कट्टरपंथी इस्लाम की मानसिकता के कुछ भिन्न भिन्न प्रकार हैं .उनमें से एक मुस्लिम सर्वोच्चता का अभिमान है .एक यह विश्वास कि केवल विश्वास करने वालों को (believers) को ही शासन करना चाहिए तथा उन्हें अविश्वासियों से श्रेष्ठ सोपान पर आसीन होना चाहिए . यह विचार संपूर्ण विश्व के इस्लामवादियों पर हावी रहता है चाहे वे पेरिस की सड़कों पर हों या अफगानिस्तान की गुफाओं में .
अमेरिका के हाल के दो फौजदारी मामलों से इस बात की झलक मिलती है .दोनों ही मामले काउंसिल ऑन अमेरिकन इस्लामिक रिलेश्न्स से जुड़े हैं जो सउदी सहायता से चलने वाला संगठन है जिसका नेतृत्व कुछ अवसरों पर अपने उद्देश्य की घोषणा करते हुए कहता है कि उनका लक्ष्य अमेरिका का इस्लामीकरण है .
एक फौजदारी का मामला रेनो के गैर मुस्लिम दलाल डेल एरगोट का है जिसने सीएआईआर के आतंकवादियों के साथ संबंधों तथा उसके पूर्व कर्मचारी इस्माईल रोयर की आतंकवाद के संबंध में हुई गिरफ्तारी के बाद जल्दबाजी में 2003 के मध्य में सीएआईआर को चार नाराज़गी भरे ई – मेल कर डाले .एक में लिखा था “ हम तुम्हारे पवित्र युद्ध को स्वीकार करते हैं .हम तुमसे बड़ी आसानी से निपट सकते हैं विशेषकर तब जब तुम हमारी ही धरती पर हो .तुमने हमें आतंकवाद के बारे में काफी कुछ सिखा दिया है अब जवाब के लिए तैयार रहो.” कुछ सप्ताह उपरांत एक दूसरे संदेश में उसने लिखा “तुम बहुत से लोगों को नाराज़ कर रहे हो और बेवकूफों खुद बत्तख की तरह बैठे हो . ” एरगोट ने इन संदेशों के बारे में एशोसियेटेड प्रेस से कहा कि “यह धमकी नहीं थी केवल आक्रामक ई-मेल था . ” उसने सीएआईआर को अमेरिका विरोधी संगठन बताया . उसने यह भी रेखांकित किया कि उसने इन लोगों को शारीरिक रुप से नहीं धमकाया .सीएआईआर ने मामले को जरा अलग ढ़ंग से लिया और कानून प्रवर्तक संस्थाओं को इसे भेज दिया .न्याय विभाग इस मामले को उदाहरण के रुप में प्रस्तुत करना चाहता था इस कारण उन्होंने एरगोट के विषय को काफी गंभीरता से लिया . नवाडा के अमेरिकन एटोर्नी डेनियल बॉगडेन ने इन संदंशों को सीएआईआर के सदस्यों को नुकसान पहुंचाने वाला बताते हुए संघीय विशाल ज्युरी को इस बात के लिए मनाने की कोशिश की कि एरगोट को आरोपी सिद्ध किया जाना चाहिए. बॉगडेन ने एरगोट पर जो आरोप लगाया है उसके अनुसार उसे पांच वर्ष की जेल और 250 हजार डॉलर का जुर्माना हो सकता है . लेकिन सितंबर 2004 में खंडित ज्यूरी के समक्ष यह मामला प्रस्तुत होने के बाद उन्होंने एरगोट की सज़ा में रुचि नहीं दिखाई और 13 जनवरी 2005 को मामला सुलझाते हुए एरगोट को एक वर्ष के प्रोबेशन पर और 50 घंटे की समाज सेवा की सज़ा दी . ज्यूरी ने माना कि उसने उतावलेपन में काम किया लेकिन वह खतरनाक प्रवृत्ति का नहीं था .
दूसरा फौजदारी मामला मियामी बीच में रहने वाले भोजन विक्रेता तैज़र हुसैन ओकाशाह का है जो सीरिया का गैर-कानूनी आप्रवासी मुसलमान है . 3 जून 2004 को ओकाशाह ने प्लांटेशन के बेस्ट बाई स्टोर को नष्ट करने की धमकी दी . स्टोर के क्लर्क की गवाही के अनुसार ओकाशाह एक लैपटॉप कम्प्यूटर पर छूट के प्रस्ताव से असंतुष्ट था .क्लर्क के अनुसार ओकाशाह ने कहा “ मैं वापस जा रहा हूं लेकिन यदि मेरा पैसा वापस नहीं मिला तो इस जगह को उड़ा दूंगा.” 29 जून को ओकाशाह को विस्फोट की धमकी के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया और बिना किसी बौंड के जेल भेज दिया गया .
सीएआईआर के फ्लोरिडा कार्यालय के निदेशक अल्ताफ अली अचानक ओकाशाह के बचाव में आगे आए और कहा कि मुसलमान इस बात से बहुत चिंतित हैं कि इस समुदाय के एक विनम्र व्यक्ति को छूट के मामले में सवाल पूछने पर जेल में डाल दिया गया है .अली ने ओकाशाह के पूरे मामले को बड़े सामान्य तरीके से मुसलमानों को नकारात्मक तरीके से चित्रित करने से जोड़ दिया . सीएआईआर ने अपनी प्रेस रिलीज़ में कहा कि यह गिरफ्तारी भाषा कि गड़बड़ और स्टोर कर्मचारियों तथा कानून प्रवर्तकों की अतिशय प्रतिक्रिया के चलते हुई है . अली ने इस मामले से जुड़े न्यायाधीश को भी हटाने की मांग की क्योंकि उन्होंने ओकाशाह की मनोवैज्ञानिक जांच का आदेश दिया.कुछ भी हो ओकाशाह पर 14 फरवरी को विस्फोटक लगाने की धमकी के गंभीर आरोप में दूसरे चरण का मुकदमा चलेगा.
सीएआईआर की नज़र में जब एक गैर – मुस्लिम आतंकवाद पर आवेश में आकर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त करता है तो उसे कई सालों की जेल और आर्थिक जुर्माना होना चाहिए लेकिन जब कोई मुस्लिम किसी स्टोर को उड़ाने की धमकी देता है तो वह नकारात्मक छवि का शिकार निर्दोष है जिसे बिना सज़ा के छोड़ दिया जाना चाहिए.
एरगोट और ओकाशाह के मामले इस्लामवादियों के दोहरे मापदंड पर खरे उतरते हैं . यद्यपि सीएआईआर स्वयं को नागरिक अधिकारों वाले संगठन के रुप में प्रस्तुत करता है परंतु उसका आचरण ठीक इसके विपरीत है .एक ऐसा संगठन जो मुसलमानों के लिए विशेषाधिकार चाहता है और दूसरों के अधिकारों की अवमानना करता है .
जब पश्चिमी देशों की संस्थायें सीएआईआर जैसी इस्लामवादी संस्थाओं को वैधानिकता देतीं हैं तो वे इस्लामिक सर्वोच्चता के अभिमान को बढ़ावा ही देती हैं . और देश को मुस्लिम नियंत्रण की ओर खींचती हैं .ऐसी संस्थाओं को इन संगठनों की वैधानिकता रद्द कर इन्हें ऐसी संस्थाओं के लिए सुरक्षित रखना चाहिए जो कट्टरपंथी इस्लाम को नकारती हैं.