ओरियाना फलासी ने अपनी नई पुस्तक La Forza della Ragione, या ‘तर्क की शक्ति’ में घोषणा की है कि ‘यूरोप इस्लाम का एक प्रान्त और उपनिवेश बनता जा रहा है ’. प्रसिद्ध इतालवी पत्रकार अपनी जगह पूरी तरह ठीक हैं. यूरोप की प्राचीन मजबूत ईसाई पकड़ तेजी से ढीली पड़कर इस्लाम के लिये मार्ग प्रशस्त कर रही है.
विश्व को हिला देने वाली इस घटना के लिये प्रमुख रूप से दो तत्व उत्तरदायी हैं-
ईसाइयत का खोखलापन - अपनी परम्परा और मूल्यों के साथ सम्बन्ध क्षीण करता हुआ यूरोप उत्तर ईसाई समाज बनता जा रहा है. पिछली दो पीढ़ियों में आस्थावान और धर्मपालक ईसाइयों की संख्या इतनी कम हुई है कि पर्यवेक्षकों ने इसे नया अन्ध महाद्वीप कहना आरम्भ कर दिया है. विश्लेषकों का पहले ही अनुमान है कि मस्जिदों में उपासना करने वालों की संख्या प्रत्येक सप्ताह चर्च आफ इंगलैण्ड से अधिक होती है.
उत्साहहीन जन्मदर - स्वदेशी यूरोपवासी नष्ट हो रहे हैं . किसी जनसंख्या को कायम रखने के लिये आवश्यक है कि महिलाओं का सन्तान धारण करने का औसत 2.1 हो परन्तु पूरे यूरोपीय संघ में दर एक तिहाई 1.5 प्रति महिला है और वह भी गिर रही है . एक अध्ययन के अनुसार यदि जनसंख्या का यही रूझान कायम रहे और आप्रवास पर रोक लगा दी जाये तो 2075 तक आज की 375 मिलियन की जनसंख्या घटकर 275 मिलियन हो हो जायेगी. यहाँ तक कि अपने कारोबार के लिये यूरोप को प्रतिवर्ष 1.6 करोड़ आप्रवासियों की आवश्यकता है. इसी प्रकार वर्तमान कर्मचारी और सेवानिवृत्त लोगों के औसत को कायम रखने के लिये आश्चर्यजनक 13.5 करोड़ आप्रवासियों की प्रतिवर्ष आवश्यकता है.
इसी रिक्त स्थान में इस्लाम और मुसलमान को प्रवेश मिल रहा है. जहाँ ईसाइयत अपनी गति खो रही है वहीं इस्लाम सशक्त, दृढ़ और महत्वाकांक्षी है. जहाँ यूरोपवासी बड़ी आयु मे भी कम बच्चे पैदा करते हैं वहीं मुसलमान युवावस्था में ही बड़ी मात्रा में सन्तानों को जन्म देते हैं.
यूरोपियन संघ का 5% या लगभग 2 करोड़ लोग मुसलमान हैं. यदि यही रूझान जारी रहा तो 2020 तक यह संख्या 10% पहुँच जायेगी.
जैसा कि दिखाई पड़ रहा है कि गैर मुसलमान नयी इस्लामी व्यवस्था की ओर प्रवृत्त हुये तो यह महाद्वीप मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्र बन जायेगा. जब ऐसा होगा तो भव्य चर्च पुरानी सभ्यता के अवशेष बनकर रह जायंगे जब तक कि सउदी शैली का प्रशासन उसे मस्जिद में न परिवर्तित कर दे या तालिबान जैसा प्रशासन उसे उड़ा न दे. इटली, फ्रांसीसी, अंग्रेज और अन्य महान राष्ट्रीय संस्कृतियों का पतन होगा और उनका स्थान उत्तरी अफ्रीका , तुर्की, उपमहाद्वीप और अन्य तत्वों के विलयन से बनी पराराष्ट्रीय इस्लामी पहचान ले लेगी.
यह भविष्यवाणी नई नहीं है. 1968 में ब्रिटिश राजनेता इनोक पावेल ने अपने प्रसिद्ध भाषण रक्त की नदियों में चेतावनी दी थी कि अत्यधिक आप्रवास की अनुमति देकर ब्रिटेन अपनी ही चिता जला रहा है( उन शब्दों ने एक उदीयमान भविष्य को समय से पहले अवरूद्ध कर दिया). 1973 में फ्रंसीसी लेखक जीन रासपेल ने कैम्प ऑफ द सेन्ट्स नामक उपन्यास में चित्रित किया कि यूरोप भारतीय उपमहाद्वीप से अनियन्त्रित विशाल आप्रवास में गिर रहा है. एक क्षेत्र की प्रमुख सभ्यता का शान्तिपूर्वक दूसरी सभ्यता में परिवर्तित हो जाने की यह प्रक्रिया मानव इतिहास में अभूतपूर्व और ऐसी आवाजों की अवहेलना को आसान करती है.
अभी भी अवसर है कि यह परिवर्तन अपना आकार ग्रहण न करे परन्तु समय के साथ ऐसी सम्भावनायें धूमिल हो रही हैं. यहाँ कुछ ऐसे सम्भावित मार्ग बताये जा रहे हैं जिनसे इसे रोका जा सकता है-
यूरोप में परिवर्तन- यूरोप में परिवर्तन अपेक्षित है जो ईसाई धर्म का पुनरूद्धार करे, सन्तानों की वृद्धि दर बढ़ाये, आप्रवासियों का सांस्कृतिक आत्मसातीकरण करे. सैद्धान्तिक रूप में ऐसी घटनायें घटित हो सकती हैं परन्तु वे व्यावहारिक आकार कैसे ग्रहण करेंगी इसकी कल्पना करना कठिन है.
मुस्लिम आधुनिकता - अनेक कारणों से लोगों ने रेखांकित नहीं किया है कि जन्म दर में गिरावट का सबसे बड़ा कारण आधुनिकता है (महिलाओं की शिक्षा, आवश्यकतानुसार गर्भपात, वयस्कों की आत्मकेन्द्रित सोच के कारण बच्चे न पैदा करने की इच्छा) . इसके साथ ही मुस्लिम विश्व को आधुनिक बनाने से यूरोप की रूख करने का आकर्षण कम होगा.
अन्य स्रोतों से आप्रवास- ईसाई होने के कारण लैटिन अमेरिका को यूरोप को ऐतिहासिक पहचान बनाये रखने की थोड़ी बहुत अनुमति देनी चाहिये. हिन्दू और चीनी सास्कृतिक विविधता को बढ़ायेंगे और इस्लाम के प्रभुत्व को कम करेंगे.
वर्तमान रूझान से लगता है कि इस्लामीकरण होगा क्योंकि ऐसा लगता है कि बच्चे रखना यूरोपवासियों के लिये काफी थकाऊ होगा. इसी प्रकार अवैध आप्रवास को रोकना तथा आप्रवास के स्रोतों की विविधता बढ़ाना भी कठिन होगा. इसके बजाय वे अप्रसन्नतापूर्वक सभ्यता के विस्मरण में जीना पसन्द करेंगे.
यूरोप ने सम्पन्नता और शान्ति के मामले में ऊँचाइयाँ प्राप्त करते हुये अपने कायम रखने की अभूतपूर्व योग्यता का परिचय दिया है. एक भूजनांकिकी विशेषज्ञ वोल्फगांग लुज ने माना है ‘ विश्व इतिहास में नकारात्मक गति का ऐसा अनुभव इतने बड़े पैमाने पर कभी नहीं हुआ है’.
ऐसा अवश्यंभावी लगता है कि अत्यन्त मेधावी सफल समाज यूरोप ऐसा पहला समाज होगा जो इन विशेषताओं के साथ ही सांस्कृतिक आत्मविश्वास के अभाव के चलते पतन के खतरे का सामना करेगा. विडम्बना है कि जीने का सबसे इच्छित स्थान का विकास आत्महत्या का कारण बनता जा रहा है. यह मानव व्यंग्य चलता रहेगा.