सउदी शहर खोबर में 29-30 मई को 22 लोगों की मौत का कारण बनने वाली भगदड़ में बचकर निकलने वाले लोगों ने बताया कि किस प्रकार आतंकवादियों ने किसी भी हद तक आश्वासन दिया कि वे केवल गैर –मुसलमानों को ही मारेंगे.उनके इस कार्य से बेहद नाजुक प्रश्न खड़ा हो गया है कि ऐसी किसी समस्या में फंसने के बाद गैर-मुसलमान क्या करें.
जब नरसंहार चल रहा था तो मुसलमानों ने काफी असुविधा के बीच मुसलमान और गैर-मुसलमान के बीच पहचान की . यहां कुछ बचे हुए लोग इसका साक्ष्य हैं.
हाजेम अल – दामेन – जार्डन का मुसलमान- दो आतंकवादियों ने उनका दरवाजा खटखटाया और उससे तथा अन्य छुपे हुए लोगों से पूछा कि वे मुसलमान हैं या ईसाई. मुसलमान सुनने के बाद हमलावरों ने उन्हें अपने कमरे मे ही रहने को कहा ..क्योंकि उनका उद्देश्य देश को अमेरिका और यूरोप के लोगों से मुक्त कराना है .
अबू हासेम -45 – एक ईराकी अमेरिकी मुसलमान इंजीनियर – आतंकवादियों ने उसका आवास कार्ड मांगा जिसमें उसका धर्म मुस्लिम और नागरिकता अमेरिकी लिखा हुआ था .इस मिश्रण से दो आतंकवादियों के बीच बहस छिड़ गई .एक ने कहा कि यह अमेरिका वासी है हमें इसे मार देना चाहिए तो दुसरे ने उत्तर दिया कि हम मुसलमानों को नहीं मारते . दोनों वापस गए तब तक निश्चय कर उन्हें बताया – डरो मत हम मुसलमानों को नहीं मारेंगे तब भी जब तुम अमेरिका के हो.इसके बाद आतंकवादी काफी विनम्र हो गए ..उनके घर की तलाशी लेने और कालीन पर खून के धब्बे छोड़ने के लिए माफी भी मांगी .
अब्दुल सलाम अल हकावती , 38 वर्षीय लेबनानी(वित्तीय निगम अधिकारी )- गोलियों की आवाज सुनकर पूरा परिवार ऊपर सीढ़ियों पर छुप गया .नीचे की सीढियों पर उन्होंने आतंकवादियों को भगदड़ मचाते हुए प्रवेश करते सुना.थोड़ी देर में दीवार पर कुरान की आयतें देख कर उन्होंने कहा – यह तो मुसलमान का घर है.जब भारी हथियारों से लैस आतंकवादी सीढियों के उपर चढ़े तो अल हकावती ने उन्हें असलाम वालेकुम कहकर अपनी पहचान को और स्पष्ट कर दिया .
निजार हजाजीन – जार्डन का सॉफ्टवेयर इंजिनियर – वह जार्डन के एक और व्यक्ति के साथ कमरे में छिप गया तभी दो हथियारबंद आतंकवादियों ने कमरे पर आक्रामक तरीके से दस्तक दी तो उन्होंने इसे खोल दिया . आतंकवादियों ने जार्डन वासियों की पहचान पूछी ..अरब या पश्चिमी? इधर से उत्तर आया –हम अरब के हैं . उनमें से एक ने पूछा ईसाई हो या मुसलमान ? दोनों ने स्वयं को मुसलमान बताया और साक्ष्य के तौर पर कुरान दिखाया .
इस्लामवादियों द्वारा मुसलमानों को मारने की व्यापक सउदी आलोचना के बाद केवल गैर – मुसलमानों को मारने का ध्यान रखने के कारण सउदी भी इस बात से सहमत दिखते हैं कि गैर-मुसलमानों को मारना सुविधाजनक कार्य है .दो उद्धरणों से ऐसा ही लगता है.
अब्दुल अजीज रेम्बान- सउदी सुरक्षाबल की देखभाल से जुड़ा व्यक्ति 21 अप्रैल को रियाद के पुलिस मुख्यालय में 50 व्यक्तियों की हत्या और 148 व्यक्तियों को हताहत करने वाले आत्मघाती हमलावर को उसने मानसिक रुप से बीमार बताया क्योंकि इस पूरे क्षेत्र में एक भी अमेरिकी नहीं रहता , किस तरह का जेहाद है जब एक भी विदेशी नहीं है .
मोहसिन अल अवजी – एक सउदी वकील सलाह देते हैं कि आतंकवादियों को प्रोत्साहित करना चाहिए कि वे कब्जा किए गए क्षेत्र में प्रतिरोध करें जैसे अफगानिस्तान ,ईराक , फिलीस्तीनी अथॉरिटी और चेचन्या . यदि कोई जाना चाहता है तो हमें उसे शुभकामना देनी चाहिए .वह कैसे भी मरेगा ये बात तो है ही लेकिन उसे कुछ प्राप्त करके मरना चाहिए.यहां निर्दोष लोगों को मारकर नहीं मरना चाहिए .
यह पहली बार नहीं है कि इस्लामवादियों ने काफिरों को निशाना बनाया है .मलेशिया में 2000 में जिहादियों ने जानबूझकर गैर-मुसलमान बंधकों को मार डाला था और शेष दो मुसलमानों को छोड़ दिया था .2002 में पाकिस्तान के पुलिस प्रमुख ने माना कि आतंकवादियों ने 15 मिनट तक ईसाईयों को छाँट कर अलग किया और उन्हें मौत देने की ठानी . हत्यारों ने ईसाईयों को मुसलमानों से अलग किया और प्रत्येक को कुरान की एक आयत पढ़ने को कहा .जो नहीं पढ़ सके उन्हें गोली मार दी गई.
इन सभी मामलों में जिहादियों का सामना करने वाले गैर-मुसलमान , मुसलमान बनकर बच सके .
ऐसे बहुत से तरीके हैं जिससे ऐसा किया जा सकता है .वे अपने संभावित हत्यारे का अभिवादन असलाम वालेकुम कहकर कर सकते हैं.(विडंबना यह है कि इसका अर्थ है आपसे शांति) वे अरबी में इस्लामी आस्था का वक्तव्य शहादा पढ़ सकते हैं.या फिर अरबी में कुरान की पहली सुरा जिसे फातिहा कहते हैं और जो इस्लाम की आवश्यक प्रार्थना है .पहले भी ऐसे ज्ञान से जीवन बचे हैं और भविष्य में भी ऐसा हो सकता है .
शहादा और फातिहा (न्यूयार्क सन् में सम्मिलित नहीं ) इस्लामी आस्था का वक्तव्य लिखित है जो मौलिक अरबी में तथा अनूदित है –
अशाद अन इलाहा इल्लालाह
वा अरशादू अन्ना मुहम्मदन रसूल –उल्लाह
मैं प्रमाणित करता हूं कि कोई देवत्व नहीं है केवल गॉड है . और मैं प्रमाणित करता हूं कि मोहम्मद गॉड के पैगंबर हैं. इसी प्रकार इस्लाम की प्रारंभिक प्रार्थना और कुरान की आरंभिक सुरा फातिहा निम्नलिखित है -
बिस्मिल्ला अर रहमान अररहीम
अलहाम दुलिल्लाह राब अल अलामीन
अररहमान अररहीम
मालिक याम अद्दीन
इयाक्का ना वदू वाथक्का नाश्ताईन
इहदीना असीरात अलमुस्तकीम
सिरात अल्लाथीना अन अमत अलायहीम घायरी
अलमधदुबी अलायहीम वलादालीन
गॉड की सेवा में , दयालु , सह्रदय . गॉड की प्रशंसा , विश्व का गॉड , दयालु सह्रदय.कयामत के दिन का राजा .तुम ही पूजा हो.और तुम्हारी सहायता की मुझे आवश्यकता है. सीधे रास्ते पर हमारा मार्गदर्शन करो . जिन रास्तों को तुमने आशीर्वाद दिया है , न कि जिन्होंने क्रुद्ध किया है या जो भटक गए हैं.
8 जून 2004 अपडेट – इस लेख पर मुझे बहुत सी टिप्पणियां मिली हैं जो कहते हैं कि आपका सुझाव है कि जीवन बचाने के लिए हम अपनी धार्मिक परंपरा छोड़ दें , ऐसा हम नहीं करेंगे . इस पर मेरी टिप्पणी है – मैं इस पर प्रतिक्रिया का सम्मान करता हूं , मैं अपने धर्म को छिपाने की वकालत नहीं कर रहा हूं वरन् उन विकल्पों की ओर इशारा कर रहा हूं जिनकी जानकारी गैर – मुसलमानों को होनी चाहिए,जब उपर्युक्त लेख की स्थिति में गैर-मुसलमान के जीवन पर खतरा होता है तो यह खतरा (ईसाई , यहूदी , हिन्दू ) धर्म अपनाने के कारण नहीं होता वरन् इस्लाम को न अपनाने के कारण होता है .