इराक के युद्ध ने दुनिया के सामने ब्रिटिश सरकार को एक दृढ़ और सख्त सरकार के रुप में पेश किया तो वहीं फ्रांस को एक कमज़ोर और तुष्टीकरण करने वाली सरकार के रुप में. पश्चिम में फ्रांस की मान्यता एक सशक्त राष्ट्र के रुप में है जबकि ब्रिटेन को एक दुर्भाग्यशाली देश माना जाता है .ब्रिटेन आधारित आतंकवादियों ने पाकिस्तान , अफगानिस्तान , कीनिया , तंजानिया, सउदी अरब , इराक , इजरायल , मोरक्को, रुस , स्पेन और अमेरिका में अपनी गतिविधियां संपन्न कीं . जॉर्डन ,मिस्र , मोरक्को , स्पेन , फ्रांस और अमेरिका की सरकारों ने तो लंदन द्वारा इस्लामवादी आतंकवादियों की अवसंरचना को ध्वस्त करने से मना करने और वांछित अपराधियों के प्रत्यर्पण न करने पर ब्रिटेन की आलोचना की थी . कुंठित होकर मिस्र के राष्ट्रपति होसनी मुबारक ने सार्वजनिक रुप से ब्रिटेन पर आरोप लगा डाला कि वह हत्यारों को बचाने का प्रयास कर रहा है . अमेरिका के एक सुरक्षा वर्ग ने तो ब्रिटेन को आतंकवादियों को प्रश्रय देने वाले देश के रुप में सूचीबद्ध करने की मांगी कर डाली थी .
आतंकवाद का प्रतिवाद करने वाले विशेषज्ञ ब्रिटेन को इसके सर्वथा अयोग्य मानते हैं. रोज़र क्रेसे कहते हैं कि लंदन पश्चिमी यूरोप में जेहादियों का अत्यंत महत्वपूर्ण लेकिन आसान केन्द्र बन चुका है .स्टीवन साइमन की दृष्टि में ब्रिटिश राजधानी कट्टरपंथी इस्लामियों के लिए स्टार वार का क्षेत्र बन चुकी है . पिछले सप्ताह के हमलों के बाद एक खुफिया अधिकारी ने बड़े कड़े अंदाज में कहा “ आतंकवादी अपने घर में आ गए हैं .यह एक गैर – जिम्मेदार नीति का पलटवार है .”
एक ओर जहां लंदन आतंकवादियों का आतिथ्य स्वीकार करता है वहीं पेरिस आतंकवाद के प्रतिवाद के केन्द्र एलायंस बेस को अपने यहां स्थान देता है . इस केन्द्र के बारे में अभी हाल में वाशिंगटन पोस्ट ने बताया. एलायंस बेस में 2002 से पश्चिम की 6 सरकारें खुफिया जानकारियों के संबंध में तालमेल स्थापित रखती हैं और इस आधार पर कारवाई करते हैं. जिससे यह कारवाई सशक्त हो जाती है .
11 सितंबर 2001 के तुरंत बाद फ्रांस के राष्ट्रपति शिराक ने अपनी खुफिया एजेन्सियों को निर्देश दिया कि आतंकवाद के आंकड़ों के संबंध में वे अमेरिका के अपने सहयोगियों के साथ तालमेल बिठाकर काम करें .यह सहयोग काम कर रहा है सीआईए के एक पूर्व कार्यकारी निदेशक जॉन ए मैकलॉगलीन ने इस द्विपक्षीय खुफिया संबंध को विश्व का सबसे बढ़िया संबंध बताया .ब्रिटेन का वाशिंगटन् से संबंध इराक के मामले में बढ़िया है तो फ्रांस का संबंध आतंकवाद के साथ युद्ध के मामले में है .
फ्रांस ने संदिग्ध आतंकवादियों को पश्चिम के किसी अन्य राज्य की तुलना में सबसे कम अधिकार दे रखे हैं . बिना वकील के पूछताछ की इजाजत , मुकदमे से पहले लंबी सज़ा और संदिग्ध अवस्था में प्राप्त साक्ष्यों की मान्यता.Al Qauida’s jihad in Europe के लेखक इवान कोलमान का कहना है कि उनकी बहुत कम इच्छा है कि उन्हें फ्रांस में गिरफ्तार किया जाए .
कट्टरपंथी इस्लाम के साथ व्यवहार के मामले में ब्रिटेन और फ्रांस के मध्य अनगिनत अंतर दिखाए जा सकते हैं . इन उदाहरणों को संक्षेप रुप में फ्रांस के इस निर्णय से समझा जा सकता है कि सरकारी सहायता प्राप्त विद्यालयों में मुस्लिम लड़कियां किस प्रकार के कपड़े पहनें .
लंदन के उत्तर पश्चिमी क्षेत्र से 30 मील की दूरी पर स्थित लूटन के डेनविग हाई स्कूल में मुस्लिम विद्यार्थियों की संख्या 80 प्रतिशत है .कुछ साल पहले इस विद्यालय ने अपनी विरासत के अनुरुप मुस्लिम लड़कियों के लिए पाकिस्तान के सलवार – कमीज , बिना बाजू की टॉप और सिर ढ़कने वाले हिजाब का वेश निर्धारित कर दिया .लेकिन जब बांग्लादेशी मूल की शबीना बेगम ने जिजाब पहनने का जिद की ( जो चेहरे और हाथ को छोड़ कर सारे शरीर को ढ़कता है) तो डेनविग प्रशासन ने ऐसा करने से मना कर दिया . यह मामला अदालत में गया और अपील की अदालत ने बेगम के पक्ष में निर्णय दिया . इसके परिणाम स्वरुप कानूनी रुप से ब्रिटिश स्कूलों को जिज़ाब अपनाना होगा. इतना ही नहीं तो बेगम के मुकदमें में अपील की अदालत में उनकी पैरवी इंग्लैंड के प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की पत्नी चेरी बूथ कर रही थी. श्रीमती बूथ ने इस निर्णय को समस्त मुसलमानों के लिए एक विजय बताया ताकि वे पूर्वाग्रहों और असहिष्णुता के बीच अपनी पहचान और मूल्यों की रक्षा कर सकें.
इसके विपरीत फ्रांस की सरकार ने फ्रांस के भीतर और दुनिया भर में इस्लामवादियों के तमाम विरोध के बाद भी 2004 में सार्वजनिक शिक्षण संस्थाओं से मुस्लिम स्कार्फ हटाते हुए हिजाब पर कानूनी पाबंदी लगा दी .तेहरान में इसके विरोध में प्रदर्शन कारियों ने नारा लगाया फ्रांस की मौत , यहूदी शिराक की मौत. फिलीस्तीन अथॉरिटी के मुफ्ती इकरीमी सय्यद सबरी ने घोषणा की कि हिजाब पर प्रतिबंध लगाने का फ्रांस का कानून इस्लाम धर्म के विरुद्ध युद्ध है .सउदी के प्रमुख मुफ्ती अब्दुल अजीज़ अल शेख ने इसे मानवाधिकारों को सीमित करना बताया .इराक की इस्लामिक आर्मी ने जब दो फ्रांसीसी पत्रकारों का अपहरण किया तो शर्त लगायी कि यदि हिजाब से पाबंदी नहीं हटाई गई तो पत्रकारों को मौत के घाट उतार दिया जाएगा .लेकिन पेरिस अपने फैसले पर दृढ़ रहा .
इन परस्पर विरोधी प्रतिक्रियाओं में क्या छुपा है ..ऐसा लगता है कि ब्रिटेन की अपनी विरासत में रुचि समाप्त हो चुकी है जबकि फ्रांस ने इसे पकड़ रखा है . एक ओर जहां ब्रिटेन लोमड़ी के शिकार पर प्रतिबंध लगा रहा है वहीं फ्रांस हिजाब पर .ब्रिटेन बहुलतावादी संस्कृति को अंगीकार कर रहा है तो फ्रांस को अपनी संस्कृति पर गर्व है . पहचान के संबंध में यह अंतर एक ओर जहां ब्रिटेन को कट्टरपंथी इस्लाम के विनाश के खतरों के सामने खोलता है वहीं फ्रांस अपनी समस्त राजनीतिक भूलों के बाद भी आत्मगौरव के बोध से युक्त है जिसे कोई भी अनुभव कर सकता है .