पिछले साठ वर्षों से दूर खड़े होकर देखने के बाद अन्तत: इजरायल के तीसरे क्रम के शत्रुओं ने भी युद्ध में भाग लेना आरम्भ कर दिया है. विदेशी राज्य इजरायल के प्रथम शत्रु हैं. मई 1948 में इजरायल की स्वतन्त्रता की घोषणा के उपरान्त पाँच विदेशी सशस्त्र सेनाओं ने इजरायल पर आक्रमण किया. इसके बाद 1956, 1967, 1970 और 1973 के सभी युद्धों में इजरायल को अपने पड़ोसियों की सेना, वायुसेना और नौसेना के साथ युद्ध करने पड़े. आज सबसे बड़ा खतरा इरान और सीरिया के जनसंहारक हथियारों से है. मिस्र भी लगातार परम्परागत सैन्य संकट उत्पन्न कर रहा है.
बाहरी फिलीस्तीनी दूसरे प्रमुख शत्रु हैं. 1948 के बाद दो दशकों तक नेपथ्य में रहने के बाद यासर अराफात और फिलीस्तीनी लिबरेशन आर्गनाइजेशन के साथ वे केन्द्रबिन्दु में आ गये. 1982 के लेबनान युद्ध और 1993 के ओस्लो समझौते से यह केन्द्रीय भूमिका पुष्ट हो जाती है. बाहरी फिलीस्तीनी आज भी सक्रिय हैं और खतरनाक भी हैं चाहे वह आतंकवाद का मामला हो, स्देरात में मिसाइल का उतरना हो या फिर वैश्विक स्तर पर सार्वजनिक रूप से इजरायल को अस्वीकृत करने का विषय हो.
इजरायल के मुस्लिम नागरिक जिन्हें सामान्य तौर पर अंग्रेजी में इजरायली अरब कहा जाता है वे इजरायल के तीसरे क्रम के शत्रु हैं ( परन्तु यहाँ मुसलमानों पर ध्यान दे रहा हूँ क्योंकि अरबी बोलने वाले ईसाई और द्रूज उतने शत्रुवत् नहीं हैं). 1949 में इजरायली मुसलमान महत्वपूर्ण स्थिति में नहीं थे और उनकी कुल जनसंख्या इजरायल की जनसंख्या का 9 प्रतिशत 1लाख 11 हजार ही थी. उसके बाद वे 2005 में दस गुना बढ़कर कुल जनसंख्या का 16 प्रतिशत 11लाख 41 हजार हो गये. अपनी जनसंख्या बढ़ाने के साथ ही उन्होंने इजरायल की आधुनिक खुली संस्कृति का लाभ उठाकर स्वयं को छोटे , दबे हुये और नेतृत्व विहीन समुदाय की स्थिति से उठाकर मुखर समुदाय के रूप में विकसित कर लिया जिसके नेताओं में तेल अवीव के उपमेयर रैफात तुर्क राजदूत ( अली याहया), संसद सदस्य , अकादमिक और उद्योगपति शामिल हैं.
इस विकास ने इजरायल के साथ युद्धरत प्रथम व द्वितीय शत्रु, पश्चिमी तट के साथ बढ़ते सम्पर्कों, कट्टरपंथी इस्लाम में वृद्धि तथा 2006 के मध्य में हुये लेबनान युद्ध जैसे तत्वों के साथ मिलकर मुसलमानों को इस बात का प्रोत्साहन दिया कि वे इजरायल के अस्तित्व को अस्वीकार कर राज्य के विरूद्ध खड़े हों. इजरायल के शत्रुओं के प्रति उनका उत्साह इसका उदाहरण है साथ ही इजरायल में यहूदियों पर मुसलमानों की हिंसा भी इसका प्रमाण है. मुसलमानों ने एकर के निकट एक यहूदी धार्मिक विद्यालय पर हिंसक आक्रमण किया और जेजरील घाटी के निकट एक किसान की हत्या कर दी. एक टीन एज बालक को नजरेथ होटल पर आत्मघाती आक्रमण की योजना बनाते समय गिरफ्तार किया गया.
इस शत्रुवत् भाव को हैफा के मोसावा केन्द्र द्वारा दिसम्बर मे प्रकाशित The Future Vision of Palestinian Arabs in Israel दस्तावेज में संहिताबद्ध किया गया है. इस केन्द्र को अमेरिका के यहूदियों से आर्थिक सहायता मिलती है तथा अनेक स्थापित व्यक्तियों ने भी इसका समर्थन किया गया है. इस केन्द्र की अतिवादिता इजरायल के मुसलमानों के लिये नया मोड़ सिद्ध हो सकती है.
इस दस्तावेज में इजरायल की यहूदी प्रकृति को नकार दिया गया है तथा देश की द्विराष्ट्रीयता पर जोर दिया गया है जिसमें फिलीस्तीनी संस्कृति और शक्ति का पूरी तरह समानता का स्तर हो. इस दस्तावेज में ‘संयुक्त गृहभूमि’ की धारणा से अभिप्राय है यहूदी और अरब दोनों अपने प्रभाग में अपने कार्य देखें तथा कुछ निर्णयों पर दोनों को ही एक दूसरे पर वीटो का अधिकार हो. Future Vision में कहा गया है कि ध्वज और राष्ट्रगान दोनों में तालमेल स्थापित किया जाये और 1950 का वापसी का कानून रद्द किया जाये जिसमें किसी भी यहूदी को नागरिकता प्रदान प्रदान करने का प्रावधान है साथ ही अरबी को हिब्रू के समकक्ष करने की बात भी कही गई है. इस दस्तावेज में अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अरब के अलग प्रतिनिधित्व की बात कही गई है. इस अध्ययन की सबसे बड़ी बात यह है कि सम्प्रभु यहूदी राज्य की इजरायलवादी उपलब्धियों को नष्ट कर दिया जाये.
इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि इजरायल के यहूदियों ने इस पर नकारात्मक प्रतिक्रिया की है. मारीव में डान मारगालित ने इजरायली अरब को असम्भव करार दिया है. हारटेज में अवराहम ताल ने इस अध्ययन की व्याख्या करते हुये कहा है कि इजरायल के बाहरी संघर्षों का समाधान होने के बाद भी संघर्ष को जारी रखने का जानबूझकर किया जाने वाला प्रयास है. इजरायल के उपप्रधानमन्त्री अबीगदोर लीबरमैन ने दस्तावेज के मुख्य आश्वासनों को अस्वीकार कर दिया है. उनका प्रश्न है कि फिलीस्तीनियों के लिये देश का 3\2 भाग निर्मित करना और यहूदियों के लिये आधा देश निर्मित करने क्या तुक है ?
लीबरमैन इजरायल की नागरिकता उसी तक सीमित रखना चाहते हैं जिसकी इजरायल के ध्वज और गायन में आस्था है और जो आवश्यकतानुसार सैन्य सेवा या इसके समकक्ष सेवायें देने को तत्पर हों. कोई भी चाहे मुसलमान हो, अतिवादी वामपंथी, हारेदी या अन्य कोई हो जो इस पर हस्ताक्षर करने से इन्कार करता है उसे स्थाई निवासी का दर्जा दिया जाना चाहिये जिसे इजरायली निवासी के सभी लाभ प्राप्त हों और स्थानीय कार्यालयों में मतदान या उनके संचालन का भी अधिकार हो ( अभी ऐसा विशेषाधिकार जेरूसलम में गैर नागरिक अरबवासियों को प्राप्त है). परन्तु उन्हें राष्ट्रीय पदों पर चुने जाने या राष्ट्रीय चुनाव में मत देने का अधिकार नहीं होगा.
Future Vision और लीबरमैन के परस्पर प्रतिस्पर्धी प्रस्ताव लम्बे समय तक चलने वाली बहस को आरम्भ करते हैं और उपयोगी ढंग से काफी समय तक नेपथ्य में रहे बिन्दु पर ध्यान दिला रहे हैं. इजरायलवासियों के पास तीन कठिन विकल्प हैं- या तो इजरायल के यहूदी यहूदीवाद को छोड़ दें या इजरायल के मुसलमान यहूदीवाद को स्वीकार कर लें या फिर इजरायल के मुसलमान अब इजरायल के न रहें. जितना शीघ्र इजरायली इस विषय को हल करेंगे उतना ही श्रेयस्कर होगा.