अंत में अमेरिकी सरकार की किसी आधिकारिक शाखा ने सामने आकर वह कहा जो कहना चाहिए कि शत्रु “ इस्लामवादी आतंकवाद है ,न कि केवल आतंकवाद जो कि कुछ सामान्य बुराई है.” 11 सितंबर के आयोग ने तो अंतिम रिपोर्ट में यहां तक घोषणा की है कि इस्लामवादी आतंकवाद अमेरिका के लोगों के समक्ष एक आकस्मिक खतरा है .
जैसा कि थामस डोनली ने न्यूयार्क सन में कहा है कि आयोग ने शत्रु को उसके सही नाम से पुकारा है जिसके लिए अमेरिका के राजनीतिक रुप से उचित लोगों को समस्या का सामना करना पड़ता था.
यह बात महत्व क्यों रखती है कि आतंकवाद के इस्लामवादी आयाम का विशेष उल्लेख हो ? सामान्य सी बात है ,जिस प्रकार एक डाक्टर को रोग का इलाज करने के लिए उसे पहचानना पड़ता है उसी प्रकार रणनीतिकार को शत्रु को पराजित करने के लिए उसे नाम देना पड़ता है .सितंबर 2001 के बाद से अमेरिका के युद्ध संबंधी प्रयासों की सबसे बड़ी असफलता शत्रु को नाम देने की अवहेलना रही है .
जब तक अस्पष्ट , अनिश्चित मुहावरा आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध आधिकारिक नामकरण प्राप्त किए रहेगा .यह युद्ध नहीं जीता जा सकता .
अच्छा हो कि आतंक से परे इसमें व्याप्त अधिनायकवादी विचारधारा को देखते हुए इसे इस्लामवादी आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध या इस्लामवाद के विरुद्ध युद्ध कहा जाये .
महत्वपूर्ण है कि 22 जून को जिस दिन 11 सितंबर की रिपोर्ट प्रकाशित हुई उसी दिन राष्ट्रपति बुश इस्लामवादी खतरे की ओर काफी निकट से संकेत करते हुए दिखे .
अमेरिका पर हुए आतंकवादी हमलों पर राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट के कुछ और मूल्य भी हैं.इस रिपोर्ट में इस्लामवादी विचारों का सटीक चित्रण करते हुए कहा ..” हमें और हमारे मूल्यों के प्रति असीम शत्रुता की बात कही जा रही है .” इसी प्रकार इस्लामवादी उद्देश्यों का वर्णन भी काफी लाभदायक है, विश्व की धार्मिक और राजनीतिक बहुलता को नष्ट करना.”
उन कुछ विश्लेषकों के विपरीत जो इस्लामवादियों को कुछ उन्मादी व्यक्ति बताकर खारिज करते हैं ,11 सितंबर के लिए बनाए गए आयोग ने उनके वास्तविक महत्व को समझा है और इस बात पर ध्यान दिया है कि ओसामा बिन लादेन के संदेश ने हजारों मुस्लिम युवकों का समर्थन प्राप्त किया है ,जो देश के प्रति वफादार नहीं है और काफी बड़ी संख्या उनकी है जो सक्रिय सहयोगी नहीं है परंतु सहानूभुति रखते हैं . इस्लामवादी रुख इस्लाम के अपह्रत हो जाने के कारण नहीं है जैसा कि गलत ढ़ंग से दावा किया जाता है ,वरन् यह सदियों पुरानी और हाल के वर्षों में वहाबी ,मुस्लिम बंधुत्व और मिस्र के लेखक सईद कुतब के कारण इस्लाम के भीतर से ही उपजी अति असहिष्णुता की परंपरा का परिणाम है.
इसके बाद आयोग ने चल रहे युद्ध के उद्देश्य का प्रस्ताव इस्लामवाद को नष्ट करने या उसे अलग-थलग करने के रुप में किया है . यह अमेरिकी सरकार के गलियारों में कभी नहीं सुना गया था .
लगभग तीन वर्षों में युद्ध कैसे चला है आयोग ने काफी सजगता से शत्रु के दोतरफा स्वभाव का वर्गीकरण किया है . अल-कायदा के रुप में आंतकवादियों का राज्यविहीन नेटवर्क और इस्लामी विश्व में कट्टरपंथी वैचारिक आंदोलन .इसने ठीक ही कहा है कि पहला कमजोर हो रहा है फिर भी गंभीर खतरा उत्पन्न कर रहा है . दूसरा कहीं अधिक चिंता का विषय है जो कि ओसामा बिन लादेन और उसके गुर्गों के पकड़े जाने के काफी समय बाद भी अमेरिका और उसके प्रतिष्ठानों को क्षति पहुंचाता रहेगा .इसलिए अमेरिकी की रणनीति अल-कायदा के नेटवर्क को ध्वस्त करना और इस्लामवादी आतंकवाद को प्रोत्साहन देने वाली विचारधारा पर विजय प्राप्त करने की होनी चाहिए.
दूसरे शब्दों में अमेरिका को कुछ लोगों के गुट को पराजित करने में नहीं वरन् विचारधारा को पराजित करने में सहयोग करना चाहिए .ऐसा करने का अर्थ हुआ कि मुसलमानों का उनके प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन कराना .वाशिंगटन ऐसा अपने दम पर नहीं कर सकता . सहिष्णुता , कानून का शासन , राजनीतिक और आर्थिक खुलापन , महिलाओं को अधिक संभावनाओं का विस्तार ये इलाज मुस्लिम समाज में से स्वयं आने चाहिए . अमेरिका को इन प्रयासों का समर्थन करना चाहिए.
निश्चित रुप से ऐसे विकास का इस्लामवादी संगठनों द्वारा भरपूर विरोध होगा जो कि इस्लाम के भीतर ही चल रहे सभ्यता के संघर्ष का मुख्य बिन्दु होगा न कि सभ्यताओं के मध्य संघर्ष का . पारिभाषिक रुप से अमेरिका इस संघर्ष का दर्शक भर है . यह नरमपंथ को प्रोत्साहित कर सकता है इसे स्थापित नहीं कर सकता . ऐसा तो मुसलमानों को ही करना होगा.
नरमपंथी मुसलमान जो सुधार, स्वतंत्रता , लोकतंत्र और अवसर चाहते हैं उन्हें कुछ मूलभूत बिन्दुओं जैसे जिहाद की अवधारणा , महिलाओं की स्थिति , गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति जैसे प्रश्नों पर भी प्रकाश डालना होगा .और इसके बाद उनकी नई इस्लामी व्याख्या करनी होगी .
11 सितंबर के आयोग ने वर्तमान खतरे की व्याख्या कर अपने जनादेश का सम्मान किया है .बुश प्रशासन को इसके निष्कर्षों से लाभ उठाकर इन्हें लागू कर इससे निपटना चाहिए.