पिछले माह यासर अराफात की मृत्यु हुई है.उनकी मृत्यु के एक माह पश्चात् 500 मिलियन से 1 बिलियन तक की सहायता फिलीस्तीनी अरब के लोगों के लिए प्राप्त करने के प्रयास हो रहे हैं.यह खुलासा स्टीवन वाइसमैन ने न्यूयार्क टाइम्स में 17 दिसंबर को किया . उन्होंने खुलासा करते हुए बताया कि पश्चिमी , अरब और अन्य सरकारें फिलीस्तीनी राज्य क्षेत्र में रहने वाले 35 लाख फिलीस्तीनी अरब वासियों के लिए 50 से 100 प्रतिशत तक सहायता में वृद्धि कर उन्हें 1 बिलियन डॉलर बोनस देने की योजना बना रही है जो आतंकवादी संगठनों के विरुद्ध कठोर कारवाई करने और जनवरी 2005 में प्रामाणिक चुनाव संपन्न कराने पर निर्भर करेगी.
वाइसमैन रिपोर्ट के संबध में पूछे जाने पर व्हाइट हाउस के प्रवक्ता स्काट मैकक्लेनन ने न तो इसकी पुष्टि की और न ही इसका खंडन किया .परंतु राष्ट्रपति बुश ने अवश्य एक अत्यंत विशाल महत्वकांक्षी वक्तव्य अरब –इजरायल संघर्ष के संबंध में दिया . मैं इस बात कर को लेकर आश्वश्त हूं कि इस कार्यकाल में शांति स्थापित करने में सफल रहूंगा और अगला वर्ष अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शांति लाने वाला है .
सहायता के नजरिये से देखें तो पश्चिमी तट और गाजा के निवासी शायद ही उपेक्षित रहे हैं. वे प्रति व्यक्ति आय के रुप में 300 डॉलर प्राप्त करते हैं जो विदेशी सहायता के आधार पर लाभार्थियों की प्रति व्यक्ति आय का विश्व में सबसे बड़ा भाग है . आश्चर्य जनक रुप से इस सहायता से उनके इजरायल को नष्ट करने के भयंकर प्रयासों को समाप्त नहीं किया जा सका है वरन् इन प्रयासों ने इस मामले में और सब्सिडी ही दी है. चिरभोग के रुप में धन प्राप्त करते हैं तथा विदेशी सहायता से फिलीस्तीनी अरब की लड़ाकू प्रचार मशीन , शस्त्रों , सेना और उनके आत्मघाती हमलावरों को समुचित आर्थिक सहायता मिलती है.
लेकिन इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक सहायता देने वालों को कोई फर्क नहीं पड़ता .पश्चिमी तट और गाजा के लिए विश्व बैंक के निदेशक निजेल रॉबर्टस् अपनी पुरानी गलतियों से कुछ सीखने को तैयार नहीं हैं .दान-दाताओं के समक्ष बोलते हुए वे कहते हैं “ हो सकता है एक वर्ष में एक बिलियन डॉलर की आपकी सहायता का कोई परिणाम न हुआ हो लेकिन हमारा मानना है कि ये ऐसा मामला है जब हम अगले तीन या चार वर्षों में अधिक सहायता कर सकते हैं. ” वास्तव में श्री रॉबर्टस् कह रहे हैं हां आपके धन ने अराफात के भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिया है ...जिहाद की विचारधारा और आत्मघाती फैक्ट्रियों को बल मिला है लेकिन ये सब बीते कल की बाते हैं और अब हम यह आशा करते हैं कि नया नेतृत्व इस सहायता का उपयोग अच्छे कामों के लिए करेगा कृप्या इनकी प्रतिष्ठा और सत्ता बढ़ाने के लिए और धन दीजिए तथा प्रतीक्षा करिए की कुछ अच्छा होगा .
चलो कुछ और दिन देखते हैं वाली इस सोच ने दो समस्याओं की ओर ध्यान नहीं दिया है एक फिलीस्तीनी- अरब की इजरायल को नष्ट करने की मंशा जिसका प्रदर्शन कट्टर आतंकवादी यासर अराफात के अंतिम संस्कार के समय शोक व्यक्त करते लोगों के उदगार से स्पष्ट था तथा जिसका समर्थन समय – समय पर होने वाले जनमत सर्वेक्षणों के शोध और भविष्य के जिहादियों की अनवरत् आपूर्ति भी करते हैं . फिलीस्तीनी –अरब वासियों को आत्मसंयम सीखना बाकी है .
दूसरी समस्या पिछले दशक की हिंसा और क्रूरता को पूरी तरह अराफात पर थोपकर यह कल्पना कर लेना कि उनसे मुक्ति के बाद फिलीस्तीनी –अरब सुधार के लिए प्रतिबद्ध हैं . नए नेता मदमूद अब्बास ने इजरायल के विरुद्ध आतंकवाद समाप्त करने की बात अवस्य की है लेकिन उन्होंने ऐसा चतुराई के चलते किया है .इसे बुराई मानकर पूरी तरह समाप्त करने की उनकी इच्छा नहीं दिखती. अब्बास नरमपंथी नहीं अवसरवादी हैं. अराफात के विपरीत अब्बास एक सटीक व्यक्ति के रुप में चित्रित होना चाहते हैं जो तार्किक ढ़ंग से इजरायल को नष्ट करने के अराफात के लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं. इसी भावना के चलते उन्होंने फटा-फट कुवैत के लोगों से माफी मांगी तथा सीरिया से अपनी बात बना ली ताकि अमेरिका तक आसानी से पहुंचा जा सके लेकिन अब्बास इजरायल को नष्ट करने की मंशा अपने पूर्ववर्ती सलाहकार अराफात से कम नहीं रखते .यह ेक उदाहरण से स्पष्ट है . उन्होंने अपने वक्तव्य में लाखों शरणार्थी फिलीस्तीनी अरब वासियों को प्रेरित किया की उन्हें इजरायल में प्रवेश की अनुमति मिलनी चाहिए अब्बास चाहते हैं कि इजरायल की भूजनांकिकी को परिवर्तित किया जा सके या फिर उस स्थान पर फिलीस्तीनी अथॉरिटी का दबाव कायम किया जा सके .
फिलीस्तीनी अरब वासियों के ह्र्दय परिवर्तन और यहूदी राज्य इजरायल के अस्तित्व को स्थायी रुप से स्वीकार कर लेने से पूर्व उन्हें अतिरिक्त सहायता देना एक बार फिर 1990 की ओस्लो कूटनीति की भूल को दुहराना होगा .समय से पहले फिलीस्तीनी अरब वासियों को पुरस्कृत करना आत्मसातीकरण की समय – सारिणी को विलंबित ही करेगा .
जैसा कि मैं वर्षों से तर्क देता आया हूं कि फिलीस्तीनी अरबवासियों को धन ,शस्त्र ,कूटनीति और मान्यता देने का काम उनके द्वारा इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार किये जाने के सापेक्ष होना चाहिए . एक संकेत ऐसा है जिससे लगता है कि यह घटित होगा वह यह कि जब यहूदी पश्चिमी तट के हेब्रान में रहते हैं तो बिना किसी सुरक्षा के रहते हैं जबकि इजरायल के नजरेथ में अरबवासियों को सुरक्षा में रहना पड़ता है . जबतक आपसी भाईचारा का समय नहीं आता जिसमें संभवत: तीस वर्ष लगेंगे तबतक बहरी विश्व को फिलीस्तीनी अरब वासियों को धन या लाभ की वर्षा करने के स्थान पर उन्हें समझाना चाहिए कि वे इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कर लें.