अमेरिकावासियों के लिए राष्ट्रपति पद के चुनाव की एक प्रमुख कसौटी है कि आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध कैसा चल रहा है? राष्ट्रपति बुश अपने सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ उचित हैं या सिनेटर केरी का नकारात्मक दृष्टिकोण उचित है .
परंपरावादियों के बीच भी यही बहस चल रही है . वहां भी विश्लेषक इसी बात पर विचार करते हुए कि अमेरिका अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है अनेक निष्कर्षों पर पहुंच रहे हैं. मार्क हेलप्रिन और टाड लिंडबर्ग नामक दो दक्षिण पंथियों के परस्पर विरोधी विचारों पर ध्यान देने की आवश्यकता है .
A Soldier of the Great War और Winter's Tale जैसे दो सशक्त उपन्यासों के लेखक हेलप्रिन ने Claremont Review of Books के नवीनतम् अंक में एक निराशावादी विश्लेषण किया है जिसमें अमेरिका द्वारा वर्तमान खतरे को न समझ पाने की तुलना उन्होंने 1930 के इंगलैंड से की है जो नाजी खतरे को भांपने में असफल रहा था. हेलप्रिन ने अनुभव किया है कि देश विशेष रुप से कुलीन वर्ग इस भ्रम में आत्मंमुग्ध है कि खतरे में बहुत कुछ दांव पर नहीं लगा है और संभावित क्षति इतनी नहीं है कि उसे सहन न किया जा सके . दूसरे शब्दों में 11 सितंबर की घटना अमेरिका के लोगों को जगाने के लिए पर्याप्त नहीं थी . उन्होंने अमेरिका वासियों से कहा है कि संयुक्त रुप से अपने दिमाग को तैयार कर एक सामान्य प्रश्न का उत्तर दें कि क्या हम युद्ध की स्थिति में हैं या नहीं ? यदि वे इस स्थिति में नहीं है तो चिंता की कोई बात नहीं है और 11 सितंबर से पूर्व की भांति चैन से सो सकते हैं . यदि वे युद्ध की स्थिति में हैं तो तत्काल कुछ पुनरीक्षण और इस दिशा में पहल की आवश्यकता है .
हेल्प्रिन उन कदमों को रेखांकित करते हैं जो गंभीरतापूर्वक युद्ध लड़ने की स्थिति में घर में और बाहर उठाए जाने की आवश्यकता है . घर में जो कदम उठाए जाने चाहिए उसमें 30 हजार सशक्त बॉर्डर पेट्रोल द्वारा सीमा को सुरक्षित करना , आतंकवाद के समर्थन का तनिक भी रिकार्ड रखने वाले विदेशी व्यक्ति को देश से बाहर भेजना शामिल है . आतंकवाद के साथ संबंध के संदेह वाले अमेरिकी नागरिकों का निकटतम सर्वेक्षण कराना तथा जैविक और रासायनिक युद्ध के एजेंटों के विरुद्ध मैनहैटन जैसा प्रोजेक्ट आरंभ कराना .ऐसे कदम उठाए जाने की स्थितियां अस्तित्व में हैं लेकिन ऐसे कदम नहीं उठाए जाते क्योंकि दक्षिणपंथी ऐसे कदम उठाने की सलाह नहीं देते और वामपंथियों का आवेश भी इसमें आड़े आता है . इसके परिणाम स्वरुप ऐसा अपाहिजपन उभरता है जिसकी कल्पना तो स्वयं आतंकवादी भी अत्यंत आशावादी स्थितियों में भी नहीं करते होंगे.
Hoover Institution's Policy Review magazine के संपादक लिंडबर्ग अमेरिका वासियों के मध्य एक व्यापक सहमति देखते हैं जो चुनाव के इस मौसम में दलीय विभाजन के रुप में भी देखने को मिली . हेल्प्रिन के विपरीत उन्होंने जो कुछ देखा उससे वे काफी प्रसन्न हैं . उन्होंने वीकली स्टैंडर्ड में लिखा है कि बुश प्रशासन ने एक रणनीतिक सिद्धांत की रुप रेखा तैयार की है जिसके आधार पर ही अगले 50 वर्षों की सुरक्षा नीति तैयार की जाने वाली है और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि 2004 का चुनाव कौन जीतता है .
जहां हैलेप्रिन कमियों की ओर देखते हैं तो वहीं लिंडबर्ग उन चार परिवर्तनों की ओर इंगित करते हैं जिनपर बुश ने जोर दिया है और जिसे केरी ने भी स्वीकार किया है . वे इस प्रकार हैं-
- वैश्विक स्तर पर लोकतंत्र को आगे बढ़ाना क्योंकि स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश एक दूसरे के साथ शांतिपूर्वक जीना चाहते हैं.
- इस बात पर जोर देना कि अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी सैन्य शक्ति बनी रहे ताकि अन्य देशों में सैन्य स्तर पर बराबरी की क्षमता को हतोत्साहित किया जा सके जिससे विभिन्न देशों के मध्य विवादों का शांतिपूरण समाधान किया जा सके .
- अपनी सीमा के अंदर आतंकवाद को बढावा देने के लिए सरकारों को उत्तरदायी ठहराना और उनके क्रियाकलापों को हतोत्साहित करना .
- सामूहिक नरसंहार के हथियार आतंकवादियों द्वारा उपयोग करने की संभावना के कारण हमले का शिकार होने से पूर्व ही हमला करने के अधिकार को सुरक्षित ऱखना ताकि अनम्य देशों को इराक का उदाहरण दिखाकर ऐसा करने से रोका जा सके.
डेमोक्रेट प्रत्याशी को या तो इन नीतियों को संशोधित करना चाहिए था या रद्द करना चाहिए था . उन्हें अमेरिका की सैन्य शक्ति पर खर्च कम करने की बात करनी चाहिए थी , आतंकवादियों या उन्हें सहायता देने वाले राज्यों पर जोर नहीं देना चाहिए था. हमला करने की झूठी कसम खानी चाहिए थी तथा दूसरे राज्यों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का वादा करना चाहिए था लेकिन केरी ने ऐसा कुछ भी नहीं किया. इसके बजाए उन्होंने नीति को लागू करने के तरीके का विऱोध किया ताकि वे ओसामाबिन लादेन और सद्दाम हुसैन के संबंध में बुश की नीतियों का सीमित विऱोध करें.
हेलप्रिन और लिंडबर्ग विद्वेषी डेमोक्रेट और रिपब्लिक के मध्य अंतर्निहित समझौते पर परस्पर विरोधी निष्कर्षों के द्वारा पहुंचे हैं लेकिन हैलप्रिन ने जिस प्रकार अमेरिका द्वारा आवश्यकता की उपेक्षा करने पर उसकी खिंचाई की है वह अधिक सही है . लिंडबर्ग ने सही ही समझा है कि चुनाव के मौसम में केरी ने बुश प्रशासन को भांप कर उसे स्वीकार कर लिया था क्योंकि वे व्यापक रुप से लोकप्रिय थे लेकिन इस बात को स्वीकार करने का कोई कारण नहीं है कि वे नीतियां केरी के प्रशासन में भी रहेंगी क्योंकि वहां वे दूसरे स्वरुप में परिवर्तित हो जायेंगी .