हिन्दी अनुवाद - अमिताभ त्रिपाठी
बुश प्रशासन से अपेक्षा कर सकते हैं कि वह मध्य पूर्व को अमेरिका की विदेश नीति का केन्द्र बिन्दु बनाये रखेगा और साथ ही अब तक की मिली-जुली प्रतिक्रिया के बाद भी मूल रणनीति को अपरिवर्तित ही रखेगा.
पिछले सप्ताह व्हाइट हाउस द्वारा The National Security Strategy of the United States of America नाम से जारी किये गये विदेश नीति सम्बन्धी दस्तावेज का यही सन्देश है.
कानूनी अनुमति से प्रत्येक चार वर्ष पर प्रदर्शित होने वाली NSS की 49 पेज लम्बी रिपोर्ट राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार स्टीफेन हेडली और उनकी टीम ने तैयार की है.
पूरे मामले में मध्य-पूर्व की बहुत बड़ी भूमिका अनेक प्रकार से नजर आती है. रिपोर्ट के आरम्भ में राष्ट्रपति बुश का पत्र संलग्न है जिसमें कहा गया है कि “अमेरिका युद्ध की स्थिति में है” और शत्रु की ब्याख्या करते हुये कहा गया है “आतंकवाद को घृणा और हत्या की आक्रामक विचारधारा पोषित कर रही है जो अमेरिका के लोगों के समक्ष 11 सितम्बर 2001 को प्रकट हुई ”. रिपोर्ट में मध्य-पूर्व को एक ऐसे क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया है जो सदैव से विश्व का ध्यान खींचता रहा है और वह भी इस देश में लोकतन्त्र के अभाव के कारण. इस क्षेत्र में दमन के कारण भ्रष्टाचार, असन्तुलित और निष्क्रिय अर्थव्यवस्था, राजनीतिक असन्तोष, क्षेत्रीय संघर्ष और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा मिला.
अन्य कारण भी मध्य-पूर्व और खाड़ी के देशों की केन्द्रीय भूमिका की ओर संकेत करते हैं. खतरनाक राज्यों की श्रेणी में ईराक का उल्लेख 57 बार, चीन का 28 बार और रूस का 17 बार हुआ है. रिपोर्ट में यदि किसी एक देश को सबसे खतरनाक माना गया है तो वह है ईरान. सीरिया को भी स्वतन्त्रता, न्याय और शान्ति का शत्रु बताते हुये ध्यान में रखा गया है.
मध्य-पूर्व पर इस प्रकार ध्यान देने के पीछे कारण भी है, क्योंकि इस क्षेत्र से अमेरिका को कुछ तात्कालिक खतरे हैं. इसके बाद NSS बहुत ही आशावादी रवैया अपनाकर इस क्षेत्र की समस्या को समझने का प्रयास करता है.
ईराक की परिस्थितियों को एक चुनौती के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिससे निबटा जाना शेष है. “हम इराक की एक चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकार के साथ कार्य करने जा रहे हैं जो आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में हमारे नए सहयोगी हैं .उनके साथ हम स्वतंत्रता को सशक्त करने , बढ़ाने और सुरक्षा के निर्माण के साथ स्थिरता के लिए काम करेंगे..”
यद्यपि गृह-युद्ध के भूत का साया वहां नहीं दिख रहा है .
जैसा कि गाल लुफ्ट ने कहा है कि प्रत्येक बार जब अमेरिका के लोग गैस स्टेशन पर जाते हैं तो वे अमेरिका के शत्रुओं को धन देते हैं लेकिन यह समस्या NSS की रिपोर्ट से गायब है इतना जरुर कहा गया है कि तेल मुद्राओं के कोष की गतिविधियां क्षेत्र को अस्थिर करती हैं या हिंसक विचारधारा को बढ़ावा देती हैं.
रिपोर्ट में कट्टरपंथी इस्लाम के खतरे को काव्यात्मक तरीके से कमतर आंकते हुए कहा गया है कि एक महान धर्म को तोड़-मरोड़ कर एक बुराई का स्वरुप दे दिया गया है . ऐसा है नहीं, इस्लामवाद इस्लाम का गहरा और लोकप्रिय स्वरुप है जिसका प्रदर्शन अफगानिस्तान से अलजीरिया तक के चुनाव परिणामों में हुआ है . मुस्लिम बहुसंख्यक देशों के प्रामाणिक जनमत सर्वेक्षण तो उपलब्ध नहीं हैं लेकिन ब्रिटेन में बार-बार हुए सर्वेक्षण यहां की मुस्लिम जनसंख्या के कट्टरपंथी व्यवहार की ओर संकेत करते हैं . ब्रिटेन की मुस्लिम जनसंख्या का पांच प्रतिशत 7 जुलाई 2005 के लंदन आतंकवादी हमलों का समर्थन करता है तथा ऐसे हमलों को न्यायोचित ठहराता है,
20 प्रतिशत मुस्लिम जनसंख्या 7 जुलाई के हमलावरों की भावना और हेतु से सहानुभूति रखती है और ब्रिटेन में सेना पर आत्मघाती हमलों को न्यायोचित ठहराती है . ये परिणाम वैश्विक मुस्लिम जनसंख्या के ही विचार हैं जैसा कि इण्डोनेशिया और फिलीस्तीनी अरब के हाल के जनमत सर्वेक्षण पुष्ट करते हैं .
NSS ने तुर्की और बांग्लादेश की कोई चर्चा नहीं की है और सउदी अरब का थोड़ा बहुत उल्लेख कर दिया है .साथ ही सुझाव दिया है कि इन राज्यों का इस्लामवादी नेतृत्व कोई विशेष खतरा उत्पन्न नहीं कर रहा है .जनवरी 2006 को हमास को सत्ता तक पहुंचाने में सहायता करने की अपनी गंभीर भूल को प्रशासन ने अत्यंत शांत स्वर में इस तरह व्यक्त किया है .( यदि हमास अपनी आतंकवादी जड़ों को छोड़ दे और इजरायल के साथ संबंधों में परिवर्तन कर दे तो शांति और राज की संभावना खुली है )
वैसे NSS ने बुश प्रशासन की मध्यपूर्व योजना को सटीक रुप से प्रतिबिंबित किया है .इस क्षेत्र की बीमार राजनीतिक संस्कृति और इसके द्वारा अमेरिका के सामने उत्पन्न खतरे पर कठोर और आवश्यकतानुसार ही ध्यान दिया गया है लेकिन साथ ही निश्चिंत भाव से कहा गया है कि वर्तमान नीतियां उचित हैं , सबकुछ पटरी पर है तथा इराक , आतंकवाद और विशेषरुप से अरब –इजरायल संघर्ष समस्यायें हैं जिनसे शीघ्र ही निबट लिया जायेगा.
महत्वपूर्ण है कि इरान द्वारा परमाणु हथियार प्राप्त करने के अभियान को लेकर प्रशासन आत्मविश्वास का प्रदर्शन नहीं कर पा रहा है .यहां प्रशासन स्पष्ट रुप से निश्चिंत नहीं है ( एनएसएस का कहना है कि यदि संघर्ष से बचना है तो तेहरान के परमाणु कार्यक्रम को शांतिपूर्ण उद्देश्यों तक सीमित रखने के लिए उसे मनाने के कूटनीतिक प्रयासों का सफल होना आवश्यक है ). यह पर्यवेक्षक अपेक्षा करता है कि इस क्षेत्र के संबंध में अमेरिका की नीति में इसी के समकक्ष अन्य भी संदेह होने चाहिए .