फिलीस्तीनी अथॉरिटी के नए अध्यक्ष महमूद अब्बास के संबंध में कुछ संशय है कि क्या वे इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करते हैं या फिर इसे नष्ट करना चाहते हैं. कनाडा के ग्लोब एंड मेल के मैथ्यू कॉलमैन भी लगभग इसी प्रकार के भ्रामक अभियान को अनुभव करते हैं.
“ वह दोनों रास्तों के समर्थक है , फिलीस्तीनियों की बढ़त , आतंकवाद का विरोध लेकिन फिलीस्तीनियों की वापसी के समर्थक ” शीर्षक का एक यहूदी लेख भी इसी धारणा को पुष्ट करता है. ऑस्ट्रेलिया ब्राडकॉस्ट कॉरपोरेशन के “ अब्बास के चुनाव की नीति विश्लेषकों को भ्रमित करती है .” शीर्षक का प्रसारण भी इसी रहस्य को स्वीकार करता दिखता है .
समाचार जगत भी इसी विरोधाभास को अनुभव करते हुए कहता है कि – एक क्षण तो अब्बास फिलीस्तीनी अरब आतंकवादियों से इजरायल पर हमले रोकने की बात करते हैं तो दूसरे ही क्षण उन्हें अंगीकार करते हैं और उन्हें स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले नायक की संज्ञा देते हैं. वे हिंसा रोकने की बात करते हैं और 40 लाख फिलीस्तीनी अरब वासियों के इजरायल लौटने के अधिकार की वकालत भी करते हैं यह प्रकारांतर से यहूदी राज्य को नष्ट करने का आह्वान है .
वास्तव में इसमें कोई विरोधाभास नहीं है . लौटने के अधिकार पर ज़ोर देकर अब्बास संकेत दे रहे हैं कि वे यासर अराफात तथा अधिकांश फिलीस्तीनियों की भांति 1948 के घटनाक्रम को समाप्त कर यहूदी राज्य की वैधानिकता को अस्वीकार कर इसे लुप्त करने के प्रयासों के लिए लड़ते रहेंगे . वे अराफात से इस मामले में भिन्न हैं कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उनके विचार में एक से अधिक रास्ते हैं.
कोई भी परिस्थिति रही हो लेकिन 1965 से 2004 के मध्य अराफात ने आतंकवाद पर निर्भरता दिखाई. उन्होंने इजरायल के साथ हुए समझौतों को कभी गंभीरता से नहीं लिया .बल्कि उसे इजराइलियों की हत्या करने के उपकरण के रुप में देखा . अराफात की यह नीति सितंबर 2000 में इजरायल के विरुद्ध आतंकवाद के युद्ध के साथ अपने अंतिम बिन्दु तक पहुंच गई जो नवंबर 2004 में उनकी मृत्यु तक जारी रही. वैसे इस नीति की असफलता जग जाहिर है .
इसके विपरीत सितंबर 2002 में अब्बास ने सार्वजनिक रुप से यह तथ्य स्वीकार किया कि आतंकवाद ने इजरायल की अपेक्षा फिलीस्तीनी अरब वासियों को अधिक क्षति पहुंचाई है . अब्बास ने निष्कर्ष निकाला कि इंतिफादा के दौरान इजरायल के भीतर हमले करना और शस्त्रों का उपयोग करना भूल थी . इसके पीछे प्रमुख आशय इजरायल को हतोत्साहित करना था जबकि इससे फिलीस्तीनी अथॉरिटी और उसकी जनसंख्या ही नष्ट हुई.
अब्बास नीतिगत रुप से लचीलापन दिखा रहे हैं. अराफात के आतंकवादी रास्ते के विपरीत जिससे उन्हें पैसा सत्ता और ख्याति मिली , अब्बास स्थिति को अधिक चतुराई से समझ रहे हैं. यदि इजरायल के विरुद्ध हिंसा को रोक कर संप्रभु यहूदी राज्य को नष्ट करने का उनका लक्ष्य पूरा होता है तो यही उनका कार्यक्रम है .
यहूदी शत्रु को वे उस रुप में स्वीकार नहीं करते जैसा अराफात हमास या फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद स्वीकार करते हैं लेकिन विविध तरीकों से उसे नष्ट करने के उनके विकल्प खुले हैं. इसी सप्ताह अपनी चुनावी विजय के उपरांत उन्होंने घोषणा की कि “ छोटा जिहाद समाप्त हो चुका है और आगे अब बड़ा जिहाद है.”
जिहाद का स्वरुप हिंसक से अहिंसक के रुप में परिवर्तित हो जायेगा लेकिन जिहाद जारी रहेगा .यहूदी राज्य को समाप्त करने के अनेक तरीकों की गिनती की जा सकती है .परमाणु अस्त्र , सेनाओं पर विजय, भयंकर आतंकवाद , सादा पुराना आतंकवाद . फिलीस्तीन में अधिक संतानोत्पत्ति से जनसंख्या असंतुलन या फिर इजरायल के लोगों को भ्रमित करना कि उत्तर यहूदी वामपंथी जनसंख्या नतमस्तक होकर फिलीस्तीन के भीतर “धिम्मी ” हैसियत स्वीकार कर लेगी .
अब्बास के इस निष्कर्ष की समानता कि हिंसा अनुपयुक्त है द्वितीय विश्वयुद्ध के एक दशक पूर्व के स्टॉलिन से की जा सकती है.अपनी कमियों को भांपकर 1930 में स्टॉलिन ने घोषणा की कि उनकी इच्छा है कि सोवियत संघ एक अच्छा अंतरराष्ट्रीय नागरिक बने. हमारी नीति शांति की नीति है तथा सभी देशों के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाने की है . इस नीति का परिणाम अनेक देशों के साथ हमारे संबंधों में सुधार तथा व्यापार , तकनीकि सहयोग तथा अन्य चीजों में सहयोग के रुप में सामने आएगा . हम शांति की इस नीति का पालन पूरी गंभीरता से करते रहेंगे .हम विदेशी राज्य क्षेत्र का एक फुट भी नहीं चाहते .
ये केवल शब्द नहीं थे 1939 तक स्टालिन ने इसी कार्यक्रम को अपनाया जबतक उन्हें नहीं लगा कि अब आक्रामक होने का समय आ गया है . इसके बाद उन्होंने आधी शताब्दी का आक्रामक अभियान चलाया जो सोवियत संघ के विखंडन के बाद ही समाप्त हुआ.
अब्बास के लिए भी यह 1930 का समय है . वह समझते हैं कि इस अवसर पर चीजों को ठंडा करने की आवश्यकता है कोई भी जो परिस्थितियों को समझ कर समयानुकूल आचरण कर सकता है उसी प्रकार वे भी अंध हिंसक आत्मविश्वासी अराफात की भांति ही इजरायल का शत्रु बनने की क्षमता रखते हैं.