अमेरिकी सीनेट के प्रत्याशी राबर्ट पी. कासे जूनियर द्वारा पिछले कुछ महीनों पहले की गई अपनी इजरायल यात्रा के बाद दिये गये बयानों ने मुझे ही नहीं वरन् अन्य लोगों को भी पीड़ा पहुँचायी.
पेन्सिलवेनिया के राज्य कोषाध्यक्ष ने पिछले नवम्बर में पाँच दिन की इजरायल यात्रा की थी. वहाँ वे बहुत से स्थलों पर गये, विभिन्न लोगों से भेंट की तथा माना कि इस यात्रा का उन पर भारी भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रभाव पड़ा है. पिछले साठ वर्षों से इजरायल की प्रशासनिक और भावनात्मक राजधानी के रूप में चले आ रहे जेरूसलम को अन्तत: अमेरिका को मान्यता दे देनी चाहिये या नहीं इस प्रश्न पर कासे चुप रह गये. फिलाडेल्फिया इन्क्वायरर के 7 दिसम्बर के अंक के अनुसार कासे यह नहीं बता सके कि वे जेरूसलम को इजरायल की राजधानी के रूप में मान्यता दिये जाने के पक्ष में हैं या नहीं.
यह अत्यन्त निराशाजनक है कि परिस्थितियों को अपनी आँखों से देखने के बाद भी कासे इजरायल के लोगों को अपनी राजधानी का चयन करने के उस विशेषाधिकार से वंचित करना चाहते हैं जो अधिकार अमेरिका ने पृथ्वी के प्रत्येक राज्य को दे रखा है. यह भी निरशाजनक था कि कासे ने अमेरिकी सरकार से उस कानून के पालन का भी आग्रह नहीं किया जिसके अनुसार इजरायल में अमेरिकी दूतावास को जेरूसलम स्थानान्तरित किया जाना है.
परन्तु वास्तविक समस्या इससे कहीं अधिक गम्भीर है. कासे द्वारा उत्तर में कोई टिप्पणी न करना इस बात का संकेत है कि अरब-इजरायल संघर्ष के स्वभाव को समझने में वे असमर्थ हैं.
जेरूसलम को इजरायल की राजधानी स्वीकार करने से फिलीस्तीनियों को इजरायल के प्रति अमेरिका के गहरे, स्थाई और प्रतिबद्ध सहयोग का संकेत प्राप्त होगा.
दोनों देशों के वर्तमान सघन सम्बन्धों के चलते यह अनावश्यक लगेगा परन्तु व्यापक अर्थों में अरब-इजरायल संघर्ष मनोवैज्ञानिक है. फिलीस्तीनियों की युद्ध लड़ने की आदत, आत्मघाती हमलावरों के रूप में अपने बच्चों को भेजना, आर्थिक संकटों का सामना, एक राज्य के हाथ से खिसक जाने की सम्भावना को देखते रहना और अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता का दिनों दिन गिरता स्तर तब तक जारी रहेगा जब तक उन्हें लगेगा कि इस प्रकार वे विजय की ओर अग्रसर हैं. यह अपेक्षा ध्वस्त होनी चाहिये क्योंकि उसी मात्रा में फिलीस्तीनियों का युद्ध का आग्रह कम होगा.
इस सम्बन्ध में कोई शंका नहीं होनी चाहिये कि फिलीस्तीनियों के लिये विजय का अर्थ इजरायल राज्य को नष्ट करना है. इरान से बाहर आजकल इसे स्पष्ट और कड़े शब्दों में न कहकर इसके लिये धूर्तता से दूसरे शब्दों प्रयोग किया जाता है. यहूदियों को समुद्र में फेंकने जैसे शब्दों के स्थान पर वापसी का अधिकार शब्द प्रयोग में आ रहा है. एक राज्य के समाधान का स्थान इजरायल के नाश ने ले लिया है. चाहे कुछ भी क्यों न बोला जाये इसका आशय यही है कि यहूदी राज्य को फिलीस्तीनी अरब- मुस्लिम राजनीति से स्थानान्तरित करना.
इस वास्तविकता का अमेरिकी नीति पर भी प्रभाव होने वाला है. इस नीति में फिलीस्तीनियों को समझाने का प्रयास होना चाहिये कि वे इजरायल को पराजित नहीं कर सकते क्योंकि यह स्थाई है और फिलीस्तीनियों को अपने इस भयानक उद्देश्य को त्याग देना चाहिये. फिलीस्तीनियों को समझाने में जेरूसलम एक प्रमुख तत्व है जो कि संघर्ष का भावुक हृदय प्रदेश है.
जेरूसलम को इजरायल की राजधनी के रूप में मान्यता देने और अमेरिकी दूतावास को वहाँ स्थानान्तरित करने का स्पष्ट संकेत देकर अरब-इजरायल संघर्ष को समाप्त करने की दिशा में यह महत्वपूर्ण कदम उठाया जा सकता है.
परन्तु इस कहानी का एक सुखद समापन है. नाराज डेमोक्रेटों ने कासे के प्रचार अभियान पर विरोधी हमले किये और समाचार प्रकाशित होने के चार दिनों बाद कासे ने पूरी तरह पलटते हुये फारवर्ड को बताया कि वे इस बात का पूरा प्रयास करेंगे कि उनकी सरकार दूतावास जेरूसलम में स्थानान्तरित करे.
निश्चय ही कासे चीजों को तेजी से भाँप लेते हैं जैसा कि फारवर्ड ने लिखा है बुरा यह है कि वह नीतियों का निर्धारण स्वयं नहीं करते.