद्दा अपेक्षाकृत अधिक सरल है क्योंकि अधिकतर अरब नागरिकों नेअभी तक इजरायल की नागरिकता नहीं ली है, इसलिए इजरायल की सरकार अब भी जेरूसलम की 1967 की सीमा के आकार को छोटा कर सकती है और शहर के सभी निवासियों को नागरिकता देने के प्रस्ताव को समाप्त कर सकती है| हालांकि इससे अराजकता उत्पन्न होगी पर अवैध घरों पर सख्ती आवश्यक है|
पश्चिमी तट का मामला अधिक कठिन है| जबतक फिलीस्तीन का अस्वीकृतिवाद हावी है तब तक इजरायल को ऐसे लोगों की देखभाल करनी है जो इसका वास्तविक नियंत्रण नहीं छोड़ना चाहते | इस परिस्थिति के चलते इजरायल के लोगों में कटु और भावुक बहस आरम्भ हो जाती है ( राबिन की हत्या ) और देश की अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर इसका असर पड़ता है ( संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव 2334 को ही लें)| परन्तु 1949 की आश्विज लाइन पर लौटना और 400,000 इजरायल नागरिकों को पश्चिमी तट में फिलीस्तीन के लोगों की दया पर छोड़ देना भी तो वास्तव में समाधान नहीं है|
इसके बजाय इजरायल को फिलीस्तीन के अस्वीकृतिवाद का सामना करना चाहिए और इसे कमतर करना चाहिए जिसका अर्थ है कि फिलीस्तीन के लोगों को विश्वास दिलाना कि इजरायल एक स्थायी राज्य है और उसे नष्ट करने का उनका स्वप्न बेकार है और उनका बलिदान व्यर्थ है | इजरायल इस लक्ष्य को तभी प्राप्त कर सकता है जबविजय को अपना लक्ष्य बनाये और फिलीस्तीनी लोगों को यह दिखाए कि अस्वीकृतिवाद पर चलते रहने से उन्हें असफलता और दुःख ही मिलेगा | अमेरिकी सरकार इजरायल की विजय के मार्ग को हरी झंडी देकर सहायता कर सकती है|
केवल विजय के द्वारा ही 1967 की छह दिन की चौंकाने वाली खुशी को दीर्घगामी परिणाम में परिवर्तित किया जा सकता है कि फिलीस्तीनी यहूदी राज्य के स्थायित्व को स्वीकार कर लें|