विरोधाभास पर ध्यान दें: इटली के गृहमंत्री मातियो सालविनी ने हाल में जब जेरूसलम की यात्रा की तो उन्होंने इसे इजरायल की राजधानी कहा , प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने उन्हें " इजरायल का महान मित्र" करार दिया| हालांकि वापस लौटने पर इटली के उदार यहूदियों ने सालविनी की निंदा की, जिसमें अनेक कारणों के अतिरिक्त उनकी जिप्सी नीति और उनकी तथाकथित " विदेशी और आप्रवासियों के विरुद्ध" नस्लवाद की नीति है|
इसी के समान एक संघर्ष इजरायल के विशाल राज्य और छोटे व घटते यहूदी समुदाय के मध्य चल रहा है , जो यूरोप के अनेक देशों में चल रहा है जो मिलाजुलाकर इसी विषय के बहस पर है : जिसे मीडिया अति दक्षिणपंथी , लोकप्रियतावाद, मूलनिवासवाद, या फिर राष्ट्रवादी जैसा संबोधित करता है और जिसके लिए मैं सभ्यतावादी दल संबोधन देता हूँ ( क्योंकि प्राथिमक रूप से वे पश्चिमी सभ्यता को बनाये रखने के लिए उठ रहे हैं) | इजरायल का नेतृत्व इनकी विदेश नीति पर ध्यान दे रहा है जिसमें कोई आश्चर्य नहीं है और अधिक विस्तार में उन्हें यूरोप में अपना मित्र मानकर चलते हैं , जबकि यूरोप की यहूदी व्यवस्था उनके घरेलू आचरण पर ध्यान दे रही है जो कि स्वाभाविक भी है , उनकी नजर में ये सेमेटिक विरोधी हैं जिनका सुधार संभव नहीं है और उनकी भविष्यवाणी है कि बीसवीं शताब्दी की फासीवादी तानाशाही की वापसी हो जायेगी |
हालांकि यह यहूदी आन्तरिक संघर्ष शेष विश्व को अत्यंत संकीर्ण और छोटा दिखता होगा , परन्तु वास्तव में इसके मायने गंभीर हैं और संभव है कि यह यूरोप के भविष्य को भी प्रभावित करे |
इसका कारण है कि यहूदी नरसंहार से जो अद्भुत नैतिक शक्ति यहूदियों को सौंपी गयी है कि वे इसका चयन कर सकें कि कौन फासीवादी है और कौन नहीं | या फिर और दबे शब्दों में जैसा कि वाल स्ट्रीट जर्नल ने कहा है , " हालांकि यहूदी मतदाता यूरोप के अनेक देशों में मतदाताओं का आनुपातिक छोटा हिस्सा भर हैं पर उनका मत प्राप्त करने से अति दक्षिणपंथी दलों की सार्वजनिक छवि सुधर सकती है" , यदि जेरूसलम का उन्हें सहयोग प्राप्त हो|
सभ्यातावादी इस प्रकार यूरोप की मुख्यधारा को सरलता से हासिल कर सकते हैं और सत्ता प्राप्त कर आप्रवास के विषय सहित इस्लामवाद को नियंत्रित करने की अपनी प्राथमिकता को प्राप्त कर सकते हैं| यदि स्थानीय यहूदी व्यवस्था उनपर हावी होती है तो उन्हें विश्वसनीयता प्राप्त करने में लम्बा समय लग सकता है और सत्ता भी धीरे धीरे हासिल होगी और अपना लक्ष्य हासिल करने में अधिक कष्ट का सामना करना पडेगा |
यूरोप के यहूदी
यूरोप में निवास करने वाले यहूदियों की संख्या ( रूस को छोड़कर) 60 करोड़ में कुल 15 लाख है, जो कि एक प्रतिशत का एक चौथाई है; जो कि हिन्दुओं की संख्या के बराबर है या मुसलमानों की संख्या का 1\20 है| नए धार्मिक समुदायों के विपरीत यहूदियों का सामना दो सहस्राब्दी के यूरोप के इतिहास से होता आया है जिसमें कि रक्त का हर्जाना और अनेक षड्यंत्रकारी सिद्धांत , क्रुसेड , अलग थलग निवास, दंगे और इस सभी का समन्वित परिणाम यहूदियों के नरसंहार में हुआ |
इसी प्रकार अन्य तेजी से बढ़ रहे आप्रवासी समुदायों के विपरीत साथ साथ चल रहे भारी मुस्लिम आप्रवास , अंधाधुंध सेमेटिक विरोध और वामपंथी जायोनिज्म विरोध ने यूरोप के यहूदियों की स्थिति को इतना विकट कर दिया है कि फ्रांस में जहां यहूदियों की संख्या कुल जनसंख्या का केवल 1 प्रतिशत से भी कम है उन्हें 2017 में नस्लवादी और धार्मिक भाव से प्रेरित कुल 40 प्रतिशत हिंसक घटनाओं को सामना करना पड़ा| हाल के जनमत सर्वेक्षण में यूरोप के 38 प्रतिशत यहूदी महाद्वीप से आप्रवास के बारे में सोच रहे हैं|
ऐतिहासिक रूप से भयभीत रहने वाले समुदाय ने अब भी अपना सर झुका कर रखा है| फ्रांस के अपवाद को छोड़ दें तो यूरोप के यहूदी इजरायल के विरोधियों को संतुष्ट रखने के लिए आधे जयोनिस्ट विरोधी विचारों का समर्थन करते हैं| ऐसा ही क्रोधित करने वाला बयान एमस्टर्डम में एने फ्रेंक हाउस ने इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री एरियल शेरोन की तुलना हिटलर से करते हुए दिया था , इसी प्रकार बर्लिन के यहूदी संग्रहालय में पूरी तरह जेरूसलम के मुस्लिम इतिहास और चरित्र को दिखाया गया |
इसी प्रकार यहूदी नेता आम तौर पर भारी आप्रवास पर शांत रहते हैं और अपनी पूरी दुश्मनी सभ्यतावादी दलों की ओर कर देते हैं , और यूरोप की व्यवस्था में यदि यहूदी नेताओं को सम्मान पाना है , सरकारों में अपनी पहुंच रखनी है और मुख्यधारा की मीडिया में भद्र बने रहना है तो यही यहूदी गुण होना चाहिए| उदाहरण के लिए नेशनल रैली के गिल्बर्ट कोलार्ड शायद इजरायल के " बिना शर्त रक्षक हैं" पर यदि आपने उनकी प्रशंसा कर दी तो आपको नस्लवादी कहा जाएगा जो कि नरम समाज से बाहर कर देता है|
वैसे यह तो सही है कि कुछ सभ्यतावादी यहूदियों को लेकर नस्लवादी , षड्यंत्रकारी और संकीर्ण भाव रखते हैं और इसके लिए उन पर नजर रखनी चाहिए कि कहीं उनकी मित्रता दिखावा तो नहीं है कि विश्वसनीयता और समर्थन प्राप्त कर सकें| परन्तु यहूदियों की मुख्य समस्या सभ्यतावादी नहीं हैं| राजनीतिक रूप से वे बिना रोकटोक आप्रवास का समर्थन नहीं करते या फिर बहुसंस्कृतिवाद का जो कि या तो इस्लामवाद को सहन करते हैं या फिर उसे प्रोत्साहन देते हैं और ये दोनों ही यूरोप में यहूदी जीवन के अस्तित्व के लिए ख़तरा हैं|
व्यक्तिगत रूप से , सभ्यतावादी यहूदियों के लिए प्रमुख ख़तरा नहीं हैं ; यहूदियों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव और घृणा के अपराधों को लेकर मौलिक अधिकारों के लिए यूरोपियन एजेंसी ने अपने सर्वेक्षण में पाया कि, " सेमेटिक विरोध की सबसे गंभीर घटनाएँ" 30 प्रतिशत " उग्रवादी मुस्लिम" द्वारा, 21 प्रतिशत वामपंथियों द्वारा और 13 प्रतिशत दक्षिणपंथियों द्वारा की जाती हैं| दूसरे शब्दों में , इस्लामवादी और वामपंथी मिलकर यहूदियों का उत्पीडन सभ्यतावादियों से चार गुना अधिक करते हैं|
इसके बाद भी यूरोप के अनेक यहूदी और उनके नेता व्यवस्था के दरबारी बनते हैं – राजनीतिक दल, मीडिया , शैक्षिक संस्थान के भी और उन शक्तियों का बखान करते हैं जो उनका जीवन बर्बाद कर रहे हैं| यदि बेट योर के शब्दों में कहें तो उन्होंने धिम्मी का व्यवहार अपना लिया है( मुस्लिम राज्य में निवास करने वाले एकेश्वरवादी गैर मुस्लिम लोगों के दोयम दर्जे का ऐतिहासिक सत्य)
इसके सबसे उदाहरण के रूप में यूरोप के रबाइयों के सम्मेलन के अध्यक्ष रबाई पिनचास गोल्डस्मिथ सामने हैं| उन्होंने अत्यंत मधुर स्वर में चेतवानी दी कि प्रधानमंत्री जेरेमी कार्बिन के चलते यहूदियों को ब्रिटेन छोड़ना पड़ेगा जबकि भावुक होते हुए सभ्यतावादियों की निंदा की इनके चलते पूरी तानाशाही की वापसी हो जायेगी और उनकी इजरायल समर्थक नीतियों की विश्वसनीयता रद्द करने के लिएकोशेर मुहर से मान्यता की बात की |
इजरायल
नेतान्याहू सरकार इस बात की प्रशंसा करती है कि व्यवस्था विरोधी दल यूरोप की व्यवस्था के दलों की उस परिपाटी को नहीं अपना रहे हैं जिसमें कि वक्तव्य के स्तर पर तो वे इजरायल को लेकर काफी गर्मजोशी दिखाते हैं पर वास्तविक रूप में काफी शांत रहते हैं; जैसे कि तीन एम ( ब्रिटेन की थेरेसा मे, फ्रांस के एमेनुअल मेक्रोन और जर्मनी की एंजेला मर्केल ) इजरायल के बारे में तो सकारात्मक बात करते हैं , परन्तु संयुक्त राष्ट्र संघ में इजरायल की मान्यता को खतरे में डालने वाले कार्यों का समर्थन करते हैं और उस ईरान डील का समर्थन करते हैं जिसे इजरायल के अधिकतर लोग एक ख़तरा मानते हैं|
इजरायल के पत्रकार एल्दाद बेक ने इस ओर संकेत किया है " जर्मन का दोहरा चरित्र दिखाई देता है बर्लिन इजरायल के अस्तित्व और इसकी सुरक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की घोषणा करता है ,उसी समय उन शक्तियों का भी समर्थन करता है जो यहूदी राज्य के अस्तित्व और सुरक्षा को कम करती हैं"
सभ्यातावादी पार्टियां इन बोझिल नीतियों के स्थान पर ( एक बार फिर फ्रांस के अपवाद को छोड़कर ) इजरायल को शस्त्र के लिए एक नैतिक साझेदार के रूप में देखती हैं और इस्लामवाद के विरुद्ध एक सहयोगी मानती हैं | इसका प्रदर्शन वे सेमेटिक विरोध से लड़कर , यहूदी नरसंहार का संग्रहालय बनवाकर, ईरान डील को ठुकराकर , अपने दूतावासों को जेरूसलम ले जाने का अनुरोध कर, इजरायल की सुरक्षा एजेंसियों से सीख लेते हुए और यूरोपियन संघ में इजरायल के हितों की रक्षा करते हुए करती हैं |
नीदरलैंड के गीर्ट वाइल्दर्स ने इजरायल में एक वर्ष निवास किया और दर्जों बार इसका दौरा किया | यूरोप के यहूदी अधिक सुरक्षित रहते हैं जब सभ्यतावादी आप्रवास पर कठोर नियंत्रण लगाते हैं और इससे इजरायल की प्रशंसा प्राप्त होती है ; 2017 में एवलिन गॉर्डोन ने लिखा कि, " हंगरी के 100,000 यहूदियों ने एक भी हमले की शिकायत नहीं की जबकि ब्रिटेन के ब्रिटेन के 250,000 यहूदियों ने 145 हमलों की शिकायत की"
इस गर्मजोशी और सुरक्षा के बदले इजरायल की सरकार सभ्यतावादियों के साथ लगातार सहयोग कर रही है परन्तु इसके बाद उन्हें यूरोप के उन यहूदियों के विरोध का सामना करना पड़ता है जिनकी वे रक्षा कर रहे हैं, जो कि एक गतिरोध की स्थिति उत्पन्न कर रहा है| उदाहरण के लिए जेरूसलम की पूरी इच्छा है कि आस्ट्रिया के इजरायल समर्थक विदेश मंत्री कारिन निस्ल के साथ कार्यव्यापार करे परन्तु आस्ट्रिया के यहूदियों ने ऐसी संभावना का कड़ा विरोध किया और इस हद तक विरोध किया कि उन्होंने चेतावनी दी कि ऐसी स्थिति में वे " जेरूसलम से लड़ाई" करेंगे |
निष्कर्ष
दो आरम्भिक बिंदु: यह सही है कि न तो यूरोप के यहूदी और न ही इजरायल की सरकार एकरूपता वाली है | स्वीडेन में पौला बेलर, नीदरलैंड में गिदी मार्कुस्जोवर और आस्ट्रिया में डेविस लेसर संसद में सभ्यतावादी दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं जर्मनी की सभ्यतावादी पार्टी एएफडी को जुडन इन देर समर्थन करते हैं |
इसके विपरीत इजरायल के राष्ट्रपति रिवेंन रिवलिन एक धिम्मी की तरह आचरण कर रहे हैं , लन्दन के एक समाचार पत्र में सेमेटिक विरोध के बारे में लिखते हुए उन्होंने बड़ी विनम्रतापूर्वक कार्बिन के नाम से किनारा कर लिया और दूसरी जगह सभ्यतावादियों को कटुतापूर्ण ढंग से उल्लिखित किया और उन्हें " नव फासीवादी" आन्दोलन बताया जिसका काफी मात्रा में और खतरनाक प्रभाव है" ( इस बात को स्वीकार करते हुए भी कि उनका इजरायल राज्य को कितना समर्थन है) | अपने व्यवहार के अनुरूप रिवलिन ने सालविनी से मिलने से इनकार कर दिया|
दूसरा, यूरोप का यह तनाव अमेरिका के समकक्ष है: ट्रम्प प्रशासन के इजरायल सरकार से बेहतर सम्बन्ध हैं पर अमेरिका के यहूदी व्यवस्था से नहीं | इसका प्रतीक यही है कि जब डोनाल्ड ट्रम्प पिट्सबर्ग के गिरिजाघर में 11 यहूदियों के लिए शोक प्रकट करने गए तो यहूदी समुदाय ने उनकी उपस्थिति का विरोध किया और अमेरिका में इजरायल के राजदूत ने अकेले उनका स्वागत किया |
यदि यह संघर्ष बढ़ता है तो इसका परिणाम निश्चित है कि इजरायल की सरकार स्थानीय यहूदी समुदाय को दरकिनार कर सभ्यतावादियों के साथ कार्य व्यवहार करेगी और यूरोप के यहूदियों की आवाज आप्रवासी बन जायेगी और उन्हें और कमजोर होना होगा| यह सुखद होगा क्योंकि सभ्यतावादी 1930 के दशक का ख़तरा नहीं हैं जैसा विपक्ष दिखा रहा है और मीडिया भी, बल्कि यह एक असामान्य समस्या का स्वस्थ समाधान है| जितना शीघ्र इजरायल इन आवाजों पर हावी होता है उतना ही बेहतर यूरोप , यहूदी जनसंख्या और इजरायल राज्य के लिए होगा| प्रश्न यही है कि कितना जल्दी यह घटित होगा|