पिछले सप्ताह जार्ज डब्ल्यू बुश द्वारा व्यक्त किए गए वाक्य “पिछले साठ वर्षों में मध्यपूर्व में पश्चिमी देशों द्वारा स्वतंत्रता के अभाव को स्थान देने या उसके लिए बहाना बहाने से भी हम सुरक्षित नहीं हो पाए ” इस विषय पर स्थानीय नीति की अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा पहली बार अस्वीकृति है ।
मध्यपूर्व में मुख्य भूमिका निभाने के बाद अमेरिका की सरकार द्वारा अपनाई गई नीति से यह न केवल हटकर है परंतु अत्यंत साहसी और ऐतिहासिक जमीनी सच्चाई के निकट है । स्थापित मान्यताओं के अनुरुप ऐसी बातें किसी स्तंभकार ,निबंधकार या विद्वान के मुंह से सुनने की अपेक्षा की जा सकती है न कि किसी महान शक्ति के नेता से ।
बुश ने अत्यंत स्पष्ट शब्दों में अपनी बात कही जैसा कि प्राय : शासनाध्यक्ष नहीं करते । उन्होंने कहा “अनेक मध्यपूर्वी देशों में गरीबी काफी गहरी है और फैल रही है ,महिलाओं को अधिकार नहीं है और उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता। पूरा विश्व जहां आगे बढ़ रहा है तो वहीं मध्यपूर्व का समस्त समाज गतिहीन हो चला है । जितने समय तक मध्यपूर्व ऐसा स्थान बना रहेगा वहां स्वतंत्रता नहीं फलेगी -फूलेगी ,उतने समय तक यह स्थान गतिहीन असंतोष और निर्यातक हिंसा का केन्द्र बना रहेगा ।”
यह पहला अवसर नहीं है जब बुश ने मध्यपूर्व की समस्या के लिए दशकों पुरानी नीति का परित्याग कर पूरी तरह से कट्टरवादी पहल की है ।
उन्होंने इराक तथा अरब इजरायल के संघर्ष के संबंध में भी ऐसा किया था ।
इराक – उन्होंने शक्ति संतुलन की लंबे समय से स्थापित नीति का परित्याग कर जून 2002 में आक्रमण होने से पहले ही आक्रमण करने की पहल की । उन्होंने कहा “अमेरिका के लोगों को अग्रगामी और संकल्पित होकर हमारी स्वतंत्रता और जीवन की रक्षा के लिए जब आवश्यक हुआ पहले आक्रमण करने के लिए तैयार होना होगा ।.” इस नई पहल के अनुसार ही सद्दाम हुसैन के विरुद्ध युद्ध को न्याय संगत ठहराया गया और इराकी अधिनायक के आक्रमण करने से पहले ही उसे हटा दिया गया ।
अरब इजरायल विवाद – जून 2003 में अरब –इजरायल विवाद के संबंध में अमेरिका की पहल को मैं बुश के राष्ट्रपति काल का साहसिक और आश्चर्यजनक कदम मानता हूं ।”
उन्होंने फिलीस्तीनी राज्य को एक समाधान के रुप में प्रस्तुत कर पुर्वानुमान बदल दिए , दोनों पक्षों पर दृष्टि थोंप दी । एक निर्धारित समय सीमा के भीतर परिणाम संबद्ध कर दिए तथा जिस नेता को अस्वीकार किया उसे हटा दिया । और इस बार
लोकतंत्र – राष्ट्रपति ने लंबे समय से चली आ रही है मध्य-पूर्व के अधिनायकों के संबंध में अपवाद का परित्याग कर स्पष्ट किया कि लोकतंत्र को एक लक्ष्य बनाने की योजना के अंतर्गत मध्यपूर्व के अधिनायकों के संबंध में अपवाद का परित्याग कर स्पष्ट किया कि लोकतंत्र को एक लक्ष्य बनाने के आते हैं ।
अमेरिका की सुरक्षा के साथ इस विषय को जोड़कर वे इस विषय को अमेरिका में भी ले आये । हमारे देश और हमारे मित्रों को हानि पहुंचाने वाले हथियारों के साथ यथास्थिति को स्वीकार करना हानिप्रद होगा ।” स्वतंत्रता के विकास से शांति आती है इस आधार पर बुश ने मध्यपूर्व में स्वतंत्रता की अग्रगामी नीति की घोषणा की ।
यूरोप और एशिया में लोकतंत्र प्रायोजित करने में अमेरिका की सफलता की तुलना करते हुए उन्होंने अमेरिकावासियों का आह्वान किया कि वे मध्यपूर्व के संबंध में भी ऐसा बिना व्यावधान पूरी उर्जा और आदर्शवाद के साथ करें ।
अधिनायकों का तुष्टीकरण करने की पुरानी नीति के पीछे के तर्क को समझते हुए इस नई सुधारवादी पहल को आसानी से समझा जा सकता है । पुराने आधार पर माना जा सकता था कि अमीरों , राजाओं और राष्ट्रपतियों की अपेक्षा जनता अधिक अमेरिका विरोधी होती है । वाशिंगटन को एकदम सही भय था कि लोकतंत्र से कहीं अधिक कट्टरपंथी तत्व सत्ता में आयेंगे और 1992 में अल्जीरिया और 1979 में ईरान में लगभग ऐसा ही हुआ । इससे एक चिंता और भी उभरी कि एकबार कट्टरवादी सत्ता में पहुंच गए तो वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया (जिसे एक व्यक्ति , एक समय में मत् माना जाता है ) को बंद कर देंगे ।
धरातल पर कट्टरता और षड्यंत्रवादी मानसिकता के बाद भी लोकतंत्र में बुश का विश्वास परिस्थितियों को कितना परिपक्व बनाकर नरमपंथ और स्थिरता को बढ़ावा दे पाता है इसका परीक्षण होना शेष है । यह प्रक्रिया वास्तव में ईरान में घटित हुई अब क्या अन्य स्थानों में भी घटित होगी । इसका उत्तर प्राप्त करने दशकों लग जाएंगे ।
परिस्थितियां जैसी भी हों परंतु यथास्थिति को आकार देने के लिए जोखिम उठाने वाले राष्ट्रपति के लिए यह जुआ कठिन है । यद्यपि एक भाषण से विदेश नीति नहीं बना करती और उसके लिए कार्यक्रम का विवरण , आर्थिक सहयोग और नियमित कार्यान्वयन की आवश्यकता होती है परंतु यह परिवर्तन कहीं न कहीं से तो आरंभ होना ही चाहिए । राष्ट्रपति का वक्तृत्व इसके लिए उपयुक्त स्थल है ।
यदि मध्यपूर्व के संबंध में राष्ट्रपति के पिछले रिकार्ड के आधार पर इनका आकलन किया जाए तो अफगानिस्तान और ईराक के शासन को हटाना और अरब –इजरायल संघर्ष के लिए नए संविधान को बढ़ावा औदि ऐसे उदाहरण हैं जिससे लगता है इस मोर्चे पर भी वह कुछ करेंगे । एक रोचक सवारी के लिए तैयार रहिए ।