हाल की दो कहानियां नाटकीय रुप से यूरोप में प्रवासियों की बढ़ती हुई समस्या का वर्णन करती हैं.
इनमें से एक उस गैंग से संबंधित है जिसने ब्रिटेन में एक लाख तुर्की कुर्दों को तस्करी से पहुंचाया . इन आर्थिक प्रवासियों ने अत्यंत व्यापक और खतरनाक रास्ते से आने के एवज में 3000 से 5000 पौंड प्रतिव्यक्ति अदा किए. Independent ने इसका विवरण देते हुए कहा , “ उनकी यात्रा सुरक्षित कारों, लॉरियों के गुप्त कक्षों तथा कुछ मामलों में गुप्त तरीके से दक्षिणपूर्व की कुछ उड़ानों के माध्यम से अनेक सप्ताहों में पूरी हुई .”
ब्रिटिश पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी ने टिप्पणी की , “यह अत्यंत ही पीड़ादायक यात्रा है जो पूरी तरह असहजता और खतरे से भरी है .लेकिन लंदन में स्थापित तुर्की समुदाय के आकर्षण के नाते वे यहां आने के लिए दृढ़संकल्प हैं.”
इस प्रकार यूरोप में प्रवेश करने वाले तुर्क अकेले नहीं हैं .इससे जुड़ी दूसरी कथा मोरक्को के भूमध्य सागरीय तट पर सियुटा और मेलिला के स्पेन के भाग में सहारा रेगिस्तान के गरीब अफ्रीकियों के झुंड की है जो कंटीले बाड़ को लांघ कर प्रवेश कर रहे हैं.
अभी हाल तक पुर्तगाल और स्पेन के बीच के इस आईबेरिया के क्षेत्र को बीते युग के क्रूसेड के अवशेष के रुप में देखा जाता था लेकिन अब ये ( कैनरी द्वीप, लेम्पेडुसा और मेयोटे के साथ ) यूरोपियन संघ के अलग- थलग पड़े क्षेत्र होने के कारण प्रवेश के प्रमुख मार्ग के रुप में पूरे यूरोपियन संघ में प्रवासियों का प्रवेश करा रहे हैं.
मेलिला साठ हजार लोगों की आबादी का एक शहर है जिसकी 6 मील की सीमा मोरक्को को भी स्पर्श करती है . इस सीमा की रक्षा स्पेन की सेना और मोरक्को की नागरिक सुरक्षा यूनिट करती है साथ ही इसमें आधुनिक तकनीक युक्त कंटीले बाड़ भी लगाए गए हैं.
पक्के अफ्रीकी प्रवासी सहारा रेगीस्तान के साथ-साथ चलकर भूमध्यसागर के तट पर पहुंचते हैं और उपयुक्त अवसर पाकर स्पेन के राज्यक्षेत्र में प्रवेश कर जाते हैं . गिउनिया बिसाऊ के एक नवयुवक ने कहा “हम जंगलों में जीकर थक चुके हैं.वहां न कुछ खाने को है ..न पीने को .”
मध्य सितंबर में अफ्रीकियों ने इस सीमा क्षेत्र पर एक साथ हमला बोला . उन्होंने जगह – जगह अनगढ़ सीढ़ियों के सहारे शक्ति का प्रयोग करते हुए कंटीले तारों को नीचे गिरा दिया . उनमें से एक ने कहा , “ हम सब समूह में गए और एक साथ कूद गए .हमें पता है कुछ लोग निकल जायेंगे , कुछ घायल होंगे और कुछ तो मर भी जायेंगे .लेकिन हमें किसी भी कीमत पर निकलना है.” रणनीति सफल रही. अकेले सितंबर में 1000 लोगों ने मेलीला में प्रवेश करने की चेष्टा की जिसमें 300 सफल रहे. अक्टूबर के आरंभ में 650 लोगों ने कंटीले बाड़ से कूद लगाई जिसमें से 350 कूदने में सफल रहे . एक मलीनियन ने बताया कि हममें से बहुत को रोक दिया गया .” अनुमान के अनुसार 30 हजार अफ्रीकी अपनी बारी आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
यह संघर्ष एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध का रुप ले लेता है .अफ्रीकी सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकते हैं.जिसका जवाब सुरक्षा बल संगीनों की नोक , हवाई फायर से देते हैं.इन हमलों के बीच दर्जनों अफ्रीकी मारे जाते हैं, कुछ स्पेन के राज्य क्षेत्र में भाग जाते हैं शेष मोरक्को की पुलिस की गोली का शिकार हो जाते हैं .
मैड्रिड ने रबात पर जोर डाला कि प्रतीक्षारत अफ्रीकियों को सख्ती से कुचलें इसका अनुपालन करते हुए उनमें से 2000 को उनके मूल देशों को भेज दिया गया तथा शेष 1000 मोरक्को के उन रेगिस्तानी क्षेत्रों में भेज दिए गए जो स्पेन के रिहायशी इलाकों से काफी दूर हैं.इन्हें हटाने में काफी क्रूरता का प्रयोग किया गया , इन अफ्रीकियों को बिना किसी सहायता के अपने हाल पर छोड़ दिया गया . अब लौटने का स्वर सुनाई पड़ रहा है . एक और मालियन ने कहा “ मैं लौट जाऊंगा .” अपनी आंखों में आंसू लेकर उसने कहा मैं लौटने का प्रयास नहीं करुंगा मैं थक गया हूं.
आधुनिक संचार माध्यमों और आवागमन के साधनों ने धीरे-धीरे तुर्कियों , अफ्रीकियों और मैक्सिको के लोगों को प्रेरित किया है कि वे जरुरत पड़ने पर खतरों को उठाते हुए अपनी मूल भूमि को छोड़कर पश्चिम के निकटतम् क्षेत्रों में प्रवेश करें.
यूरोप के लोग इस मामले में बेनकाब हो गए हैं उन्होंने अपनी बहुलतावादी संस्कृति को मानों पोंछ डाला है जैसा कि कोफी अन्नान का वक्तव्य है… “..महत्वपूर्ण यह है कि हमें लोगों को सीमायें पार करने से रोकने का व्यर्थ प्रयास नहीं करना चाहिए ..इसका कोई लाभ नहीं है .” लेकिन लोगों को सीमायें पार करने से रोकना काफी कुछ एजेन्डे में है. यह केवल कुछ समय की बात है कि जब अन्य पश्चिमी देश भी स्पेन तथा ऑस्ट्रेलिया की भांति सैन्य शक्ति के प्रयोग से यह कार्य करेंगें.
इस भीमकाय तस्करी के जाल और व्यक्तियों के प्रवाह से कुछ संशय की स्थिति बन गई है .शांति के द्वीप युद्ध और अभाव के महासागर में कैसे बच पायेंगे , किस प्रकार कम होती यूरोप की जनसंख्या अपनी ऐतिहासिक जड़ को बनाए रख पायेगी तथा किस प्रकार तुर्की से लेकर माली तथा मैक्सिको तक के राज्य अपनी समस्याओं का समाधान करेंगे न कि उनका निर्यात करेंगे . फिलहाल तो कोई समाधान होता नहीं दिखता और यही लगता है कि समस्यायें और भी भयावह होंगीं.