आतंकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध को अकेले आतंकवाद प्रतिरोध से ही नहीं जीता जा सकता , इसके लिए यह भी आवश्यक है कि आतंकवादियों और उनसे सहानुभूति रखने वालों को समझाया जाये कि उनके लक्ष्य और तरीके गलत हैं और वे असफल होंगे , परंतु ऐसा कैसे किया जाये ?
हिंसा के वैचारिक और धार्मिक स्रोत पर ध्यान केन्द्रित करते हुए मेरा मानना है कि इस युद्ध का तात्कालिक लक्ष्य कट्टरपंथी इस्लाम को ध्वस्त करना तथा दीर्घगामी लक्ष्य इस्लाम को आधुनिक बनाना होना चाहिए . यद्यपि इस नीति के व्यापक परिणामों पर मैंने अभी कार्य नहीं किया है .
मेरे इस विचार की व्याख्या रैण्ड निगम के चेटिल बेनार्ड ने Civil Democratic Islam: Partners, Resources, and Strategies शीर्षक से लिखी पुस्तक के निष्कर्षों में की है . यह पूरा निष्कर्ष रैण्ड वेबसाइट पर उपलब्ध है.
बेनार्ड ने इस्लाम को आधुनिक बनाने के श्रेष्ट प्रयास को मान्यता प्रदान की है . उनका मानना है कि यदि राष्ट्र निर्माण का कार्य हतोत्साहित करने वाला है तो धर्म निर्माण का कार्य कहीं अधिक कठिन और जटिल है .” यह ऐसा कार्य है जो पहले कभी संपादित नहीं हुआ और हम अज्ञात क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं .
Civil democratic Islam में तीन विषय को शामिल किया गया है . इस्लाम के प्रतिद्वन्दी मुसलमान की धारणा . यह धारणा नरमपंथी इस्लाम की ओर अधिक योगदान देती है तथा तीसरा विषय पश्चिमी सरकारों के लिए नीतिगत सिफारिशें.
अन्य विश्लेषकों की भांति बेनार्ड ने भी माना है कि धर्म के संबंध में मुसलमान चार वर्गों में विभाजित है .
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कट्टरपंथी – ये दो भागों में विभाजित है – अतिवादी (तालिबान की भांति) अधिनायकवादी व्यवस्था स्थापित करने के लिए हिंसा का मार्ग अपनाने को तैयार हैं . धर्मग्रन्थवादी ( सउदी राजघराने की भांति ) धार्मिक स्थापनाओं को लेकर जड़ हैं और हिंसा पर बहुत कम आश्रित हैं .
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परंपरावादी – ये भी दो भागों में विभाजित हैं.परंपरावादी ( ईराक में विशाल अयतोला अली अल सिस्तानी) शास्त्रीय नियमों और पुराने व्यवहारों को उसी प्रकार संरक्षित रखना चाहते हैं जैसे वे हैं .सुधारवादी ( कुवैती शासकों की भांति ) समान लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं परंतु अपने विस्तार और उन्हें प्राप्ति के तरीकों में कहीं अधिक आविष्कारी हैं .
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आधुनिकतावादी – ( लीबिया में मुहम्मर गद्दाफी की भांति ) आधुनिकतावादी मानते हैं कि इस्लाम की आधुनिकता के साथ संगति है और फिर इस बिन्दु को प्रमाणित करने के लिए पिछड़ेपन का सहारा लेते हैं.
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सेकुलरवादी – ये भी दो भागों में विभाजित हैं . मूलधारा के सेकुलरवादी ( तुर्की में अतातुर्क की भांति ) धर्म का सम्मान व्यक्तिगत मामले में करते हैं परंतु सार्वजनिक जीवन में इसे कोई स्थान नहीं देते .
कट्टरपंथी कम्युनिस्टों की भांति धर्म को एक नकली चीज मानते हैं और इसे पूरी तरह अस्वीकार करते हैं
लेखक जीवन के इन दृष्टिकोणों को अत्यंत फुर्ती से समझाकर प्रस्तुत करता है जिससे विशुद्ध इस्लामी राज्य की स्थापना से लेकर पति द्वारा पत्नी को पीटने की स्वतंत्रता तक इनके मतभेद सामने आते हैं . वह उचित ढंग से मूल्यों और जीवनशैली पर प्रकाश डालती हैं और हिंसा के प्रयोग को बहुविवाह की मान्यता से कहीं अधिक सामान्य विषय मानती हैं .
इन वर्गों में कौन सा वर्ग गठबंधन के लिए अधिक पात्र है . सुश्री बेनार्ड के अनुसार आधुनीकतावादी आधुनिक लोकतांत्रिक समाज की भावनाओं और मूल्यों के अधिक निकट हैं . कट्टपंथी हमारे शत्रु हैं क्योंकि वे हमारा विरोध करते हैं और हम उनका विरोध करते हैं . परंपरावादी भी संभावित लोकतांत्रिक तत्व हैं परंतु कट्टरपंथियों के साथ अनेक विषयों में समानता रखने के कारण उन पर निर्भर नहीं हुआ जा सकता . सेकुलरवादी इस्लाम से सांठगांठ के चक्कर में अक्सर पश्चिम विरोधी हो जाते हैं
उसके बाद बेनार्ड अनेक कोणों से धर्म निर्माण की नीतियों को प्रस्तावित करती हैं –अनैतिकता और कट्टरपंथियों के आडंबर को अमान्य करना .
इन नेताओं के भ्रष्टाचार की जांच के लिए रिपोर्टिंग को प्रेरित करना . परंपरावाद के दोषों की आलोचना करना , विशेषरुप से इसके द्वारा पिछड़ेपन को बढ़ावा देना .
सर्वप्रथम आधुनिकतावादियों का समर्थन करना . सेकुलरवादियों को मामले की गुणवत्ता के आधार पर समर्थन देना . कट्टरपंथियों के विरुद्ध रणनीतिक ढ़ंग से परंपरावादियों को समर्थन देना . कट्टरपंथियों का विरोध लगातार करना .
पश्चिमी लोकतांत्रिक आधुनिक मूल्यों को जोरदार ढंग से बढ़ावा देना . सेकुलर नागरिक और सांस्कृतिक संस्थाओं को प्रेरित करना . नई पीढ़ी पर प्रकाश डालना. सही व्यवहार वाले राज्यों , समूहों और व्यक्तियों को आर्थिक सहायता प्रदान करना .
सुश्री बेनार्ड की सामान्य अवधारणा से मैं सहमत हूं परंतु दो शताब्दियों में वर्तमान वास्तविकताओं के साथ इस्लाम की तालमेल करने की असफलता के कारण उनके अतिउत्साह को लेकर संदेह है . महान प्राच्य विद्वान एच.ए.आर गिब्स ने आधुनिक चिन्तन को 1947 में बौद्धिक संशय और स्वच्छन्दतावाद को लकवाग्रस्त करने वाला करार दिया . 1983 में मैंने आधुनिकतावाद को एक थका हुआ आंदोलन बताया था जो अपने तर्कों के कारण सीमित हो गया है . तबसे लेकर आज तक कुछ भी परिवर्तित नहीं हुआ है .
आधुनिकतावादियों के बजाए मैं मुख्यधारा के सेकुलरवादियों को अग्रगामी मुसलमानों को प्रस्तावित करता हूं जो कि अपने सहधर्मियों को निराशा और कट्टरता से बाहर निकाल सकते हैं .
सेकुलरवादी राजनीति से धर्म को अलग करने के प्रमाणित सिद्धांत ने न केवल पश्चिमी विश्व में वरन् तुर्की में भी सफलता प्राप्त की है जो कि हमारे समय में मुस्लिम सफलता की कहानी है . जब मुसलमान सेकुलरवाद की ओर मुड़ेंगे तभी उनके इतिहास का यह खतरनाक युग समाप्त होगा .