पिछले सप्ताह एक प्रमुख भाषण में प्रधानमन्त्री एरियल शेरोन ने लगभग नाटकीय ढंग से वापसी की बात की है। परन्तु मुझे आश्चर्य है कि उनके इस बदलाव को उसी रूप में लिया जाये या नहीं। श्रीमान शेरोन ने घोषणा की कि इजरायल और फिलीस्तीन के मध्य बातचीत और समझौते की योजना के लिये प्रस्तावित “रोडमैप” के लिये कुछ ही महीने बचे हैं। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि फिलीस्तीनी रोड मैप को लेकर अपनी अरूचि इसी प्रकार प्रदर्शित करते रहेंगे तो इजरायल अपने सुरक्षा कदम के रूप में फिलीस्तीनियों के बीच से वापसी का एकतरफा कदम उठायेगा।
उन्होंने वापसी के कार्यक्रम की व्याख्या करते हुये कहा कि इसमें नई सुरक्षा पंक्तियों के बराबर इजरायली सेना की पुनर्नियुक्ति और फिलीस्तीनियों के मध्य निवास कर रही इजरायली बस्ती को कम करने के लिये बस्तियों की नियुक्ति में परिवर्तन शामिल है। सुरक्षा बाड़े तथा अन्य भौतिक बाधाओं के बराबर इजरायल सुरक्षा बल की तैनाती कर सुरक्षा प्रदान की जायेगी।
गाजा और पश्चिमी तट पर निवास करने वाली बस्तियों में इजरायली नागरिकों के सम्बन्ध में शेरोन का विचार उनके भाषण का सर्वाधिक चौंकाने वाला तत्व है, क्योंकि यह इस विषय पर उनके लम्बे समय तक के विचारों के विपरीत है। वर्तमान निर्माण पंक्ति से परे कोई निर्माण नहीं होगा, निर्माण के लिये भू-स्वामियों से कोई भूमि नहीं ली जायेगी, कोई विशेष, आर्थिक योजना नहीं होगी और न ही नई बस्ती का निर्माण होगा।
यद्यपि वापसी की योजना को अत्यन्त सक्रिय और कुछ अर्थों में अत्यन्त आक्रामक योजना के रूप में प्रस्तुत किया गया है परन्तु इस योजना में पराभूत मानसिकता के तीन सन्देश भी विद्यमान हैं-
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फिलीस्तीनियों की आतंकवाद योजना सफल है - जैसे-जैसे इजरायल के विरूद्ध हिंसा की घटनायें हो रही हैं ( 4 अक्टूबर 2003 से अब तक 24 आत्मघाती हमले हो चुके हैं) इससे फिलीस्तीनियों की अनेक मुख्य मांगें पूरी हो रही हैं, फिलीस्तीनी अथारिटी के अन्तर्गत अधिक भूमि आ गई है, इजरायली लोगों की जान बचाने के लिये मार्ग अवरोधों को हटाया जा रहा है तथा गाजा और पश्चिमी तट में यहूदी आवासों को तोड़ा जा रहा है। श्रीमान शेरोन को लगता है कि इन छूटों से इन क्रूरों को सन्तुष्ट किया जा सकेगा।
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इजरायल पीछे हट रहा है - श्रीमान शेरोन ने अपनी योजना को फिलीस्तीनियों के समक्ष एक अन्तिम समय सीमा के रूप में रखा और यद्यपि इसे अत्यन्त आक्रामक ढ़ंग से समेटा गया परन्तु इसका मूल विरोधी के समक्ष समर्पण जैसा है। एक फिलीस्तीनी अकादमिक और राजनेता जियाद अबू अमर के अनुसार “ कट्टर फिलीस्तीनी इजरायल के बारे में यह नहीं सोचते कि शेरोन सरकार ने कोई उनका पक्ष लिया है वे तो इसे अपने संघर्ष का परिणाम मानते हैं”।
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इजरायली डरे हुये हैं - दीवारें, मार्गावरोध और असैन्यीकृत क्षेत्र राज्यक्षेत्रों की परिभाषा और लोगों की क्षति कम करने का एक तरीका है और उसका उपयोग भी है। परन्तु रणनीतिक स्तर पर उसका लाभ नहीं है। इससे फिलीस्तीन-इजरायल संघर्ष का समाधान होने वाला नहीं है। कोई भी बाड़ वह कितना भी गहरा गाड़ा गया हो, ऊँचा, सघन सर्वेक्षण वाला और बिजली के तारों से युक्त हो परन्तु उससे युद्ध नहीं जीता जा सकता। इसके विपरीत दीवार बनाने में अन्तर्निहित है कि आप उसमें अपने को ढ़ाँक रहे हैं कि शत्रु आप पर आक्रमण नहीं करेगा। इस प्रकार ढ़ँकने की पहल फिलीस्तीनियों के कारण हुई और उन्हें लगा कि इजरायल रक्षात्मक स्थिति में चला गया।
शेरोन के भाषण का सीधा अर्थ निकाला जाये तो यह एक भयानक भूल है। यदि उनकी पराभूत मानसिकता की योजनायें प्रभावी हुईं तो इससे फिलीस्तीनियों को हिंसा में लिप्त होने की प्रेरणा मिलेगी तथा अरब-इजरायल संघर्ष समाधान में वे और देर करेंगे। परन्तु ऐसा उनके भाषण का सीधा अर्थ लेने पर है।
यदि इस पर्यवेक्षक के भय को सही मानें कि शेरोन जो कह रहे हैं वही उनका अर्थ है तो यह उनके ज्ञात विचारों के सर्वथा प्रतिकूल है, उदाहरण के लिये उनके लिये पश्चिमी तट पर इजरायलवासियों का नियन्त्रण आवश्यक था। ( 1998 में विदेश मन्त्री के रूप में उन्होंने इजरायलवासियों से आग्रह किया कि और पहाड़ियाँ प्राप्त करो, क्षेत्र विस्तृत करो । जो भी प्राप्त कर लिया जायेगा वह हमारा होगा और जो कुछ हम प्राप्त नहीं कर सकेंगे वह उनके हाथ में चला जायेगा)। पिछले सप्ताह के उनके भाषण से लगता है कि वे तात्कलिक लाभ के बारे में सोच रहे हैं न कि दीर्घकालिक लक्ष्य के सम्बन्ध में।
इससे ध्वनित होता है कि प्रधामन्त्री शेरोन के दो अलग-अलग श्रोता हैं। वे फिलीस्तीनियों को बताना चाहते हैं कि इजरायल के विरूद्ध हिंसा उनके विरूद्ध ही जाने वाली है, और ऐसा वे आतंकवाद का कड़ा प्रतिरोध करके कर रहे हैं। इजरायल के लोगों और राष्ट्रपति बुश के साथ वे अच्छा सम्बन्ध बनाकर लोकतान्त्रिक प्रक्रिया में शामिल होने का प्रदर्शन करना चाहते हैं।
एक साथ दो कम या ज्यादा अलग-अलग नीतियों को चलाना आसान नहीं है। शेरोन ने इसे बड़ी कुशलता से कुछ छूट और कड़ी कार्रवाइयों के मिश्रण से सफलतापूर्वक सम्पन्न किया है। मैं प्रधानमन्त्री के मस्तिष्क को पढ़ने का बहाना तो नहीं करता परन्तु मुझे ऐसा लगता है कि पिछले सप्ताह के उनके भाषण से एक और छूट का संकेत मिलता है। इस बार वे इजरायल की जनता को सम्बोधित कर शक्ति सन्तुलन की दीर्घगामी नीति की अपेक्षा कुछ अधिक सक्रिय और तत्काल की माँग कर रहे हैं। श्रीमान शेरोन एक चतुर राजनेता हैं जो जानते हैं कि कब कितना झुकना है। उन्होंने एक ऐसी योजना की रूपरेखा रखी है मेरी दृष्टि में जिसे पूर्ण करने की उनकी इच्छा कम ही होगी।