पिछले सप्ताह जब ईरानी सरकार ने अपने यूरेनियम संवर्धन कार्यक्रम को द्विगुणित करने की घोषणा की तो संयुक्त राष्ट्रसंघ ने कम महत्वपूर्ण मूर्खतापूर्ण यूरोपीय प्रस्ताव पर विचार किया.इस प्रस्ताव में केवल ईरानी छात्रों के विदेशों में परमाणु भौतिकी के अध्ययन पर प्रतिबंध , परमाणु क्षेत्रों में कार्य करने पर ईरानी लोगों को वीजा देने से रोक और रुस के अतिरिक्त सभी देशों द्वारा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को विदेशी सहायता पर प्रतिबंध लगेगा .
किसी को भी आश्चर्य होगा कि क्या ऐसे आधे-अधूरे मन के शाश्वत प्रयास ईरान संकट को टालने में सार्थक प्रयास सिद्ध होंगे . न्यूयार्क में नाटकीय ढंग से सुरक्षा परिषद् में मतदान की अपील, वियना में रात दिन अंतर्राष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेन्सी के साथ बातचीत के प्रयास, यूरोपीय संघ के एक विशेष छूट द्वारा तेहरान में समझौते के प्रयास?
मेरी भविष्यवाणी है कि इनमें से किसी भी दृश्य के आधार पर कल्पना नहीं की जा सकती कि अंततोगत्वा तेहरान परमाणु अस्त्र के अपने स्वप्न को छोड़ देगा. हाल के साक्ष्य कुछ दूसरी ही कहानी कहते हैं-
-
पश्चिम को उकसाने वाले शत्रुवत बयान - इनमें से सर्वाधिक महत्वपूर्ण राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद द्वारा इजरायल के समर्थन के विरुद्ध यूरोप को चेतावनी है , “हमने यूरोप को सुझाव दिया है कि मुस्लिम देश एक महासागर की भांति है जो भर रहे हैं और यदि तूफान आया तो इसका आयाम फिलीस्तीन तक ही सीमित नहीं रहेगा और यह तुम्हें भी क्षति पहुंचाएगा”. इससे भी अधिक क्रोधित करने वाला वक्तव्य न्यायपालिका के प्रमुख अयातोला महमूद हाशमी शाहरौदी का था जिन्होंने अमेरिका को धमकाते हुए कहा कि यह समाप्ति के कगार पर खड़ा है .
-
सरकार के उपरी स्तर पर मसीहाई मानस – महदावियात के प्रति अत्यधिक उत्साह के अनुक्रम में ( अंतिम दिनों में प्रकट होने वाला महदी ) अहमदीनेजाद इस बात को स्वीकार करते हैं कि वे शिया धर्म के प्रमुख गुप्त इमाम ( जो कि मरने के बाद पुन: प्रकट होते हैं ) के साथ प्रत्य़क्ष संपर्क में हैं.
-
तत्काल परमाणु कार्यक्रम – तेल और गैस की बिक्री से उत्साहजनक आर्थिक व्यवस्था के कारण 2005 के मध्य से इस शासन ने प्राय: हर बार परमाणु क्लब में शामिल होने के लिए अत्यंत आक्रामक कदम उठाए हैं . इनमें उल्लेखनीय है फरवरी में आरंभ किया गया परमाणु संवर्धन कार्यक्रम .भ्रमित और गैर-जिम्मेदार , अमेरिका , यूरोप व अऱब और रुस से विपरीत तेहरान निर्धारित लक्ष्य की ओर प्रवृत , अवज्ञारत और दृढ़ संकल्पित है . आधे वर्ष के पूर्व एक सुनियोजित बाहरी प्रयास ईरानी समाज में ऐसे लोगों को प्रेरित कर सकता था जो परमाणु कार्यक्रम को रोकने के लिए दबाव डालें, परंतु अब ऐसी संभावना क्षीण हो चुकी है .
परंतु अब जब कि शक्तियों ने चुप्पी साध रखी है और निर्णय में भी देरी दिखाई है तो ईरानियों को लग रहा है कि उनके नेतृत्व को आगे बढ़ने की छूट है .
इसके बाद भी ईरान के साथ युद्ध की संभावना से इंकार के नए विचार सामने आते गए .लास एन्जेल्स टाईम्स के स्तंभकार मैक्स बूट ने ईरान पर अमेरिकी आक्रमण को खारिज़ करते हुए ,तीन विकल्पों का सुझाव दिया , आर्थिक नाकेबन्दी की धमकी , अपने परमाणु कार्यक्रम को स्थगित करने के लिए तेहारन को पुरस्कृत किया जाए.या फिर शासन विरोधी उग्रवादियों को देश पर आक्रमण में सहायता की जाए.
वैसे तो न तो युद्ध न तो परमाणु की यह स्थिति रचनात्मक है .परंतु इन प्रस्तावों में से किसी में भी सफलता की संभावना नहीं है .क्योंकि स्थिति काफी कठिन और अनेक तत्वों से मिश्रित हो चुकी है .या तो अमेरिकी सरकार तेहरान को परमाणु प्राप्त करने से रोकने के लिए सेना तैनात करे या तेहरान उन्हें प्राप्त करे.
युद्ध या परमाणु प्राप्ति का मुख्य निर्णय वाशिंगटन में होगा न कि यूरोप ,विएना या तेहारान में. सबसे नाजुक क्षण तब आएगा जब अमेरिका के राष्ट्रपति के सामने के सामने विकल्प होगा कि इस्लामी गणतंत्र ईरान को बम प्राप्त करने दिया जाए या नहीं. ईरान के परमाणु कार्यक्रम की संदिग्ध समय सारिणी जार्ज बुश या उनके उत्तराधिकारी के समक्ष आएगी .
यह एक महत्वपूर्ण क्षण होगा. टैक्स , स्कूल और संपत्ति क्षेत्रों के संबंध में जनता के विचारो से अमेरिका भरा पूरा है . कार्यकर्ता स्वयंसेवी संगठनों का आयोजन करते हैं , नागरिक नगर मंडप में सभा के लिए एकत्रित होते हैं और संगठन लॉबियां अपने प्रतिनिधि चुनते हैं.
परंतु भाग्य के फैसले वाले युद्ध में जाने पर निर्णय का अवसर आता है तो अमेरिका के लोगों की सहभागिता का भाव समाप्त हो जाता है और यह निर्णय केवल राष्ट्रपति पर छोड़ दिया जाता है.यह निर्णय उसकी अपनी क्षमता , उसकी दृष्टि द्वारा प्रेरित , उनके आस –पास के निकट सलाहकारों तथा राजनीतिक नफा –नुकसान पर अवलंबित होता है . उनका निर्णय पूरी तरह व्यक्तिगत होगा और वे कौन से मार्ग का चयन करेंगे यह उनके चरित्र और मनोविज्ञान पर निर्भर करता है.
क्या वे एक दुष्ट रहस्यमयी नेतृत्व को कयामत का अस्त्र तैयार करने की अनुमति देकर उसे तैनात करने देंगे या फिर वे ईरान की परमाणु आधारभूत संरचना पर नियंत्रण करेंगे फिर चाहे उसकी कोई भी आर्थिक सैन्य और कूटननीतिक कीमत चुकानी हो.
जब तक अमेरिका के राष्ट्रपति निर्णय नहीं लेते तब सब कुछ टाइटनेक पर फिर से कुर्सी सजाने जैसा निरर्थक और अप्रासांगिक ही होगा .