आखिर आतंकवादी क्या चाहते हैं ? इसका बड़ा स्पष्ट उत्तर होना चाहिए था लेकिन ऐसा नहीं है.
एक पीढी पहले के आतंकवादी अपनी इच्छा कर देते थे .सितंबर 1970 को पापुलर फ्रंट फार द लिबरेशन आफ फिलीस्तीन ने विमानों का अपहरण कर अपनी माँगें मनवाते हुए ब्रिटेन , स्वीटजरलैंड और पश्चिम जर्मनी की जेलों में बंद अरब आतंकवादियों को छुड़वा लिया था .नीति निर्धारकों ने आतंकवादियों की माँगों के आगे न झुकने की बात कही तो अपहृत व्यक्तियों के परिजनों ने किसी भी कीमत पर उन्हें छुड़ाने की सरकार से माँग की इस कारण अपहरण का नाटक कुछ दिन चला . इसी प्रकार 1977 में वाशिंगटन डी सी के दो इमारतों पर हमला करने वाले हनाफी मुस्लिम गुट ने माँग की कि मोहम्मद पर बनी फिल्म वापस ली जाए , 750 डालर जुर्माना भरा जाए , हनाफी नेता के परिजनों को और मैलकम एक्स के हत्यारों को सामने लाया जाए .
ये दिन अब पुराने हो गए हैं और “ आतंकवादियों के ये मुहावरे ” भी अब पुराने हो गए हैं . आज पश्चिम के उपर जो भी आतंकवादी हमले हो रहे हैं उसमें आतंकवादियों द्वारा बदले में कोई माँग नहीं रखी जाती .बम फटते हैं , विमानों का अपहरण कर उन्हें इमारतों से टकरा दिया जाता है , होटल ढह जाते हैं , मृतकों की गिनती होती है , मृतकों की पहचान हो जाती है और वेबसाइटों के द्वारा हमले की जिम्मेदारी भी घोषित की जाती है , लेकिन हिंसा के कारणों की कोई व्याख्या नहीं हो पाती .मेरे जैसे कितने ही विश्लेषक इन घटनाओं के पीछे आतंकवादियों की मंशा समझने के लिए अटकलें लगाते हैं .इन अटकलों के आधार पर कहा जाता है कि इन घटनाओं का कारण आतंकवादियों की गरीबी से उपजी व्यक्तिगत नाराज़गी है ,उनके साथ हो रहा पक्षपात पूर्ण व्यवहार है या फिर सांस्कृतिक अलगाव की भावना उन्हें हिंसा के लिए विवश करती है .इन घटनाओं के पीछे आतंकवादियों की मंशा अंतरराष्ट्रीय नीतियों को बदलवाने की भी तो हो सकती है. जैसे मैड्रिड धमाकों से सरकारों को इराक से अपनी सेनायें वापस बुलाने के लिए विवश करना , अमेरिका के लोगों को दहशत में डालना कि वे सउदी अरब छोड़ दें , इजरायल के प्रति अमेंरिका के समर्थन को बंद कराना और भारत को संपूर्ण कश्मीर पर नियंत्रण हटाने के लिए मजबूर कर देना .
जैसा कि डेली टेलीग्राफ ने लिखा है “इराक और अफगानिस्तान की समस्या ने उन्मादी आतंकवादियों द्वारा खड़े किए गए शिकायातों के पहाड़ में कुछ नए पत्थरों जैसा काम किया है ”.
फिर भी यह सवाल कि अपनी जान देकर दूसरों की जान क्यों लेना बहुत बड़ा सवाल है .
पिछले कुछ आतंकवादी हमलों का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि इन सभी मामलों में आतंकवादियों द्वारा एक स्वयंभू मह्त्वाकांक्षा निर्माण की गई है और वह है एक ऐसे विश्व की स्थापना जो मुसलमानों , इस्लाम , इस्लामिक कानून और शरीयत के आधार पर संचालित हो .टेलीग्राफ के अनुसार “उनका वास्तविक उद्देश्य इस्लामिक राज्य क्षेत्र को पूरी दुनियाँ में फैलाना और शरीयत कानून के आधार पर संपूर्ण विश्व के लिए खिलाफत की स्थापना करना है ”.
आतंकवादी खुले आम अपने इन उद्देश्यों की घोषणा कर रहे हैं . 1981 में अनवर अल सादात की हत्या करने वाले इस्लामवादियों ने अपनी जेल की सलाखों को बैनरों से सजाया था जिसमें लिखा था “खिलाफत या मौत ” .
वर्तमान समय के एक अत्यंत प्रभावशाली इस्लामवादी विद्वान और ओसामा बिन लादेन को प्रभावित करने वाले अबदुल्ला अज्जाम ने घोषित किया है कि “उनका जीवन केवल एक लक्ष्य के इर्द गिर्द घूमता है और वह है पृथ्वी पर अल्लाह के शासन की स्थापना और खिलाफत की पुनर्स्थापना ”.ओसामा बिन लादेन भी इस बात की घोषणा करता है कि पवित्र खिलाफत का आरंभ अफगानिस्तान से होगा . लादेन के ही करीबी सहयोगी अमान अल जवाहिरी का भी सपना खिलाफत की पुनर्स्थापना है .वह लिखता है “इतिहास नई करवट लेगा .अल्लाह की इच्छा के अनुसार यह करवट अमेरिका के साम्राज्य और विश्व की यहूदी सरकार के ठीक विपरीत होगी ” . अल –कायदा के ही एक और नेता फजलुर रहमान खलील ने एक पत्रिका में लिखा है कि “जिहाद के आशिर्वाद से अमेरिका की उल्टी गिनती शुरु हो गई है यह जल्द ही अपने पराजय की घोषणा कर देगा ”.खलील का मानना है कि इसके बाद खिलाफत के निर्माण की प्रकिया आरंभ होगी .
इसी प्रकार प्रसिद्द डच फिल्म निर्माता थीयो वान गाग के हत्यारे मोहम्मद बावऐरी ने वान गाग के मृत शरीर पर एक पत्र चिपका दिया था जिसमें लिखा था “इस्लाम उन शहीदों के खून से विजयी होगा जिसने पृथ्वी के हर अंधेरे कोने में प्रकाश फैला दिया है ”. मजेदार बात यह है कि जब मुकदमे की सुनवाई के दौरान वान गाग के हत्यारे के लिए हत्या का हेतु कुछ दूसरा बताया गया तो वह बौखला गया और मुकदमे के दौरान ही उसने कहा “ मैंने जो कुछ भी किया है शुद्द रुप से अपने सिद्दांत और अपनी विचारधारा के कारण किया है , मैंने उसकी जान इसलिए नहीं ली कि वह डच था और मै मोरक्को का होने के नाते अपमानित महसूस करता हूं.”.
य़द्यपि आतंकवादी अपने जिहादी उद्देश्यों कि घोषणा स्पष्ट रुप से तीव्र स्वर में कर रहे हैं तथापि पश्चिम के लोग और मुस्लिम अकसर उनकी बात सुन पाने में असमर्थ रहते हैं.कनाडा के लेखक इरशाद मंजी का आकलन है कि मुस्लिम संगठन ऐसा दिखावा करते हैं मानों आज के आतंकवाद में इस्लाम निर्दोष है और उसकी कोई हिस्सेदारी नहीं है. आतंकवादी क्या चाहते है ं यह बड़ी मात्रा में स्पष्ट है इसलिए इस बात को नजर अंदाज करना भारी भूल होगी .