एक वर्ष पहले आतंकवादी हमले के साथ सउदी अरब ने एक महीने में एक बड़ी हिंसक घटना देखी है .
पिछले सप्ताह खोबर के रिहाइशी इलाकों में हुए हमले के साथ इस महीने घटी चार घटनाओं के साथ इस परिपाटी की पराकाष्ठा हुई.यद्यपि इस हमले का निशाना विदेशी और देश का आर्थिक ढ़ांचा थे लेकिन इसके साथ ही इसमें सउदी समाज के आपसी विभाजन और इसके दूरगामी प्रभाव का भी दर्शन होता है .
इन मुद्दों में धार्मिक ,राजनीतिक और आर्थिक मुद्दे शामिल हैं जो एक शताब्दी पूर्व आरंभ हुए संघर्ष की निरंतरता को बनाए रखते हैं.
सउदी राज्य ने 1750 में स्वरुप ग्रहण किया जब एक जनजातीय नेता मोहम्मद अल सउद ने धार्मिक नेता मोहम्मद बिन अब्द अल वहाब के साथ गठबंधन किया . सउद ने राज्य के साथ अपना जोड़ा जो दो संक्षिप्त अवसरों को छोड़ कर आज तक जारी है . अल बहाव का नाम इस्लामिक व्याख्या को परिभाषित करता है जो राज्य की विचारधारा बनी है .
बहावीवाद अपने पहले स्वरुप में अन्य मुसलमानों द्वारा कट्टरपंथी माना गया और अपने केन्द्रीय जन्मस्थान अरब से बाहर अधिक प्रभाव न जमा सका .गैर- बहावी मुसलमानों की इस्लामी पहचान को अस्वीकार करने की इसकी प्रवृत्ति और परंपरावादी मुस्लिम रास्तों के कट्टरपंथी विरोध के चलते तुर्की साम्राज्य सहित मध्यपूर्व की सत्ता ने इसे अस्वीकार कर दिया . सउदी असहिष्णुता की व्यापक शत्रुता के चलते दो बार इसका पतन हुआ.
बर्नाड लूईस ने अमेरिका शब्दावली प्रदान की है जिससे मुसलमानों के मध्य सउदी स्थिति को समझा जा सकता है .
कल्पना करिए कि क्लू क्लक्स क्लान का टेक्सास पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो जाता है . टेक्सास में तेल की सारी धोखाधड़ी उसके हवाले है और वे इस धन का उपयोग अपनी ईसाइयत के विकास के लिए स्कूल कॉलेज का नेटवर्क खड़ा करते हैं.इसके आधार पर आप अनुमान कर सकते हैं कि आधुनिक मुस्लिम विश्व में क्या हुआ होगा.
तीसरा सउदी साम्राज्य 1902 में स्थापित हुआ जब अब्दुल अजीज इब्न सउद ने रियाद शहर पर कब्जा किया .एक दशक उपरांत अब्दुल अजीज ने इखवान (बन्धुत्व के लिए अरबी ) नामक सेना स्थापित की जो बहावी आंदोलन , सेना और कट्टरता और संघर्ष का विस्तार का कारण बनी .यह युद्ध के लिए जानी जाती है जो अपना स्वरुप स्पष्ट करती है “जन्नत की हवायें बह रही हैं ..कहां हो जो जन्नत के बाद भी रहोगे .…” इखवान ने सउदी शासन और बहावी परंपराओं को बढ़ाते हुए अपनी अधिकांश लड़ाईयां जीतीं. इसकी सबसे बड़ी विजय 1924 में हुई जब इसने हाशमाइट से मक्का को जीता जो इस शहर पर शताब्दियों से शासन करते आये थे ( जार्डन पर अब भी इनका शासन है) .इस विजय ने अब्दुल अजीज की स्थिति को दो तरीके से बदल दिया .अंतिम अरबी प्रतिद्वंदी को सउदी नियंत्रण में लाकर इसने इस पूरे क्षेत्र में सउदियों को सबसे बड़ी शक्ति बना दिया . इस्लाम के अग्रणी शहर और इस प्रायद्वीप के प्रमुख शहर को सउदी अधिकार में लाकर इसने बहावीवाद के लिए नयी उंचाईयां प्राप्त कर लीं.
पूर्ववर्ती दशकों के सामान्य सत्य को अब चुनौती दी जा रही है . सउदी लोगों को बाहरी शक्तियों के साथ शालीन कूटनीतिक संबंध स्थापित करने पड़े जो मक्का में स्थित उदारवादी वातावरण के सापेक्ष था .अब्दुल अजीज को शीघ्र ही पता चला कि उन्हें इखवान और बहावीवाद के जंगली तत्वों को नियंत्रित करना होगा . मक्का पर अपनी विजय के कुछ वर्षों बाद जब उन्होंने इखवान पर सख्ती दी तो इसने विद्रोह किया जो गृहयुद्ध में बदल गया और 1930 में अब्दुल अजीज की विजय के साथ समाप्त हुआ .
आज की परिस्थितियों में देखा जाये तो तालिबान शुद्धिवादी और कट्टरता के मामले में इखवान के समान है जबकि अब्दुल अजीज के पुत्रों की स्थिति अजीज जैसी है जो कम शुद्ध राज्य पर शासन कर रहे हैं. 1930 में उनकी विजय का अर्थ था कट्टरपंथी वहाबियों पर नरमपंथियों की विजय. यदि सउदी राजशाही अपने पड़ोसियों की अपेक्षा अधिक कठोर इस्लामी होता तो यह आरम्भिक वहाबी सिद्धान्त से कम ही होता.
सत्य है, राजशाही दावा करती है कि कुरान इसका संविधान है , किसी भी गैर इस्लामी परम्परा को प्रतिबन्धित करती है, कुख्यात धार्मिक मुतावा पुलिस को प्रायोजित करती है और कठोर लैंगिक विभाजन का आदेश देती है. परन्तु यह इखवान संस्करण से नरम है. राजशाही गैर कुरानी कानूनों को भी जारी करती है, गैर इस्लामी पूजा को रणनीतिक तौर पर अनुमति देती है, मुतावा की याचिका को सीमित करती है और महिलाओं को घर छोड़ने की अनुमति देती है.
तो भी 1930 में इखवान की पहुँच समाप्त नहीं हुई इसने बचे हुये लोगों पर पुन: नियन्त्रण स्थापित किया . तेल युग में जब सउदी राजशाही फली-फूली और आडम्बरपूर्ण संस्थाओं में बदल गई तो इखवान का संदेश प्रभावी होने लगा. यह शुद्धिवादी अपील 1979 में पहली बार विश्वव्यापी हुई जब इखवान जैसे युवकों के गुट ने मक्का की भव्य मस्जिद पर नियन्त्रण कर दो सप्ताह तक इसे अपने नियन्त्रण में रखा. इसी प्रकार 1979-89 में अफगानिस्तान से सोवियत यूनियन को बाहर करने के सउदी प्रायोजित मुजाहिदीन प्रयासों से इखवान की पहुँच फिर उभरी. 2001 में अमेरिका नीत युद्ध में पराजित होने तक तालिबान ने अपने पाँच वर्ष के इसी आधार को अपनाया.
इखवान की इस वैचारिक पहुँच को ओसमा बिन लादेन जैसे कई प्रवक्ता मिल गये हैं. अपने प्रमुख वर्ष अफगानी मुजाहिदीनों के साथ बिताने वाले एक सउदी नागरिक लादेन को सउदी राजशाही की आर्थिक बेईमानी और अमेरिका के राजनीतिक नियन्त्रण के कारण धैर्य नहीं है. इसके स्थान पर वे इखवान जैसी एक सरकार बनाना चाहते हैं जो अधिक साहसी इस्लामी विदेश नीति और कठोर इस्लामी नीतियों को थोप सके.
सभी संकेतों से स्पष्ट है कि सउदी अरब में इस स्वरूप को काफी समर्थन है. इस स्वरूप को उस नरम पहुंच से अधिक समर्थन है जिसे पश्चिमी लोग सफल होते देखना चाहते हैं.
इतिहास की इस पृष्ठभूमि में पिछले वर्ष की हिंसा उस सउदी विवाद को दर्शाती है जिसमें विजेता 1920 के दशक की भांति सबकुछ प्राप्त करना चाहते हैं. किसकी विजय होगी जिससे यह निर्धारित होगा कि सउदी एक राजशाही रहेगी जो कुछ अंशों में आधुनिक जीवन के सामने झुकेगी या अफगानिस्तान के तालिबानी शासन की याद दिलाते हुए इस्लामी अमीरात बनेगा .
पश्चिमी राज्यों के लिए अप्रसन्नता का चयन है – सभी भूलों के साथ सउदी राजशाही या उससे भी बुरा इखवान का विकल्प . नीतिगत विकल्प तो और भी सीमित हैं कि राजशाही की सहायता की जाए ताकि वह और कट्टरपंथी खतरे को पराजित कर सके और उसपर दबाव डाला जाए कि वह आर्थिक भ्रष्टाचार से लेकर आतंकवादी इस्लामी संगठनों को आर्थिक सहायता तक अपने अंदर सुधार करे.